घर की मुर्गी दाल बराबर
देश में नई सरकार बनने से पहले यह नारा दिया गया था कि, ‘अच्छे दिन आयेंगे’। अब पता नहीं अच्छे दिन आये या नहीं, लेकिन महंगाई रूपी सुरसा का मुंह पहले से भी बड़ा हो गया है। पहले प्याज ने देशभर को रुलाया फिर अब दालों की बारी है। उधर, जमाखोरों ने करोड़ों रुपए का प्याज गोदाम में भरकर मुनाफाखोरी के फेर में सड़ा डाला, लेकिन बाजार में माल नहीं उतारा। अब थाली से दाल गायब हो गई है। हालत यह हो गई है कि दाल के दाम और मुर्गे के दाम लगभग बराबर हो गए हैं। जब प्याज महंगा हुआ तो सरकार समर्थक कहते घूम रहे थे कि प्याज खाना कोई जरूरी तो नहीं है। बिना प्याज के भी भोजन स्वादिष्ट बनता है। पर अब दाल महंगी होने पर उनके लब सिले हुए हैं। भगवा पार्टी के एक नेता पता नहीं अपने शीर्ष नेतृत्व की प्रशंसा कर रहे थे कि आलोचना, पर वे कह रहे थे कि सरकार ने बहुत सी कहावतों को चरितार्थ किया है, उनमें से एक यह भी कि ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’। अब जब दाल और मुर्गी के दाम एक समान हो जायेंगे तो यह कहावत तो कही ही जायेगी।