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गुजरात मॉडल की ऊँची बातें समझ से परे हैं…!

-नईम कुरेशी

भारत में चुनावों के दौरान धार्मिक भावनायें भड़का कर वोट लेने की परम्परायें बनती जा रही हैं। जो वोट के मायने व उसके प्रभाव को काफी हद तक प्रभावित करती देखी जा रही हैं। अस्पतालों की दुर्दशा व स्कूलों की उचित व्यवस्था न कर पाने वाली केन्द्र व सूबाई सरकारें इनका जवाब औरंगजेब, बाबर का नाम लेते देती हैं और तो और पाकिस्तान व चीन के खिलाफ तक आम जिंदगी के लिये इंतजामों में नाकामी की तरफ ध्यान हटाने के लिये भी जातिवाद धर्म की बातें प्रधानमन्त्री तक शमशान व कब्रस्तानों की बातों को हवा देते रहते हैं। वो बेरोजगारी भ्रष्टाचारों पर चर्चा नहीं करते। अब तो देश में आदर्श कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है। ज्ञानपीठ पुरुष्कार से सम्मानित वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती तक को कहना पड़ा है कि कोई भी दलीम राजनीति अपने विस्तार को अगर हिंसा द्वारा प्रचारित करती है तो राष्ट्र का सांस्कृतिक पर्यावरण प्रदूषण से बच नहीं सकता है। इसी तरह की बात देश दुनिया में चर्चित फिल्मी गीतकार गुलजार साहब भी कह चुके हैं कि हम आजाद हुये हैं पर सांस्कृतिक आजादी हमें नहीं मिली है। भारत का आम नागरिक समाज शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुका है। वो सियासी दलों के दांव पेच समझने लगा है। वो समझ चुका है कि चुनावों की जुमलेबाजी में सच्चाई कितनी है, अभिनय कितना है और झूठ कितना है।

देश के एक बड़े पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी विकास और गुजरात मॉडल की ऊँची ऊँची बातें करने पर जमीन पर हमेशा धार्मिक पहचानों को हवा देने का प्रयास करती है। भाजपा अध्यक्ष चुनावों में रोहाग्या वर्मा के मुसलमानों का मुद्दा उठाने मुगल बादशाहों का नाम लेकर क्या संदेश देना चाहते हैं? क्यों ये लोग रोजगार शिक्षा की बातें चुनाव प्रसार से लगातार हटाते आ रहे हैं? क्या यही गुजरात मॉडल है? ये बात जरूर ठीक है कि भा.ज.पा. संघ परिवार का कुछ संगठन उनके विरोधी दलों की तुलना में अच्छा है पर इसका मतलब ये है कि देश को सम्प्रदायक भट्टी में झोंक कर हमेशा गुजरात की तरह जलाया जाये। निरीह कमजोर लोगों की हत्यायें सत्ता के लिये करा दी जायें। सरदेसाई जैसे पत्रकारों का मानना है कि गुजरात में बदलाव की हवा लगातार चल रही है। वहां का युवा भा.ज. पा की इस सियासत को अब जान चुका है कि ये नारे वादे सब के सब चुनाव जीतने भर के लिये हैं। यहां बेरोजगारी भ्रष्टाचार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार से कम नहीं है। गुजरात के लोग वहां के व्यापारी कहते हैं कि यहां बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता। अब गुजरात को हिन्दू मुस्लिम के शोर से नहीं बहकाया जा सकता। गुजरात की माटी के सपूत मोदी जी को अपने ही प्रदेश में दर्जनों रैलियां करना पड़ीं व कहना पड़ रहा है कि विरोधी मुझे गालियां दे रहे हैं इसलिये मुझे वोट दें। विकास की कोई बात तक अब उनके मुंह से नहीं निकल रही है। भारत की रेलों का सफर तो आरामदायक सुरक्षित केन्द्र सरकार बना नहीं सका। वोटों के लिये जापानी तकनीक से महंगी बुलेट ट्रेन की बात कर गुमराह करना भी आम जनता को समझ आ गया है।

मध्य प्रदेश पुलिस का बुरा हाल

इसी तरह मध्य प्रदेश में व्यापमं काण्ड के चलते व मेडिकल कॉलेजों में पी.एम.टी. घोटालों से लाखों हजारों नौजवानों के साथ अन्याय पर अब पर्दा नहीं डाला जा सकता है। प्रदेश भर में किसी भी सरकारी अस्पताल में किसी गरीब का इलाज होता नहीं दिखाई दे रहा है न किसी पुलिस थाने में बिना पैसे लिये रिपोर्ट तक दर्ज हो पा रही है, न ही सड़कों की दशायें कुछ खास बेहतर बन सकी हैं। प्रदेश सरकार के प्रशासनिक मुख्यालय वल्लभ भवन में कोई भी काम बिना भेंट पूजा के होता नहीं दिखाई दे रहा है। पुलिस मुख्यालय का तो सबसे बुरा हाल है। पुलिस महानिर्देशक के आदेश का पालन स्वयं मुख्यालय के ए.डी.जी. तक करने से परहेज करते दिखाई देते हैं। कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है। जोन आई.जी. व पुलिस अधीक्षकों को हाल तो और भी बुरा है। प्रदेश के ज्यादातर पुलिस थानों में ऊँची जाति के थानेदार तैनात हैं जो ऊँची बोली लगाकर कानून की धारायें बेच रहे हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस की तरह महिला अत्याचारों में प्रदेश नंबर एक पर आ चुका है। प्रदेश की जनता में काफी बेचैनी है विपक्षी दल भी कुछ संगठित दिखाई देने लगे हैं।

सत्ता का बदला जाना काफी संभव लगता है। नेशनल क्राईम ब्यूरो के आंकड़ों में मध्य प्रदेश काफी आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। विकास की खबरों की जगह मंत्रियों के भ्रष्टाचारों की चर्चायें उन्हें न्यायालयों द्वारा वारंटों से बुलाने की खबरें पढ़ी जा रही हैं। उधर म.प्र. कुपोषण के मामले में म.प्र. एक नंबर में है। यहां तक दलित आदिवासी बच्चों के ज्यादातर तो टीके भी नहीं लगवा पाई सरकार। अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के ज्यादातर पुलिस थाने सिर्फ और सिर्फ कागजों पर हैं। उनमें न भवन हैं न डी.एस.पी. व निरीक्षकगण जिससे उन पर होने वाले अत्याचारों में भी भारी बाढ़ आ गई है। मुरैना, श्योपुर, ग्वालियर, भिण्ड आदि में तो थाने नाम मात्र के हैं। ऐसा ही आलम पूरे सूबे का है। इस मामले में भिण्ड सांसद डॉ. भागीरथ प्रसाद को भी अवगत कराया गया पर नतीजा शिफर ही रहा है।

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)

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