आखिर क्यों होते हैं प्रीमेच्योर बच्चे। जानिए एक्सपर्ट के नजरिए से…
कारण : गर्भवती महिला का वजन अत्यधिक कम या ज्यादा, खून की कमी, 18 से कम या 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण, शारीरिक व मानसिक तनाव, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, लंबे समय से किसी रोग से पीडि़त, पेशाब या रक्त में संक्रमण, आनुवांशिक व बच्चेदानी की बनावट संबंधी समस्या से प्रीमेच्योर डिलीवरी हो सकती है। गर्भ में जुड़वां बच्चे होने और जेनेटिक विकृति भी इसकी वजह हो सकती है। कभी-कभी आईवीएफ तकनीक से गर्भधारण के दौरान भी यह समस्या आती है।
प्रीमेच्योरिटी के परिणाम: बच्चे का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता। निमोनिया, एलर्जी, अस्थमा, आंखों से जुड़ी बीमारियों की चपेट में जल्दी आते हैं। जन्म के पांच साल बाद भी इनकी मृत्यु दर ज्यादा रहती है। पहले ही पहचानें लक्षण: कभी-कभी लगातार या बार-बार होने वाला पीठदर्द खासकर निचले भाग में, 10-15 मिनट के अंतराल में रुक-रुक कर पेट में संकुचन या खिंचाव, पेट के निचले भाग में ऐंठन, सर्दी-खांसी या जुकाम की शिकायत होने पर विशेषज्ञ से तुरंत संपर्क करें।
क्या करें: स्त्री रोग विशेषज्ञ से नियमित शारीरिक जांच कराएं। तनाव न लें। भोजन में एक भाग दाल, एक दुग्ध उत्पाद, एक फल और सलाद का होना चाहिए। भारी वजन न उठाएं, भीड़भाड़ वाली या संक्रमित जगहों से दूर रहें।
37-42 हफ्ते के बीच जन्मे बच्चे सामान्य जबकि पहले जन्म लेने वाले बच्चे प्रीमेच्योर कहलाते हंै। 34-36 हफ्ते के मध्य जन्मे शिशु सामान्य प्रीमेच्योर।32-34 हफ्ते के बीच जन्म लेने वाले मध्यम प्रीमेच्योर।32 हफ्ते से पहले जन्म लेने वाले अधिक प्रीमेच्योर, 28 हफ्ते या उससे पहले जन्म लेने वाले शिशु अधिकतम प्रीमेच्योर की श्रेणी में आते हैं।