गुरु चाहता है कि शिष्य गुरु बने
आस्था : सनातन धर्म में गुरु और शिष्य की सम्बन्ध अहम रहा है। गुरु दक्षिणा उस वक्त दी जाती है या गुरु उस वक्त दक्षिणा लेता है जब शिष्य में सम्पूर्णता आ जाती है। गुरु के पास का समग्र ज्ञान जब शिष्य ग्रहण कर लेता है और गुरु के पास कुछ भी देने के लिए शेष नहीं रह जाता तब गुरु दक्षिणा सार्थक होती है। सनातन धर्म में गुरु दक्षिणा का महत्व बहुत अधिक माना गया है। गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब अंत में शिष्य अपने घर जाता है तब उसे गुरु दक्षिणा देनी होती है। गुरु दक्षिणा का अर्थ कोई धन-दौलत से नहीं है। यह गुरु के ऊपर निर्भर है कि वह अपने शिष्य से किस प्रकार की गुरु दक्षिणा की मांग करे। गुरु अपने शिष्य की परीक्षा के रूप में भी कई बार गुरु दक्षिणा मांग लेता है। कई बार गुरु दक्षिणा में शिष्य ने गुरु को वही दिया जो गुरु ने चाहा।
गुरु के आदेश का पालन करना शिष्य के जीवन का परम कर्तव्य बन जाता है और कई बार तो यह जीवन-मरण का प्रश्न भी बना है। विवेकानंद ने अपने गुरु के आदेश से पूरे विश्व में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार किया। छत्रपति शिवाजी अपने गुरु के आदेशानुसार शेरनी का दूध निकालकर ले आए और गुरु दक्षिणा के रूप में पूरे महाराष्ट्र को जीतकर अपने गुरु के चरणों में रख दिया था। कृष्ण व बलदेव ने सांदीपनि के आश्रम में कुछ ही महीनों में समस्त प्रकार की विद्या ग्रहण कर शिक्षा समाप्त कर दी। इसके अनंतर गुरु दक्षिणा देने की बारी आई। गुरु ने कृष्ण से बहुत दिन पहले उनके पुत्र को समुद्र में एक मगर निगल गया था, उसी को ला देने की बात कही। कृष्ण ने अपने गुरु को पुत्र के लिए आर्त्त देखकर उनका पुत्र ला देने की प्रतिज्ञा की और कृष्ण-बलराम ने यमपुर जाकर यमराज से उनके पुत्र को वापस लाकर दिया।