गलती से भी नहीं टूटना चाहिए करवा चौथ का व्रत वरना पति पर आ सकता है भारी संकट
‘करवा चौथ’ शिव परिवार के मान-सम्मान, भक्ति व श्रद्धा की कड़ी में एक दिन का पर्व है, जो माता गौरी के अनेक जन्मों में बार-बार शिव के वरण करने से एक पतिव्रता स्त्री द्वारा अपनी शक्ति के सही प्रतिफल के रूप में मनाया जाता है। हजारों वर्षों से शक्ति स्वरूपा जगदम्बा के नौ शक्ति रूपों के नौ दिन अर्थात नवरात्रि के ठीक नौ दिन बाद स्त्री के एक अन्य रूप में अर्थात् पतिव्रता सुहागन की शक्ति के रूप में मां पार्वती की पूजा के लिए ही सुहागन स्त्रियां ‘करवा चौथ’ व्रत को रखती हैं। बिना अन्न, फल व जल ग्रहण किए सारा दिन रहना पतिव्रता की साक्षात् शक्ति का स्वरूप हैं।
सूर्यास्त से आरंभ कर, चंद्र उदय होने के बीच में यदि कोई स्त्री व्रत तोड़ती है तो उसके पति पर मृत्युकारक कष्ट आते हैं। इस विषय में सात भाइयों की लाडली बहन वीरावती की कहानी बहुत प्रचलित है। इस कथा के अनुसार, सात भाइयों की अकेली बहन वीरावती विवाह के बाद अपना पहला ‘करवा चौथ’ मनाने मायके आई हुई थी। उसने सूर्योदय से ये कठिन व्रत आरंभ कर दिया, परंतु शाम होते-होते उसे प्यास व भूख सताने लगी।
अपनी अकेली नाजुक बहन को ऐसी स्थिति में देखकर भाइयों से रहा नहीं गया। भाइयों ने पहाड़ के पीछे काफी आग जलाकर और दूसरी तरफ शीशे में बहन को चंद्रमा उदय होने का भरोसा दिलाकर अन्न व जल दे दिया। अन्न ग्रहण करने के तुरंत बाद ससुराल से उसके युवा पति के स्वर्गवास का संदेश आ गया।
वीरावती ने शक्ति स्वरूपा मां जगदमबा का नाम लेकर अपने पतिव्रता होने का वास्ता देते हुए विलाप करना शुरू कर दिया, जिसे सुनकर मां ने दर्शन दिए। मां ने उसके भाइयों के छल-कपट को बताकर उसके व्रत तोड़ने के अनर्थ को बताया। वीरावती ने अपने भाइयों की करनी की क्षमा मांगते हुए दोबारा व्रत करने का संकल्प किया व पूरी निष्ठा से अन्न-जल त्याग कर समय पर चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत खोला, जिसे देखकर माता पार्वती ने वीरावती का सुहाग जीवित कर दिया।
करवा चौथ की पूजा
व्रत रखने वाली सुहागन स्त्रियां शाम को मेहंदी, चूड़ी, पायल, बिछुए सहित 16 श्रृगार कर विशेष आकर्षक लहंगा—चोली, सूट, साड़ी आदि पहनकर गहनों से सजकर एक टोली के रूप में पार्क या मंदिर में एकत्रित होती हैं। वे अपने सुहागन होने पर गर्व महसूस करती हैं। किसी बड़ी उम्र की सुहागन स्त्री अथवा पंडित जी द्वारा ‘करवा चौथ’ की कथा सुनाई जाती है। सभी स्त्रियां एक गोलाकार घेरा बनाकर अपने थाल को पूजा सामग्री से सजाकर, जोत जलाकर मां पार्वती की पूजा पूरे शिव परिवार सहित करती हैं।