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गैस, शौचालय, मकान देकर भी ग्रामीणों को खुश नहीं कर पाई मोदी सरकार

जिन तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में भाजपा ने सत्ता गंवाई है, वहां के शहरी इलाकों में अभी भी भाजपा का दबदबा बना हुआ है मगर ग्रामीण इलाकों में भाजपा की पकड़ कमजोर हुई है। बावजूद इसके कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अधिकांश ग्रामीण आबादी को उज्ज्वला गैस कनेक्शन, शौचालय और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिए लेकिन ग्रामीण आबादी मोदी सरकार की इन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के बाद भी भाजपा को वोट नहीं दे सकी। 11 दिसंबर को इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने कॉलम में अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने बताया है कि देश की 70 फीसदी ग्रामीण आबादी को केंद्र और राज्य की सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ तो मिला लेकिन सब्सिडी हासिल करने के लिए उन्हें लंबी कतार का सामना करना पड़ रहा है। बतौर भल्ला आज भी बड़ी संख्या में लाभुकों को शौचालय के लिए मिलने वाली सब्सिडी खाते में ट्रांसफर नहीं हो सकी है। इस वजह से ग्रामीण आबादी का एक बड़ा वर्ग भाजपा सरकार से गुस्से में है। उन्होंने लिखा है कि ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना, ‘जन-धन योजना’, ‘उज्ज्वला योजना’, ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का लाभ ग्रामीण आबादी को तो मिला लेकिन उसकी सब्सिडी नहीं मिलना या उसके लिए लंबा इंतजार करना मतदाताओं को ज्यादा खटका। कई जगहों पर तो स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण के लिए 12 हजार रुपये की आर्थिक सहायता पाने के लिए लोगों को पांच-पांच हजार रुपये तक खर्च करने पड़े हैं।

गैस, शौचालय, मकान देकर भी ग्रामीणों को खुश नहीं कर पाई मोदी सरकार इंडियन एक्सप्रेस में 12 दिसंबर को लिखे अपने आलेख में वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार हरीश दामोदरन ने भी लिखा है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल में ग्रामीण भारत में आधारभूत संरचनाओं के विकास पर जोर दिया। गांवों को सड़कों से जोड़ा, वहां बिजली पहुंचाई, पीएम आवास योजना के तहत घर बनवाए, उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दिलवाए, घर-घर शौचालय बनवाए और गांवों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी भी मुहैया करवाई, बावजूद इसके ग्रामीण आबादी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को नकार दिया। उन्होंने लिखा है कि ग्रामीण आबादी के लिए ये नाकाफी रहे हैं क्योंकि ग्रामीण मतदाताओं की आय नहीं बढ़ सकी, जबकि महंगाई भी बढ़ी। बतौर दामोदरन, ग्रामीण किसानों को उनकी उपज का सही दाम भी नहीं मिल रहा है, रोजगार के अवसर भी उन्हें नहीं मुहैया हो पा रहे हैं। इनके अलावा न्यूनतम मजदूरी भी जस की तस बनी हुई है। इन वजहों से उनकी आर्थिक दशा में कोई सुधार नहीं हुआ, जबकि उन्हें उम्मीद थी कि मोदी सरकार के आने के बाद से उनके आर्थिक हालात में बदलाव होंगे। अगर ग्रामीण इलाकों में यही हवा बनी रही तो 2019 में नरेंद्र मोदी के लिए जीत पाना मुश्किल हो सकता है।

बता दें कि साढ़े चार साल के कार्यकाल में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने ग्रामीण इलाकों में कई सुधार और कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं। भाजपा को भी इसका भरोसा था कि उनकी कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित परिवार उन्हें वोट करेंगे मगर बड़े पैमाने पर ऐसा होता नहीं दिखा। आंकड़ों पर गौर करें तो पीएम आवास योजना-ग्रामीण के तहत मोदी सरकार ने चार सालों के दौरान करीब एक करोड़ घर बनवाए जो 2015-16 के मुकाबले तिगुना से ज्यादा है। इनमें से 27 फीसदी सिर्फ उन्ही तीन राज्यों में है, जहां भाजपा हारी है। उज्ज्वला योजना के तहत अक्टूबर 2018 तक कुल 24.72 करोड़ लोगों को गैस कनेक्शन बांटे गए हैं। जून 2015 तक यह संख्या 15.33 करोड़ थी।

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