गैर गांधी परिवार से अध्यक्ष चुन सकती है कांग्रेस, पार्टी में बड़े बदलाव के आसार
जमीनी स्तर पर खत्म होते देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के लिए बिखरती पार्टी सिमटता जनाधार आज कड़वा सच है. चाहे पंचायत जैसे चुनाव हों या लोकसभा विधानसभा के चुनाव, कांग्रेस का हर जगह सूपड़ा साफ होता आ रहा है. कई जगहों पर कांग्रेस अपना खाता तक नहीं खोल पाती, जो हकीकत है पार्टी के लिए बड़ी चिंता भी. रही सही कसर कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी पूरी कर देती है. चुनावों अखाड़ों में विपक्षी दलों के अलावा कांग्रेस अपने अंदर की लड़ाई से भी लड़ रही है. साथ ही केंद्र में कांग्रेस मुख्य विपक्ष की भूमिका ठीक से निभा भी नहीं पा रही है. पार्टी के अंदर तमाम विरोधाभासी आवाजों दूसरे सहयोगी दलों के दबाव के बीच कांग्रेस अब खुद को सक्रिय मोड में लाने की रणनीति तैयार कर रही है.
कांग्रेस में अगले कुछ दिनों के भीतर शीर्ष स्तर पर बड़े बदलाव की बात कही जा रही है, जिसका संगठन से लेकर राज्यों तक असर देखा जा सकता है. कांग्रेस खुद को सक्रिय मोड में दिखाना चाहती है, जिसके लिए वह एक नया चेहरा को नियुक्त करने पर विचार कर रही है. सूत्र बताते हैं कि इसके लिए कांग्रेस में बड़े बदलाव के लिए तीन फॉर्म्युले तय किए गए हैं. सूत्र कहते हैं कि इस फॉर्मूले तहत कांग्रेस को गैर गांधी परिवार यानी गांधी परिवार के बाहर से अध्यक्ष मिल सकता है. ऐसा इसलिए कि राहुल गांधी अभी भी परिवार से अलग किसी को अध्यक्ष बनाने की अपनी बात पर कायम हैं. इसके अलावा राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष के नेता की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी मिलने की अटकलें भी हैं.
सूत्रों के अनुसार, दूसरे फॉर्म्युला यह है कि सोनिया गांधी को ही 2024 तक पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया जा सकता है. जिसको लेकर पार्टी उनकी आग्रह कर सकती है. तीसरे फॉर्म्युले के तहत राहुल गांधी पर दोबारा से कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए दबाव बनाया जा सकता है. हालांकि सूत्रों यह भी कहते हैं कि राहुल गांधी के पास पार्टी नेतृत्व दोबारा हासिल करने का लगातार विकल्प था, मगर वह खुद इस पद के लिए तैयार नहीं हैं. मालूम हो कि चुनावों में कांग्रेस कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर पा रही है. जिसका उदाहरण बंगाल में हालिया विधानसभा चुनावों में देखने को मिला, जहां उसे एक भी सीट नहीं मिली. कुछ महीने पहले ही 4 राज्यों एक केंद्र शासित प्रदेश में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में एक भी जगह अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई. सीएम की कुर्सी तो छोड़िए विपक्ष की भूमिका के लिए भी वह दूर दूर तक नजर नहीं आई. ज्ञात है कि हाल ही में केरल, तमिलनाडु, असम, बंगाल पुडुचेरी में विधानसभा के चुनाव हुए थे.
उधर, कुछ राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के अंदर की गुटबाजी खुलकर सड़क पर आ चुकी है. चाहे राजस्थान हो या पंजाब हरियाणा हो, कांग्रेस में घमासान बढ़ता जा रहा है. राजस्थान में अशोक गहलोत सचिन पायलट गुट के बीच लड़ाई बहुत पहले से चल रही है, जो अभी तक खत्म नहीं हो सकती है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह नवजोत सिंह सिद्धू के बीच वर्चस्व की लड़ाई कांग्रेस के लिए मुसीबत बनी हुई है तो हरियाणा में हुड्डा समर्थकों के दबाव से हरियाणा कांग्रेस में संकट में हैं.