चंद्रबाबू नायडू ने ईवीएम चोर को बताया एक्सपर्ट
नई दिल्ली : मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू चुनाव आयोग के पास पहले फेज के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत लेकर पहुंचे। चंद्रबाबू नायडू ने यह दावा अपने एक एक्सपर्ट के हवाले से किया था। जब चुनाव आयोग ने उनके इस ‘एक्सपर्ट’ को अपने दावे के बारे में और ज्यादा डीटेल के साथ आने के लिए कहा, तो पता चला कि यह एक्सपर्ट और कोई नहीं बल्कि हैदराबाद का रहने वाला रिसर्चर हरि प्रसाद है, जो 2010 में ईवीएम चोरी के मामले में गिरफ्तार हुआ था। हरि प्रसाद टीडीपी चीफ चंद्रबाबू नायडू के उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा था, जिसने शाम को 4 बजे चुनाव आयोग पहुंचकर अधिकारियों से मुलाकात की थी। चुनाव आयोग के अधिकारियों को जब कुछ शक हुआ तो उन्होंने नायडू के एक्सपर्ट हरि प्रसाद का इतिहास खंगाला। शुरुआती जांच में पता चला कि यह वही शख्स है जो हमेशा से दावा करता आया है कि ईवीएम में आसानी से गड़बड़ी की जा सकती है। अपने इस दावे को साबित करने के लिए उसने एक विदेशी एक्सपर्ट की मदद से एक ईवीएम भी चुराई थी। चुनाव आयोग का शक उस वक्त यकीन में बदल गया जब हरि प्रसाद टीडीपी की लीगल सेल के साथ शाम को 4 बजे उप चुनाव आयुक्त सुदीप जैन से मुलाकात करने पहुंचा। जैसे ही वह सुदीप जैन के दफ्तर पहुंचा, अधिकारियों ने उसका आपराधिक रेकॉर्ड सामने रख दिया और विरोध जताया। इसके बाद हरि प्रसाद और उसके साथ आए बाकी लोग जैन के दफ्तर से निकल गए। इसके तुरंत बाद चुनाव आयोग ने टीडीपी लीगल सेल के चीफ को सख्त लहजे में एक पत्र लिखा और पूछा कि आखिर नायडू के साथ आए प्रतिनिधिमंडल में एक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कथित ‘एक्सपर्ट’ को जगह कैसे मिली? गौरतलब है कि हरि प्रसाद को 2010 में ईवीएम चुराने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि बाद में उसे जमानत मिल गई थी। वह ईवीएम पर 2009 से ही सवाल उठाता रहा है। चुनाव आयोग द्वारा 2009 में आयोजित हैकथॉन में भी उसने हिस्सा लिया था, मगर यह साबित नहीं कर पाया कि ईवीएम को हैक या टैंपर किया जा सकता है। चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन से लेकर देश में चुनाव करवाने तक की जिम्मेदारी भारत के चुनाव आयोग की है। चुनाव आयोग ही राजनीतिक दलों को मान्यता देता है और उनको चुनाव चिह्न प्रदान करता है। मतदाता सूची भी भारत का चुनाव आयोग ही तैयार करवाता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों के लिए आचार संहित तैयार करना और उसको लागू करवाना भी चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए भारत के चुनाव आयोग के पास काफी ताकत हैं। चुनाव आयोग में तीन सदस्य होते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा दो और चुनाव आयुक्त होते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की उम्र, दोनों में से जो पहले हो, की आयु तक होता है। अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 साल या 62 वर्ष की उम्र, दोनों से जो पहले हो, तक होता है। भारत का चुनाव आयोग एक संवैधानिक और स्वायत्त संस्था है, जिस तरह भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। सरकार इसके कामकाज में दखल नहीं दे सकती है या किसी तरह इसके कामकाज को प्रभावित नहीं कर सकती है। मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बराबर होता है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को आसानी से नहीं हटाया जा सकता है। उनको महाभियोग की प्रक्रिया से ही हटाया जा सकता है। चुनाव आयोग सरकार को भी निर्देश जारी कर सकता है। चुनाव संबंधित नियमों का उल्लंघन करने पर चुनाव आयोग राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। चुनाव आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सत्ताधारी पार्टी सरकारी ताकतों का दुरुपयोग नहीं करे। चुनाव आयोग की ताकत इस बात से भी समझ सकते हैं कि चुनाव के दौरान हर सरकारी कर्मचारी चुनाव आयोग के अधीन काम करता है न कि सरकार के अधीन। देश के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन ने यह दिखाया था कि अगर चुनाव आयोग खुद पर आ जाए तो क्या कर सकता है। जब वह देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे, उस समय चुनाव में बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं के बीच पैसे और चीज बांटकर उनको लुभाना, सत्ता का दुरुपयोग, ये सारी चीजें आम बात बन गई थीं। उन्होंने इस सब बुराइयों पर लगाम कसा। देश के चुनाव के इतिहास में पहली बार उन्होंने असरदार ढंग से आचार संहिता को लागू किया। चुनाव के दौरान भुजाबल और धनबल पर लगाम लगाया। जिन उम्मीदवारों ने चुनाव नियमों का उल्लंघन किया उनके खिलाफ केस दर्ज करवाया और उनको गिरफ्तार करवाया। उन्होंने भ्रष्ट उम्मीदवारों का साथ देने वाले अधिकारियों पर भी कड़ी कार्रवाई की। ऐसे अधिकारियों को उन्होंने निलंबित कर दिया। कई और मौकों पर भी चुनाव आयोग ने अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है। 1984 में कांग्रेस ने दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को हराने के लिए अमिताभ बच्चन को उतारा था। चुनाव आयोग को लगा कि उनकी फिल्में मतदाताओं को प्रभावित कर सकती हैं। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने दूरदर्शन पर उनकी किसी भी फिल्म के प्रसारण पर रोक लगा दी। सबसे बड़ी यह थी कि उस समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी लेकिन चुनाव आयोग ने कोई समझौता नहीं किया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू शनिवार को ईवीएम की शिकायत लेकर नई दिल्ली पहुंचे थे। उन्होंने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात कर आरोप लगाया कि गुरुवार को पहले चरण के दौरान भारी संख्या में ईवीएम खराब हुईं और ऐसे में 150 पोलिंग स्टेशनों पर पुनर्मतदान कराया जाए।