नई दिल्ली : उच्चतम न्यायलय को केंद्र सरकार ने बताया था कि उसने निर्माण मजदूरों के कल्याण से संबंधित मामले में अदालत के निर्देशों के पालन के लिए समयसीमा तय करने के लिए समिति गठित की है। इस मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि बहुत हो गया। यह तो गरीबों का शोषण है। जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने नाराजगी के साथ सरकार की ओर से वकील से जानना चाहा, क्या गरीब जनता के प्रति भारत सरकार का यही रवैया है। पीठ ने सवाल किया, समयसीमा निर्धारित करने के लिए आपने एक समिति गठित की है? यह हो क्या रहा है? हमारे मुताबिक आप बीस से पच्चीस हजार करोड़ रुपए पर बैठे हुए हैं। क्या देश की गरीब जनता के प्रति भारत सरकार का यही रवैया है? पीठ ने सरकार से जानना चाहा कि निर्माण मजूदरों के कल्याण के लिए रखी इतनी बड़ी रकम का उसने क्या किया।
उच्चतम न्यायालय ने बीते 19 मार्च को केन्द्र से कहा था कि वह निर्माण मजदूरों की शिक्षा, स्वस्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और पेंशन जैसे मुद्दों के लिए 30 सितंबर तक एक मॉडल योजना तैयार करे। न्यायालय ने कहा था कि मजदूरों के लाभ के लिये 37,400 करोड़ रुपये से अधिक धन एकत्र किया गया लेकिन करीब 9,500 करोड़ रूपये ही उनकी भलाई के लिए खर्च किए गए। कोर्ट ने श्रम मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि वह सात मई को सुनवाई के दौरान न्यायालय में मौजूद रह कर बताएं कि उसके आदेशों और इस विषय पर संसद द्वारा बनाए गए दो कानूनों पर अमल के बारे में क्या हो रहा है। कुछ राज्यों का प्रतिनिधि कर रहे वकील ने पीठ से जब कहा कि उन्होंने कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन किया है तो पीठ ने पलट कर तल्खी से कहा, आपने वाशिंग मशीनें और लैपटॉप खरीदने के अलावा क्या किया है। नाराजगी जाहिर करते हुए पीठ ने कहा, यह हैरान करने वाला है। क्या यह मजाक है? ये निर्माण मजदूर वे लोग हैं जिनके पास कोई शिक्षा नहीं है, धन नहीं है और भवन निर्माता उनका शोषण करते हैं और भारत सरकार कह रही है कि वह कुछ नहीं करेगी। इससे पहले, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि निर्माण मजदूरों के कल्याण के निमित्त धन का बड़ा हिस्सा लैपटॉप और वाशिंग मशीनें खरीदने पर खर्च किया गया और मुख्य काम पर तो दस फीसदी से भी कम रकम खर्च किया गया।