अद्धयात्म

जब अपमान होने पर महात्मा बुद्ध ने दी अपने शिष्यों को ये सीख

हमारे भारत में अनेकों धर्म हैं और उन धर्मों से जुडी आस्था और देवातओं को सभी मानता है। जिनमें एक धर्म में बौद्ध धर्म जिसकी स्थापना गोतम बुद्ध ने किया था। सभी जानते हैं कि गोतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थी जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया। सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश एवं सत्य दिव्य ज्ञान खोज में रात में राजपाठ छोड़कर जंगल चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बन गए।

एक ऐसे ही महात्मा बुद्ध के जन्म से जुड़ी एक कहानी के बारे में बताने जा रहें हैं। एक बार जब महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ नगर में गए तो वहां के लोगों ने महात्मा बुद्ध का अपमान किया। जिसके कारण उनके शिष्य क्रोधित हो गए। महात्मा बुद्ध जान गए थे कि उनके शिष्य क्रोधित हो गए हैं।’

एक शिष्य ने कहा, ‘गुरुजी, हमें यहां से किसी और स्थान पर चलना चाहिए। कोई ऐसी जगह जहां हमारा आदर हो।यहां के लोग तो दुर्व्यवहार के सिवा कुछ जानते ही नहीं हैं। इस पर महात्मा बुद्ध मुस्करा दिए। उन्होंने शिष्यों से कहा, ‘क्या किसी और जगह पर जाने से तुम सद‌हव्यवहार की अपेक्षा करते हो?’ दूसरा शिष्य बोला, ‘गुरुदेव कम से कम यहां से तो भले लोग ही मिलेंगे। ’बुद्ध बोले, ‘किसी स्थान को केवल इसलिए छोड़ना गलत है कि वहां के लोग दुर्व्यवहार करते हैं। 

हम तो संत हैं। हमें चाहिए कि उस स्थान को तब तक न छोड़ें जब तक वहां के हर प्राणी को उत्तम बनाने की राह पर न ले आएं। मान लो कि वे सौ बार दुर्व्यवहार करेंगे, लेकिन कब तक? आखिर उन्हें सुधरना ही होगा, लेकिन कोई व्यक्ति किसी अन्य को तभी उत्तम बना सकता है, जब वह स्वयं उत्तम हो। बुद्ध का प्रिय शिष्य आनंद बोला, ‘गुरुजी उत्तम व्यक्ति कौन होता है?’ बुद्ध ने कहा, ‘उत्तम व्यक्ति ठीक उसी तरह होता है जिस प्रकार युद्ध में बढ़ता हुआ हाथी। युद्ध में हाथी हर तरफ से आते तीरों के प्रहार सहते हुए भी आगे बढ़ता है। उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी दुष्टों के अपशब्द को सहन करते हुए अपने कार्य करता चलता है। उत्तम व्यक्ति स्वयं को वश में कर चुका होता है। स्वयं को वश में करने वाले प्राणी से उत्तम कोई हो ही नहीं सकता। बुद्ध का उत्तर सुनकर सभी शिष्य उत्तम प्राणी बनने के लिए दृढ़ संकल्प हो गए।

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