उत्तराखंडराज्य

ग्रामीण करेंगे चीन-नेपाल सीमा के जंगल की निगहबानी

पिथौरागढ: चीन और नेपाल सीमा क्षेत्र के जंगलों व वन्यजीवों की निगहबानी अब स्थानीय ग्रामीण करेंगे। अवैध शिकार और तस्करी पर अंकुश लगाने में विफल रही सरकार ने नई कार्ययोजना बनाई है। इसके लिए पूर्वोत्तर राज्यों के मॉडल को अपनाया जा रहा है। उत्तराखंड जैसे ही विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले हिमालयी राज्य नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम में जंगलों और जंगली जानवरों की सुरक्षा का जिम्मा ग्रामीण ही संभालते हैं। राज्यों का वन महकमा इसमें ग्रामीणों को बाहरी मदद मुहैया कराता है।

ग्रामीण करेंगे चीन-नेपाल सीमा के जंगल की निगहबानी

 अपने जंगलों के प्रति उत्तरदायित्व की भावना के चलते पूर्वोत्तर के राज्यों में जंगली जानवरों के अवैध शिकार और तस्करी के मामले नगण्य हैं, जबकि इस मामले में अपना राज्य उत्तराखंड देश के संवदेनशील राज्यों में शामिल है।  तमाम कवायद के बाद भी जंगली जानवरों के शिकार और तस्करी के मामलों में विफल सरकार ने अब पूर्वोत्तर के मॉडल को राज्य में लागू करने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत धारचूला तहसील के बौन गांव से होगी। 

लगभग छह हजार फिट की ऊंचाई पर बसे इस गांव की सीमा से विशाल जंगल लगा हुआ है। इस जंगल में काकड़, चीतल, भालू, गुलदार जैसे तमाम जानवर हैं। इस जंगल और जानवरों की देखरेख ग्रामीणों के जरिये कराए जाने के लिए वन विभाग ने योजना तैयार कर ली है। इसके साथ ही ग्रामीणों को वनोपज के माध्यम से स्वरोजगार के अवसर भी दिए जायेंगे।

योजना को कम्यूनिटी रिर्जव (सामुदायिक आरक्षित) नाम दिया गया है। योजना के परिणाम सार्थक रहे तो राज्य के अन्य गांव भी इस योजना में शामिल किए जाएंगे। प्रभागीय वनाधिकारी पिथौरागढ़ विनय भार्गव के मुताबिक कम्यूनिटी रिजर्व योजना के लिए बौन गांव को चुना गया है। ग्रामीणों द्वारा किए जाने वाले कार्यों का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। नए वर्ष में इस योजना की शुरुआत होगी। योजना जंगलों की देखरेख में महत्वपूर्ण साबित होगी। 

यह होगा योजना में 

-जंगली जानवरों की सुरक्षा

-वन्यजीवों के अवैध शिकार पर रोक 

-जंगल में पेड़ों के अवैध कटान पर रोक 

-जंगल में पौधरोपण 

-वनाग्नि की रोकथाम 

-वनों के माध्यम से ग्रामीणों की आजीविका में सुधार 

अंग्रेजों ने कर दिया था जंगलों से दूर 

भारत में औपनिवेशिक काल से पहले ग्रामीण जंगलों की देखरेख खुद ही करते थे। अंग्रेजों ने अपने व्यावसायिक फायदे के लिए ग्रामीणों को जंगल से दूर करने के लिए वन कानून थोपे और जंगलों को कई श्रेणियों में बांट दिया। इससे ग्रामीणों का जंगलों के प्रति मोह कम हो गया। आजादी के बाद भी सरकारों ने ग्रामीणों को जंगलों से दूर रखने का ही काम किया। 

 

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