दस्तक टाइम्स एजेन्सी/जिस उम्र में लोग अपनी चिंता में घुले जाते हैं उस उम्र में एक शख्स ग़रीब बच्चों की चिंता में लगा हुआ है। बिना किसी स्वार्थ के। कभी उनके लिए स्टूल बनवाता है तो कभी कपड़े इकट्ठे करता है।
मयूर विहार फेज-1 में ही रहने वाले 72 वर्षीय राम गोपाल गुप्ता न होते तो शायद बच्चे एक पेड़ के नीचे ही कड़ाके की ठंड में पढ़ रहे होते। लेकिन उन्होंने बच्चों के स्कूल को ही बदल दिया है।
इस स्कूल का नाम बनफूल प्राथमिक विद्यालय है जो दिल्ली के मयूर विहार फेज-1 के यमुना खादर क्षेत्र में है। एक पेड़ के नीचे चंद बच्चों से शुरू हुए इस स्कूल में इस समय करीब 1000 बच्चे हैं। बच्चे बहुत ही गरीब घरों से हैं, जिसके चलते उनके पास सुविधाओं का अभाव बना रहता है।
ऐसे में मयूर विहार फेज-1 में ही रहने वाले 72 वर्षीय राम गोपाल गुप्ता ने इन गरीब घरों से आने वाले बच्चों को एक अच्छा भविष्य देने में मदद की। गुप्ता जी ने इन बच्चों को कपड़े, स्वेटर, स्टेशनरी और कभी-कभी आर्थिक सहायता भी प्रदान की। वे स्कूल के बच्चों को करीब 150 स्वेटर दान कर चुके हैं।
ठंड का मौसम शुरू होते ही जमीन पर बैठकर पढ़ते इन बच्चों को देखकर उन्होंने सोचा कि कैसे इन बच्चों के लिए बैठने का इंतजाम किया जाए। इसके बाद उन्होंने बच्चों को स्टूल देने का निर्णय लिया।
गुप्ताजी की इस नेक सोच में आड़े आई पैसों की दिक्कत। आखिर इतने सारे बच्चों को स्टूल मुहैया कराना कोई आसान काम नहीं था। ऐसे में उन्होंने एक मुहिम शुरू की, जिसके तहत उन्होंने अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों से उनके घर में पड़ी बेकार लकड़ी फेंकने के बजाए उन्हें दे देने को कहा।
लोगों के घरों से मिली बेकार लड़की का इस्तेमाल करके गुप्ताजी अब तक करीब 70-80 स्टूल बनवा चुके हैं। जो लकड़ी लोगों के लिए कूड़े जैसी थी, उसे इन्होंने बच्चों की जरूरत का सामान बना डाला।
इसके अलावा पिछले करीब 10 सालों से वे अपने घरे के आस पास काम करने वाले गार्ड और अन्य मजदूरों को रोजाना सुबह 6 बजे के करीब चाय पिलाने का काम कर रहे हैं।
सन् 2000 में रिटायर हो चुके राम गोपाल गुप्ता ने अपने परिवार की परंपरा को कायम रखते हुए लोगों की मदद के लिए खुद को समर्पित कर दिया है। उनका कहना है कि उनके पिता भी इसी तरह लोगों की मदद किया करते थे।गुप्ता जी के साथ-साथ ‘शब्द’ नाम का एनजीओ चलाने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के वकील आर के सक्सेना भी स्कूल को सरकार की तरफ से सुविधाएं दिलवाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।
इस संबंध में वे मनीष सिसौदिया को एक पत्र भी लिख चुके हैं, हालांकि अभी तक इस स्कूल को दिल्ली सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिल सकी है।