चीन में क्रूरता की हद : ज़िंदा कैदियों के निकाल लिए जाते हैं किडनी, आंख की पुतली, लिवर
नई दिल्ली (4 अक्टूबर):चीन में सबसे बड़े मानवाधिकार उल्लंघन और पंथ आधारित अत्याचार का मामला सामने आया है। हाल ही में आई एक नई डॉक्यूमेंट्री फिल्म में चीन पर ऐसे ही बेहद गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इस डॉक्यूमेंट्री में दावा किया गया है कि चीन में करीब 10 हजार धार्मिक कैदियों के जिंदा रहने के दौरान ही उनके शरीर के अंगों को निकाल लिया गया। इनमें उनके लिवर (यकृत), किडनी (गुर्दे), कॉर्निया (आंख की पुतली) और दिल शामिल हैं। साथ ही कहा गया है कि इसके बाद भी दुनिया ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है।
अंग्रेजी अखबार ‘डेलीमेल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2006 के दौरान चीन में अंगों के अनैतिक कारोबार की बात पहली बार छनकर दुनिया के सामने आई थी। इसकी पुष्टि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, गवाहों के अलावा कुछ सर्जन्स ने भी की। इन सर्जन्स ने खुद ऐसे ऑपरेशन्स करने की बात स्वीकार की है। इन्होंने दावा करते हुए कहा है कि फालुन गौंग पंथ के समर्थकों के अंगों को दुनिया भर के उन धनी लोगों (यात्रियों) को बेंच दिया गया जिन्हें अंग ट्रांसप्लांट की ज़रूरत थी।
इस डॉक्यूमेंट्री में इस बात पर भी गौर करते हुए दिखाया गया है, कि आखिर क्यों पूरी दुनिया इस मामले की तरफ आंखें बंद किए हुए है। जो कि ‘वर्तमान समय में दुनिया का एक सबसे बड़ा प्रलयकारी मानवाधिकार उल्लंघन है।’
इस डॉक्यूमेंट्री के डायरेक्टर केन स्टोन ने बताया, ”इस स्टोरी की तरफ मेरा ध्यान इसलिए गया क्योंकि सबूत काफी मजबूत थे। साथ ही इसपर मुश्किल से ही बातचीत की गई है। हमने तो बस इस बात को आगे बढ़ाया है कि रिपोर्ट्स और डॉक्यूमेंट्रीज़ पर इतना कम ध्यान दिया गया। कई लोग मजबूत सबूतों के साथ आगे आए, लेकिन उन्हें लगातार नजरअंदाज किया गया।”
क्या है मामला?
दरअसल, चीन में आध्यात्मिक फालुन गौंग पंथ 1990 के दशक मे शुरू हुआ था। सात सालों के भीतर ही करीब 10 करोड़ लोग इस पंथ से जुड़ गए। 1999 में चीनी सरकार ने आक्रामक रूप से इसे तोड़ने की कोशिश शुरू कर दी। सरकार ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जुड़ाव होने के डर से ऐसा किया।
20 जुलाई 1999 को सिक्योरिटी फोर्सेस ने उन हजारों लोगों को उठाकर हिरासत में ले लिया जिनकी पहचान फालुन गौंग पंथ के नेताओं के तौर पर हुई। यह सब जेल भरने के साथ इस पंथ को समाप्त करने का पहला निर्दयतापूर्ण नीतिगत अभियान था। इसे ‘सुधारात्मक विचार’ भी कहा गया। लेकिन इसका नतीजा कैदियों की मौत के साथ हुआ।
गौरतलब है, यह इस पंथ पर प्रतिबंध चीन में अभी भी लागू है। पिछले साल ही इस समूह को सरकार के सबसे ज्यादा सक्रिय पंथों की शीर्ष सूची में शामिल किया गया।
इस नई डॉक्यूमेंट्री में खोजी पत्रकारों, चीन में सक्रिय एंथूसिएस्ट ईथन गटमैन और कनाडा की जांच टीम की रीसर्च का विस्तार किया गया। कनाडा की टीम में मानवाधिकार वकील और शांति के लिए नोबेल पुरुस्कार के नॉमिनी डेविड मैटस और कनाडा के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट डेविड किलगाउर शामिल थे।
डॉक्यूमेंट्री में पूर्व फालुन गौंग कैदियों और एक सर्जन द्वारा बताई गईं खतरनाक जानकारियां शामिल हैं। सर्जन ने इस बात को स्वीकार किया कि उसने अपने हाथों से जिंदा लोगों के शरीर से अंगों को निकाला। इन विश्वसनीय पेशेवर लोगों की गवाही के बाद भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया। जो कि एक आधिकारिक जांच कराए जाने के लिए पर्याप्त हैं।
डॉ. तोहती खुद डॉक्यूमेंट्री में दी गई गवाही में ‘लाइव ऑर्गन हार्वेस्ट’ में उनके शामिल होने की सन कर देने वाली जानकारी बताते हैं। वह यह गवाही यूरोपीय संसद में भी दे चुके हैं। यह डॉक्टर अब यूरोप में एक टैक्सी ड्राइवर है। उन्हें 1994 में जिन्जियांह प्रांत में ‘एक्सीक्यूशन साइट’ पर ले जाया गया था। वहां उसने एक फालुन गौंग कैदी को देखा था। जिसे गोली लगी थी। उसने बताया कि कैदी ठीक हो सकता था। लेकिन इसके बाद भी उसके ऊपर के लोगों (सुपीरियर्स) द्वारा उस जिंदा आदमी के शरीर से अंगों को निकालने के लिए कहा गया। .
मैटास और किलगोर ने 2006 में ऑर्गन हार्वेस्टिंग में अपनी पहली जांच रिपोर्ट पेश की। जिसमें बताया कि अस्पतालों ने 30,000 डॉलर प्रति कॉर्निया, 62,000 डॉलर प्रति किडनी और 1,30,000 डॉलर प्रति लिवर और हार्ट के लिए चार्ज किए।
इनके द्वारा दिए गए सबूतों में सबसे ज्यादा इस बात पर जोर दिया गया है – ”चीन में अंग प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) के लिए अंगों की प्रचुर उपलब्धता के बारे में किसी साफ व्याख्या का ना होना।” गौरतलब है, रेडक्रॉस के मुताबिक, चीन का सबसे ज्यादा ट्रांसप्लांट दर के आधार पर दुनिया में दूसरा स्थान है। जबकि देशभर में केवल 37 लोगों ही डोनर के तौर पर रजिस्टर हुए।
चीन खुद ही इस बात की घोषणा कर चुका है कि हर साल 10,000 ट्रांसप्लांट किए जाते हैं। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि इनमें अतिरिक्त मृत कैदियों से भी पूर्ति की गई। लेकिन, अमेरिका के एक कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह ‘दुई हुआ’ ने बताया कि 2013 में केवल 2,400 कैदियों को ही मौत की सजा दी गई। ऐसा दावा किया गया है कि चीन में अंगों के लिए करीब 40,000 फालुन गौंग कैदियों को मारा गया है। पत्रकार ईथन गटमैन का मानना है कि असल संख्या इससे भी कहीं ज्यादा है। जो कि 2000-2008 के बीच करीब 65,000 तक पहुंची है।
ईथन गटमैन ने पहली बार फालुन गौंग के साथ अत्याचार 1999 में बीजिंग में देखा और 2006 में अपनी खोज शुरू की। गौरतलब है, यह डॉक्यूमेंट्री अमेरिका में इस सप्ताह प्रसारित की जा रही है। इसी समय चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग अमेरिका के दौरे पर हैं।