गुरु पूर्णिमा 2019: गुरु के नाम पर एक सच्चे महान पुरुष थे ये 5 लोग
गुरु पूर्णिमा 2019: गुरु के नाम पर एक सच्चे महान पुरुष थे ये 5 लोग …हिन्दू धर्म में गुरूओं का स्थान सबसे ऊपर होता है। एक बार को यदि ईश्वर रूठ जाए तो गुरू के पास जा सकते हैं लेकिन अगर गुरू ही नाराज है तो स्वयं भगवान भी उस इंसान का कुछ नहीं कर सकते। इसी कारण महान संत कबीरदास ने कहा कि, ‘गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो मिलाये’। मतलब कि गुरू का स्थान भगवान से भी कई गुना ज्यादा बड़ा होता है। गुरूओं की इसी भूमिका के कारण पूरे भारत में गुरू पूर्णिमा मनाई जाती है। इस वर्ष यानि 2019 में गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई को है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन महाभारत ग्रंथ के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। हमारे इतिहास में गुरूओं की भूमिका सर्वश्रेष्ठ रही है। गुरू के मार्गदर्शन के बिना शिष्य अधूरा होता है। यहां आप जानेंगे उन 5 गुरुओं के बारे में जिन्होंने अपने ज्ञान और मार्गदर्शन से अपने शिष्यों को इस संसार में महान बना दिया…
इनका जन्म केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। इनके पिता शिव गुरु और माता का नाम सुभद्र था। छोटी उम्र में ही आदि शंकराचार्य के ऊपर से पिता का साया उठ गया था। माता द्वारा उन्हें शिक्षा प्राप्ति के लिए गुरुकुल भेजा गया। गुरुकुल में उनके गुरुजन उनके ज्ञान को देखकर हैरान हो गए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि शंकराचार्य को पहले से ही सभी धर्मग्रंथ ,वेद , पुराण उपनिषद का ज्ञान था।
गुरू द्रोणाचार्य द्वापर युग के महान गुरूओं की श्रेणी में आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म उत्तरांचल की राजधानी देहरादून में हुआ था। द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे। उन्हे महान गुरू इसलिए माना जाता है क्योंकि इन्हें अस्त्र-शस्त्र का भी ज्ञान था, इन्होंने ही अर्जुन को महान धनुरधारी बनाया था और महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह का निर्माण भी इनके द्वारा किया गया था। शास्त्रों के अनुसार गुरु द्रोण के गुरु भगवान परशुराम थे।
श्री कृष्ण की लीलाओं के बारे में कौन नहीं जानता। उन्होंने ही महाभारत के समय अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। जब अर्जुन युद्ध भूमी में हार मान गए थे और अपने सगे-संबंधियों के सामने हथियार चलाने से मना कर दिया था, तब श्री कृष्ण ने ही अर्जुन को हिम्मत दी थी और उन्हें जिंदगी का पाठ पढ़ाया था।
आचार्य चाणक्य को कौन नहीं जानता। इन्होंने चाणक्य नामक ग्रन्थ की रचना की थी, जिसमें इन्होंने अपनी चतुराई और अनुभव से जीवन के हर पहलू पर अपने विचार दिए हैं। और ये विचार आज के समय में भी सच साबित होते हैं। चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को जीवन के हर एक पहलू के बारे में बताया और उसे एक सम्राट बनने के योग्य बनाया।
इनका जन्म सन् 1608 में राव नवमी के दिन माना जाता है। यह महाराष्ट्र के जालना गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके पिता सूर्यजीपन्त और माता का नाम राणुबाई था। समर्थ रामदास वीर छत्रपति शिवाजी महराज के गुरु थे। इनका नाम महाराष्ट्र के महान संतों में शामिल है। रामदास बहुत ही बड़े राम भक्त कहे जाते थे। समर्थ रामदास के समाधी दिवस को “दास नवमी” के रूप में मनाया जाता हैं।