चमत्कारी है प्रतापगढ़ का शनि मंदिर
शनिवार को भगवान शनिदेव की विशेष आराधना की जाती है। शनि दोष के प्रभाव से व्यक्ति तर भी जाता है और परेशानी में पड़ भी जाता है। जी हां, जन्म कुंडली के विभिन्न प्रभावों और शनि के विभिन्न भावों में मौजूद रहने के कारण शनि देव अपना अलग अलग प्रभाव डालते हैं लेकिन कई बार जातक को शनि की साढ़े साती से कष्ट उठाने पड़ते हैं।
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ऐसे में शनि मंदिरों के दर्शन पुण्यदायी होते हैं। शनि मंदिर में तेल अर्पित करना काले तिल उड़द काला वस्त्र आदि दान करना पुण्यदायी होता है। शनि देव के प्राचीन धामों में महाराष्ट्र में शनि शिंगणापुर तो प्रमुख है ही लेकिन श्रद्धालु यहां न जा सके तो वे प्रतापगढ़ के शनि मंदिर में भी दर्शन कर सकते हैं।
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उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में प्रतिष्ठापित यह मंदिर बहुत ही चैतन्य है। विश्नाथगंज बाजार से यह मंदिर लगभग 2 किलोमीटर दूर है। कुशफरा के जंगल में प्रतिष्ठापित यह मंदिर बहुत प्राचीन और जागृत क्षेत्र है। भगवान को यहां शनिवार के दिन 56 भोग लगाए जाते हैं।
मंदिर के दक्षिण की ओर प्रयाग तीर्थ है तो उत्तर की ओर अयोध्या पूर्व में काशी और पश्चिम में तीर्थ गंगा स्वर्गलोक और कड़ेमानिकपुर प्रतिष्ठापित हैं। मंदिर में विराजित भगवान शनि देव की प्रतिमा स्वयं भू है। यह मूर्ति क्षेत्र के जंगल में स्थित एक टीले से मिली और फिर यहां मंदिर की प्रतिष्ठापना की गई। यहां पर शनिवार के दिन मेला लगता है। यहां आने वाले की सभी मनोकमानाऐं पूर्ण होती हैं।