देहरादून। चारधाम यात्रा में बसों की किल्लत बढ़ती जा रही है। करीब सौ बसों की सोमवार के लिए जरूरत है। चार हजार यात्री ऋषिकेश में ही रुके हुए हैं। इनमें अधिसंख्य यात्री चार दिन से यहां बस का इंतजार कर रहे हैं। संयुक्त रोटेशन अब तक 2692 बसों के माध्यम से 82537 यात्री यहां से चारों धामों के लिए भेज चुका है। प्रशासन ने कुमाऊं मंडल, रोडवेज, सिटी बस और स्कूल बस भी यात्र में लगाई हैं।
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कई यात्री पिछले चार दिन से यहीं फंसे हुए हैं। यात्रा शुरू होने से लेकर अब तक संयुक्त रोटेशन की 2692 बसें यहां से विभिन्न धामों के लिए गई हैं। इन बसों में 82537 यात्री यहां से रवाना हुए हैं। बसों की कमी के कारण रविवार को यहां से 92 बसों में 2666 यात्री ही यात्रा पर रवाना हो पाए। सोमवार के लिए करीब सौ बसों की डिमांड सामने खड़ी है। प्रशासन द्वारा बाहर से बसें मंगाई जा रही हैं। लेकिन वह खास राहत नहीं दे पा रही हैं। एआरटीओ डॉ. अनिता चमोला ने बताया कि सोमवार को देहरादून से सात स्कूल बस, कुमाऊं मंडल से चार और पांच सिटी बसें यहां से भेजी गई हैं। रोडवेज के अल्मोड़ा डिपो से सात बसें यहां आई हैं। जो सोमवार को रवाना हो पाएंगी।
उन्होंने बताया कि पर्वतीय मार्ग पर संचालित होने वाली स्कूलों की सभी बसों के लिए ऋषिकेश तथा आसपास क्षेत्र में विद्यालय प्रबंधकों से संपर्क किया जा रहा है। बदरीनाथ मार्ग पर विष्णुप्रयाग के समीप हाथी पहाड़ टूटने से अवरुद्ध हुआ मार्ग हालांकि, शनिवार की शाम खुल चुका है। मगर इसमें फंसी रोटेशन की करीब 120 बसें रविवार को वक्त पर यहां नहीं पहुंची।
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चारधाम यात्र का इस वर्ष शानदार आगाज हुआ है। 24 दिन में विभिन्न प्रांतों से उत्तराखंड पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का आंकड़ा ढाई लाख पार हो गया है। परिवहन और पर्यटन व्यवसायियों पर देश के श्रद्धालु कृपा बरसाने को तत्पर हैं। प्रशासन के लिए चुनौती यह है कि वह आपदा के जख्मों पर मरहम बनकर आ रहे देवदूतों को किस तरह बेहतर व्यवस्था दे पाता है।
यहां पहुंचने विभिन्न प्रांतों के श्रद्धालु पर्यटन और परिवहन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए राहत लेकर आए हैं। लेकिन, सोचने वाली बात यह है कि यात्र व्यवस्था से जुड़े तमाम विभाग आगंतुकों को अपने घर आने पर सुविधाएं देने में नाकाम साबित हो रहे हैं। अब तक व्यवस्था के नाम पर श्रद्धालुओं का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। जो कि यात्रा से जुड़े विभागों के लिए किसी सबक से कम नहीं है।
चारधाम यात्रा में नहीं दे पा रहे बेहतर सुविधा
पौराणिक काल से तीर्थनगरी को आश्रम और धर्मशालाओं की नगरी कहा जाता है। पालिका के अभिलेखों में यहां करीब सवा सौ धर्मशालाएं हैं। हकीकत में देखा जाए तो मात्र दस धर्मशालाएं ही श्रद्धालुओं का पड़ाव बन रही है। अधिकतर धर्मशालाएं खुर्दबुर्द हो गई हैं। जो हैं भी उनमें से अधिक का व्यवसायीकरण हो चुका है। हालत यह है कि यहां की धर्मशालाएं श्रद्धालुओं से पैक हैं। यहां आरामदायक कमरे की कल्पना करनी बेकार है। श्रद्धालुओं को धर्मशालाओं के बरामदे और रसोई में पनाह लेनी पड़ रही है। धर्मशालाओं की यात्री बुकिंग रसीद पर बकायदा बरामदा और रसोई अंकित किया जा रहा है।