गोरखपुर उपचुनाव: घर में मिली हार से ‘ब्रैंड योगी’ को लगा तगड़ा झटका
करीब 29 साल बाद गोरखपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। अपने घर में इस हार से न केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विजयी छवि को धक्का पहुंचा है, बल्कि इसका असर चुनावी हार से बढ़कर होगा। वस्तुत: सीएम योगी स्थानीय सांसद से बढ़कर हैं। वह गोरक्षनाथ पीठ के महंत हैं जो स्थानीय लोगों के विश्वास का केंद्र है। गोरखपुर से वह 5 बार से लगातार सांसद थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर उनका काफी प्रभाव है।
छोटे महंत’ के रूप में उनका उद्भव हुआ और लोगों का समर्थन मिला जो ‘ब्रैंड योगी’ का अभिन्न हिस्सा बन गया। इससे वह राष्ट्रीय नेतृत्व की नजर में आए और उन्हें बाद में यूपी के सीएम पद के लिए चुना गया। बीजेपी नेतृत्व के इस कदम के बाद महंत आदित्यनाथ मुख्यधारा के नेता बन गए और उन्हें हिंदुत्व का पोस्टर बॉय, एक प्रशासक और आधुनिक सोच वाला सीएम कहा जाने लगा।
ऐसे समय में जब पूर्वोत्तर भारत, गुजरात, केरल और कर्नाटक में चुनाव प्रचार के लिए जब उनकी मांग रही, घर में मिली हार से उन्हें तगड़ा झटका लगा है। गोरखपुर उपचुनाव में भी उन्होंने काफी प्रचार किया था लेकिन यहां पर समाजवादी पार्टी की जीत से योगी के प्रशंसकों का दिल टूट गया है। इसका असर पूरे पूर्वी यूपी में पड़ सकता है। यूपी में बीजेपी के प्रभुत्व के बाद सीएम योगी को एक नैशनल लीडर कहा जाने लगा था जो पीएम मोदी की विरासत को संभाल सकता है।
पहले भी आईना दिखा चुका है गोरखपुर हालांकि यह केवल अटकल ज्यादा थी और यूपी में जीत के लिए ओबीसी समुदाय के नेता का शीर्ष नेतृत्व में होना बेहद जरूरी है। इस हार के बाद विपक्षी नेता सीएम योगी को और कमजोर करने की पूरी कोशिश करेंगे। बता दें, गोरखपुर शहर सत्ता आईना दिखाने के लिए जाना जाता है। 47 साल पहले इस लोकसभा की एक विधानसभा में जनता ने तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को हरा कर उनकी कुर्सी छीन ली थी। 2001 में मेयर की कुर्सी पर यहां जनता किन्नर को भी बिठा चुकी है।
गोरखपुर में पिछले 28 साल से गोरक्षनाथ मठ और 26 साल से लोकसभा सीट बीजेपी का अभेद्द दुर्ग रहा है। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में जिसमें योगी आदित्यनाथ महज 7 हजार वोटों से चुनाव जीते थे, उसको छोड़कर यहां कभी भी बीजेपी के सामने कोई चुनौती नहीं रही। लेकिन सत्ताधरियों को वक्त-वक्त पर गोरखपुर की जनता चौंकने से भी नहीं चूकती है, फिर वह योगी आदित्यनाथ ही क्यों न हों।