चीन को रोकने के लिए भारत लेगा इस देष की मदद
नई दिल्ली। चीन लगातार भारत को घेरने की जो कवायद कर रहा है वह वास्तव में भारत को परेशान करने वाली है। चीन ने इसमें अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। चीन की नई रणनीति में भारत के पड़ोसी देशों में बंदरगाहों के निर्माण में अपना सहयोग देने के नाम पर काफी बड़ा निवेश किया जा रहा है। म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान और मालद्वीप में चीन इसी तर्ज पर आगे बढ़ रहा है। इसके अलावा वह अफ्रीकी महाद्वीप स्थित जिबूती में अपनी नौसेना का बेस बनाने के बाद अब वह नामिबिया में भी एक बंदरगाह के निर्माण में जुटा है। चीन की यह पूरी कवायद भारत पर रोक लगाने और उस पर करीबी निगाह रखने को लेकर की जा रही है। चीन यह भी मानता है कि दक्षिण एशिया में भारत की जो स्थिति है वह उसके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। चीन के यही बढ़ते कदम भारत के लिए भी पेरशानी का सबब बनते जा रहे हैं। लेकिन अब भारत को इसका जवाब मिल गया है। भारत अब ओमान के रास्ते चीन के इन बढ़ते कदमों पर ब्रेक लगाने की तरफ आगे बढ़ चुका है।
आपको बता दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया विदेश दौरे में ओमान भी शामिल था। इस दौरे पर भारत को एक बड़ी रणनीतिक कामयाबी मिली। इसके तहत दोनों देशों के बीच एक अहम रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। समझौते के मुताबिक भारतीय नौसेना को ओमान के दुक्म पोर्ट तक पहुंच हासिल हो गई है। पश्चिमी हिंद महासागर में भारत की पहुंच के हिसाब से यह समझौता काफी अहम है जिसके दूरगामी परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे। ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का कहना है कि इससे भारत को जरूरत बढ़त बनाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि भारत के इस कदम से चीन के बढ़ते कदमों का रोका जा सकेगा। लिहाजा यह पोर्ट भारत के लिहाज से काफी खास है। भारत से पहले दुक्म में अमेरिका 2013-14 में ही अपनी मौजूदगी मजबूत कर चुका है। इसके अलावा ब्रिटेन भी ऐसा कर चुका है। चीन ने भी यहां भारी निवेश किया है। चीन ने अगस्त 2016 में दुक्म पोर्ट पर 35 करोड़ डॉलर (2,246 करोड़ रुपये) से ज्यादा का निवेश किया था।
भारत के ओमान के साथ लंबे और करीबी राजनीतिक संबंध रहे हैं। ओमान की भारत के लिए भू-रणनीतिक अहमियत है, क्योंकि वह पर्सियन गल्फ और हिंद महासागर के महत्वपूर्ण जलमार्ग पर स्थित है। इसके अलावा, ओमान उस क्षेत्र में वास्तविक श्गुट-निरपेक्षश् देश है। वह अरब जीसीसी का हिस्सा तो है लेकिन उसके ईरान के साथ भी गहरे संबंध हैं। ईरान के साथ न्यूक्लियर डील पर बातचीत के लिए अमेरिका ने ओमान की मदद ली थी। इसके अलावा ओमान की मदद के बाद ही यमन में प्ैप्ै के कब्जे से भारतीय फादर टॉम को सकुशल मुक्त कराया गया था। चूंकि भारत खाड़ी के देशों के साथ रिश्तों को और प्रगाढ़ करने में लगा है। ऐसे में ओमान की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
दुक्म कोई प्राकृतिक बंदरगाह नहीं है, बल्कि यह कृत्रिम है जिसे विशुद्ध आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्य से बनाया गया है। चीन जिस तरह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को विकसित कर रहा है, उसे देखते हुए दुक्म में भारत की मौजूदगी रणनीतिक तौर पर काफी अहम है। इसके जरिए भारत चीन को गल्फ ऑफ ओमान के मुहाने पर रोकने में सक्षम हो जाएगा। ग्वादर पर कभी ओमानी सुल्तान का हक था और उन्होंने 1950 के दशक में भारत को इससे जुड़ने की पेशकश की थी। उस समय भारत ने उस पेशकश को यह कहकर नामंजूर कर दिया था कि वह इसे पाकिस्तान से नहीं बचा पाएगा।