‘चाबहार’ बंदरगाह खोलता है रास्ते पर समाधान नहीं
देश में पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के काम-काज का विश्लेषण चाहे जिस स्तर पर किया जाये लेकिन हॉं में हॉं मिलाने वाले तो हर अच्छे काम का श्रेय उन्हें ही देते हैं। यही वजह है कि चाबहार बंदरगाह को लेकर मीडिया में इस तरह की बातें बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गईं मानों भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जारी रणनीतिक जंग में बड़ी जीत हासिल कर ली है। जबकि हकीकत इससे कोसों दूर नजर आती है। इसे लेकर मीडिया ने जो तस्वीर पेश की है वह सच्चाई से परे है। दरअसल ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलुचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह के पहले फेज का उद्घाटन भारत के लिए बड़ी उपलब्धि माना जा रहा था। बताया जा रहा था कि यह भारत के लिए रणनीतिक तौर पर उपयोगी सिद्ध होगा। दरअसल यह बंदरगाह फारस की खाड़ी के बाहर और भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। इस प्रकार भारत के पश्चिम तट से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। चाबहार बंदरगाह का एक महत्व यह भी है कि यह पाकिस्तान में चीन द्वारा चलने वाले ग्वादर बंदरगाह से करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसलिए यहां आना-जाना बहुत ही आसान होगा। जहां तक सच्चाई की बात है तो सबसे पहले आपको बताते चलें कि चीन अपने 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे कार्यक्रम के तहत ही इस बंदरगाह को बनवा रहा है। ऐसे में पाकिस्तान को किस तरह से नजरअंदाज किया जा सकता है। दूसरा सच यह है कि इस बंदरगाह के जरिए चीन एशिया में नए व्यापार और परिवहन मार्ग खोलना चाहता है। इससे बात साफ हो जाती है कि जिसे भारत के लिए रणनीतिक तौर पर उपयोगी बताया जा रहा था वह बंदरगाह तो सही मायने में चीन और पाकिस्तान के लिए ज्यादा उपयोगी सिद्ध होने वाला है।
अब जो प्रचारित किया गया उसके मुताबिक पाकिस्तान इस रणनीतिक परियोजना का हिस्सा ही नहीं है। बावजूद इसके चाबहार परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन जब पिछले हफ्ते ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी कर रहे थे तो उस वक्त वहां पर पाकिस्तान के बंदरगाह मंत्री हासिल खान बिजेंजो भी उनके समीप ही मौजूद आखिर क्या कर रहे थे? पाकिस्तानी मीडिया ने इसे महज संयोग नहीं माना और कहा कि हासिल खान बिजेंजो को एक सोची-समझी रणनीति के तहत ही रुहानी के समीप खड़ा किया गया था। मीडिया के दावे को यदि सच मान लिया जाये तो ‘इस कदम का उद्देश्य स्पष्ट है कि आगे चलकर ईरान, भारत या अन्य किसी देश को चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ करने की इजाजत कतई नहीं देने वाला है।’ पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक ईरान और पाकिस्तान के बीच इस तरह के सहयोग का यह पहला मामला असाधारण है और यह दोनों पड़ोसी देशों के रिश्तों में आए महत्वूपर्ण बदलाव की ओर इशारा करता है। इस बात में दम भी है क्योंकि सऊदी अरब के राजपरिवार में जिस तरह का सत्ता संघर्ष चरम पर है उसे देखते हुए ईरान को लग रहा है कि वह इस्लामिक देशों का अगुवा बन सकता है। ऐसे में वह मुस्लिम बहुल पाकिस्तान को नाराज करना नहीं चाहेगा, इसलिए चाबहार मामले में उसने पाकिस्तान को भी साथ ले लिया है। यह अलग बात है कि इस रणनीतिक चाल में पाकिस्तान, ईरान के साथ जाएगा या नहीं यह भविष्य ही तय करेगा, क्योंकि इसके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव देखने को मिलेंगे।
जहां तक भारत के लिए अफगानिस्तान तक पहुंच मार्ग का सवाल है तो यह सच है कि चाबहार बंदरगाह की मदद से भारत अब पाकिस्तान से गुजरे बिना ही अफगानिस्तान तक पहुंच सकता है। फिर भी भारत इसके जरिए अपनी ताकत पाकिस्तान को दिखाने जाएगा, ऐसा मुमकिन ही नहीं है, क्योंकि चीन ऐसा होने नहीं देगा और ईरान खुद भी नहीं चाहेगा कि उसकी जमीन से पाकिस्तान को कोई अन्य देश आंख दिखाने का काम करे या उसके कंधे पर बंदूक रखकर किसी अन्य देश पर निशाना साधे। यह जरुर है कि इस बंदरगाह के जरिए भारत-ईरान-अफगानिस्तान के बीच नए रणनीतिक ट्रांजिट रूट की शुरुआत हो रही है। इसके जरिए भारत पाकिस्तान गए बिना ही अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप से भी जुड़ सकता है। इसके जरिए भारत को अपनी खाद्य सामग्री समेत अन्य वस्तु व सामान को अफगानिस्तान ले जाने में मदद मिल सकेगी। समझौते के तहत भारत इन वस्तुओं को तेजी से ईरान ले जा सकेगा और फिर नए रेल एवं सड़क मार्ग् से अफगानिस्तान तक पहुंचा सकेगा। ऐसा करते हुए पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भी हमें नहीं करना पड़ेगा और इसलिए हमारा समय भी बचेगा। यही एक अच्छी बात है, जिसे हम उपलब्धि के तौर पर दिखा सकते हैं। इसे रणनीतिक विजय कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि ईरान के लिए जितना उपयोगी भारत है उतना ही पाकिस्तान होगा, यही वजह है कि बिना किसी लेन-देन के ईरान ने पाकिस्तान को भी उद्घाटन कार्यक्रम में आमंत्रित किया और उसे अपने साथ खड़े होने का अवसर प्रदान किया। बावजूद इसके चाबहार बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक तौर पर उपयोगी तो है ही अब देखना यह है कि भविष्य में इसका उपयोग हम रणनीतिक उद्देश्य के लिए कर पाते हैं या नहीं, जिसकी कि संभावना बहुतायत में रेखांकित की जा चुकी है।
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)