‘गीतकार आदेश पर खाना बनाने वाले ‘शेफ’ की तरह’
वैसे कार्निवाल के पहले दिन साहित्य-संस्कृति का यह गुलदस्ता अलग-अलग रंगों से खूब सजा। प्रख्यात साहित्यकार अमृतलाल नागर को समर्पित इस कार्निवाल में नागर पर केंद्रित दो सत्रों के अतिरिक्त गालिब, मंटो, चुगताई, बेदी, कृश्नचंदर भी याद किए गए। साहित्य और पत्रकारिता के रिश्तों को तलाशा गया, पुस्तक के लोकार्पण और उन पर चर्चाएं हुईं।
नागरजी के परिवारीजनों-अचला नागर, विभा नागर के साथ ही संवाद-पटकथा लेखक अतुल तिवारी, संस्कृतिकर्मी नूर जहीर, लखनऊ दूरदर्शन केंद्र के पूर्व निदेशक विलायत जाफरी, रंगकर्मी सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ के अतिरिक्त संयोजकों जयंत कृष्ण और कनक रेखा चौहान ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में दीप प्रज्वलित कर कार्निवाल का उद्घाटन किया।
चर्चाओं के बीच टॉम ऑल्टर द्वारा प्रस्तुत एकपात्रीय नाटक ‘दोजखनामा’ और गीतकार-गायक स्वानंद किरकिरे से गीतकार एवं पटकथा लेखिका कौसर मुनीर की बातचीत एवं गीतों की प्रस्तुति को साहित्यकारियों ने काफी पसंद किया।
साहिर लुधियानवी या कैफी आजमी का दौर अलग था। आज गीतकार उस शेफ की तरह है जो आदेश पर दूसरे के लिए खाना बनाता है जबकि शायर स्वान्त: सुखाय लिखता है।
लखनऊ लिटरेचर कार्निवाल में ‘बावरा मन-गीतों के इश्कजादे’ कार्यक्रम में स्वानंद किरकिरे ने ‘बजरंगी भाईजान’ फिल्म की गीतकार और संवाद लेखिका कौसर मुनीर से बातचीत की। इस दौरान दोनों गीतकारों ने फिल्मों के अपने सफर के साथ ही गीतों से जुड़े विभिन्न पक्षों पर विचार रखे।
उन्होंने कहा, मैं जल्दी में नहीं लिख पाता। गीत लिखने के लिए कई बार मैं पैरोडी भी लिख लेता हूं जिनमें अक्सर गालियों या गंदे शब्दों का प्रयोग करता हूं। अपनी फिल्मी यात्रा की चर्चा करते हुए किरकिरे ने कहा कि ज्यादातर लोग लिखने के लिए नहीं आते हैं। मैं भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निकलकर फिल्म बनाने के लिए आया था।
उस समय गुलजार और जावेद साहब तो थे ही, समीरजी भी थे। मैं फिल्मकार सुधीर मिश्र के साथ था। उन्होंने कहीं मेरा ‘बावरा मन’ गीत सुन रखा था और उन्होंने इस गीत का अपने फिल्म में इस्तेमाल किया। इस गीत को रिकॉर्ड करते समय प्रदीप सरकार ने इसे सुनकर मुझे ‘परिणीता’ का ऑफर दिया।