चीन का नया पैंतरा, नेपाल को दी चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टों के इस्तेमाल की इजाजत
काठमांडू : नेपाल में चीन अपना प्रभाव तेजी से बढ़ा रहा है। इसी क्रम में नेपाल को अपने चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टों का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी। इससे जमीन से घिरे नेपाल की अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए भारत पर निर्भरता कम हो जाएगी। दोनों देशों ने छह चेकपॉइंट से चीनी सरजमीं पर पहुंचने का रास्ता तय किया है। शुक्रवार को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने यहां बताया कि नेपाल अब चीन के शेनजेन, लियानयुगांग, झाजियांग और तियानजिन बंदरगाहों का इस्तेमाल कर सकेगा। तियानजिन नेपाल से सबसे नजदीकी बंदरगाह है और यह नेपाली सीमा से करीब 3,300 किमी दूर है। इसी प्रकार चीन ने लंझाऊ, ल्हासा और शीगाट्स लैंड पोर्टों के इस्तेमाल की भी अनुमति नेपाल को दे दी। इससे नेपाल को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा। नई व्यवस्था के तहत चीनी अधिकारी तिब्बत में शीगाट्स के रास्ते नेपाल सामान लेकर आने-जाने वाले ट्रकों और कंटेनरों को परमिट देंगे। इस समझौते ने नेपाल के लिए कारोबार के नए दरवाजे खोल दिए हैं, जो अब तक भारतीय बंदरगाहों पर पूरी तरह निर्भर था। नेपाल के उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव रवि शंकर सैंजू ने कहा कि इस समझौते से किसी तीसरे देश के साथ कारोबार के लिए नेपाली कारोबारियों को बंदरगाहों तक पहुंचने के लिए रेल या रोड मार्ग का इस्तेमाल करने की अनुमति होगी। इस सिलसिले में चीन के साथ बातचीत के दौरान रवि शंकर ने ही नेपाली प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। चीन के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की मार्च 2016 में चीन यात्रा के दौरान ही इस समझौते पर सहमति बनी थी। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कहा है कि उनका देश क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए दक्षेस को मजबूत करना चाहता है और जल्द से जल्द इसके सम्मलेन के पक्ष में है। तीन दिन की यात्रा पर नई दिल्ली आए प्रचंड ने कहा कि नेपाल के शासकों ने अतीत में भारत और चीन का एक-दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल किया। लेकिन, मौजूदा समय में ऐसी बात नहीं है और वह दोनों देशों के साथ नजदीकी संबंध रखना चाहता है।
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