गैंगस्टर संतोष झा की कोर्ट परिसर में हत्या, नक्सली से बना गिरोह का सरगना
पटना : एक नक्सली जो कुछ ही सालों में बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन बैठा। जेल में बंद रहकर भी वो अपने गैंग का सुचारू रूप से संचालन करता था। दिखने में स्मार्ट और शांत प्रवृत्ति का शातिर अपराधी संतोष झा शिवहर जिले के पुरनहिया थानाक्षेत्र का रहने वाला था। मंगलवार को कोर्ट में पेशी के दौरान उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिससे पुलिस और प्रशासनिक महकमे में खलबली मच गई है।संतोष झा का गिरोह मिथिलांचल का सबसे बड़ा लेवी वसूलने वाला गिरोह था। इसका कारोबार बिहार सहित दूसरे राज्यों और नेपाल तक फैला हुआ था। संतोष झा का परिवार असम में रहता है। इसने बिहार लिबरेशन आर्मी नाम का संगठन बना रखा था। संतोष झा पहले नक्सली था, बाद में धीरे-धीरे उसने अपने गिरोह का विस्तार किया और उत्तर बिहार का गैंगस्टर बन बैठा। उसने सीतामढ़ी, शिवहर, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, बेतिया, गोपालगंज, दरभंगा आदि जिलों में उसने अपना जाल फैला रखा था और जेल के भीतर से ही अपना गैंग चलाता था। उसे देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि वो एक गैंगस्टर है।
संतोष झा बीते 16 साल से बिहार में अपराध की दुनिया में सक्रिय था। 2002 में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाला संतोष झा तीन बार गिरफ्तार हो चुका था। दरभंगा में दो इंजीनियरों की मौत के बाद वह लाइम लाइट में आया और पता चला कि वह पहले नक्सली था और बाद में अपराधी बना। अपना खुद का गिरोह बनाने वाला संतोष झा कंस्ट्रक्शन कंपनियों से करोड़ों लेवी वसूल चुका था। पहले तो वो खुद को नक्सली बताकर वारदात को अंजाम दिया करता था, बाद में उसने गैंग के गुर्गों को इसके लिए बहाल कर लिया और उन्हें ट्रेनिंग देकर उनसे अपराध करवाता था और लेवी की वसूली करवाता था। शुरू से ही उसके निशाने पर रोड कंस्ट्रक्शन निर्माण की कंपनियां रही थीं। पुलिस ने गिरफ्तारी से पहले संतोष झा पर एक लाख का इनाम भी घोषित रखा था। 2010 में जिला पार्षद नवल राय की हत्या के बाद संतोष झा का नाम अपराध की दुनिया में तेजी से उभरा था।2010 के अक्टूबर महीने में विधानसभा चुनाव के दौरान उसने लैंड माइंस बिछाकर पांच पुलिस वालों की हत्या कर दी थी। इसके बाद उसने एक के बाद एक कई वारदात को अंजाम दिया था। उसके बाद गोपालगंज, बेलसंड, सीतामढी में रोड कंस्ट्रक्शन का काम करने वाली कंपनियों को इसने निशाना बनाना शुरू कर दिया।
2004 में पहली बार संतोष झा को हथियारों के साथ पटना पुलिस ने गिरफ्तार किया था। करीब तीन साल जेल में रहने के बाद जब वह रिहा हुआ तब उसके बाद उसने कई हत्याकांड को अंजाम दिया। करीब छह महीने तक बिहार पुलिस की स्पेशल टीम की कोशिश के बाद फरवरी 2014 में कोलकाता के एक फ्लैट से पकड़ा गया था। कोलकाता में जिस वक्त इसकी गिरफ्तारी हुई उस वक्त वह डॉक्टर बनकर एक फ्लैट में रह रहा था। हालांकि, एसटीएफ पुलिस की टीम कोलकाता में जब गिरफ्तार करने पहुंची तब इसने खुद को डॉक्टर बताया था। लेकिन, पुलिस पुख्ता रिपोर्ट के बाद पहुंची थी। लिहाजा इसे गिरफ्तार करके बिहार ले आई। संतोष झा के गिरोह के पास एके-47 राइफले मौजूद हैं जिनसे गिरोह के सदस्यों के द्वारा बड़ी वारदात को अंजाम दिया जाता है। संतोष झा ने नक्सलियों के ग्रुप के तर्ज पर अपना गैंग तैयार किया था। नक्सली कमांडर को धोखे से मरवाकर संतोष गिरोह का सरगना बन बैठा। इसके बाद उसने नक्सली ग्रुप को क्रिमिनल ग्रुप मे तब्दील कर दिया और पूरे इलाके का सबसे बड़ा लेवी वसूसने वाला गिरोह बन गया। इस ग्रुप में लड़के एक सिंडिकेट की तरह काम करते हैं। करीब 40 ऐसे लड़के थे, जिन्हे संतोष झा गिरोह बाकायदा सैलेरी भी देता है। ये लोग इस गिरोह के लिए सूचनाएं जुटाने और शिकार तक पहुंचाने का काम करते थे। इस सबपर संतोष झा जेल के भीतर से ही नजर रखता था। उसके गुर्गे लेवी वसूलने में एक्सपर्ट थे।
दबंग लुक के साथ गोरे चेहरे पर महंगा चश्मा, काले रंग की फुल टी-शर्ट और ब्रांडेड पैंट की शौक रखने वाला संतोष झा के अपराध की दुनिया में आने की कहानी पूरी तरह फ़िल्मी है। शिवहर जिले के पुरनहिया थाना अंतर्गत दोसितयां गांव निवासी संतोष झा के पिता चंद्रशेखर झा कभी गांव के हीं दबंग जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले नवल किशोर राय के जीप का ड्राइवर था। जिनके घर वह नौकरी कर रहे था उनसे ही किसी बात को लेकर अनबन हो गई और दबंग जमींदार ने चंद्रशेखर झा की जमकर पिटार्इ की थी। पिता पर हुए जुल्म ने संतोष के भीतर बदले की आग सुलगा दी और वह नक्सलियों के साथ हो लिया। साल 2003 में उसके ग्रुप ने पहली बार जमींदार नवल किशोर राय के घर पर हमला कर दिया था। फिर उसने 15 जनवरी 2010 को अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सीतामढ़ी के राजोपटटी में जमींदार से जिला पार्षद बने नवल किशोर राय को उसके घर के बाहर गोलियों से भून दिया था। कहा जाता है कि उसने यह हत्या अपने पिता की पिटार्इ का बदला लेने के लिए किया था। बाद के दिनों में नक्सलियों से उसका जुड़ाव और भी बढ़ गया था। एरिया कमांडर की हत्या के बाद वह खुद लीडर बन बैठा और नक्सली संगठन को अापराधिक गतिविधियों में बदल उसने अपना अलग संगठन बिहार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी बना लिया और उसके बाद उत्तर बिहार में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन बैठा।