चीन में ड्रोन से शुरू हुई सामान की डिलीवरी
एजेंसी/ बीजिंग। चीन की मशहूर आॅनलाइन रिटेलर जेटी डाॅट काॅम ने ड्रोन के माध्यम से सामान डिलीवर करना शुरू कर दिया है। जेडी डॉट कॉम के उपाध्यक्ष शियाओ जून ने बताया कि कंपनी के संस्थापक लीयू कियांगदोंग के गृह नगर सुकियान शहर में ड्रोन से डिलवरी सेवा के लिए लिया जाने वाला भुगतान पार्सल की राशि का आधा हो सकता है लेकिन यह 0.5 युआन से कम होगा।
सुकियान के काओजी कस्बे में एक डिलीवरी डिपो पर तैनात दो ड्रोन प्रतिदिन 200 पार्सलों को गंतव्य तक पहुंचाने में सक्षम हैं। प्रत्येक ड्रोन 10-15 किलोग्राम तक वजन का वहन कर सकता है और 15-20 किलोमीटर की दूरी तक 54 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भर सकता है। ये ड्रोन माल को खुद ही लोड तथा अनलोड कर सकते हैं। साथ ही ये हलकी बारिश या 38.5 किलोमीटर प्रति घंटे तक चलने वाली तेज हवा में भी उड़ान भरने में सक्षम हैं।
क्या है ड्रोन
रिमोट या कंप्यूटर संचालित ड्रोन पायलट रहित विमान है। अफगानिस्तान में अलकायदा की सत्ता को खत्म करने के लिए ड्रोन अमेरिका का प्रमुख हथियार रहा है। लेकिन बीते कुछ सालों में तकनीकी की कीमतों में गिरावट के चलते ड्रोन का उपयोग सिविल और व्यावसायिक प्रोजेक्ट्स के लिए भी होने लगा है।
भारत में कितने ड्रोन
भारत में अभी ड्रोन को अभी केवल सेना ही इस्तेमाल कर रही है। भारतीय सेना के पास अभी 200 ड्रोन है। इसके व्यवसायिक उपयोग पर कर्इ पाबंदियां हैं इसलिए वह संभव नहीं है। यहां यह बताना जरूरी है कि भारत अभी ड्रोन केवल आयात ही करता है। भारत को अत्याधुनिक ड्रोन बनाने में काफी वक्त लगेगा। भारत के पास इजरायल के हेरॉन और सर्चर-2 जैसे लंबी दूरी तक निगरानी करने वाले जासूसी ड्रोन्स भी हैं। सरकार ने ड्रोन की तकनीक को और आधुनिक करने के लिए 2650 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला लिया है।
इसके अलावा भारत अमेरिका से भी अत्याधुनिक ड्रोन खरीदने की तैयारी कर रहा है। ड्रोन को लेकर क्या है भारत की सोच भारत जासूसी ड्रोन को हल्का करने और अत्याधुनिक करने की दिशा में कदम उठा रहा है साथ ही भारत में भी ड्रोन के निर्माण में तेजी लाने की कोशिश जारी है। अभी तक इस प्रोजेक्ट को डिफेंस मिनिस्ट्री से हरी झंडी मिल चुकी है। फिलहाल एक एक्सपर्ट कमेटी फिलहाल प्रोजेक्ट का मूल्यांकन कर रही है।घातक प्रोजेक्ट की अंतिम मंजूरी के लिए कैबिनेट के सामने रखा जाएगा। फिलहाल घातक प्रोजेक्ट के लिए एरोनॉटिकल डवलपमेंट एजेंसी और डीआरडीओ मिलकर काम कर रहे हैं।