दस्तक-विशेषस्तम्भ

जब जार्ज, अटल, बहुगुणा चूके

के. विक्रम राव

स्तम्भ : यदि उस समय तेलुगु देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामा राव की बात मान ली जाती तो जार्ज फर्नांडीज, अटल बिहारी वाजपेयी और हेमवती नंदन बहुगुणा आठवीं लोकसभा (1984) से पांच वर्षों के लिये बाहर न रहते| आज तीनों राष्ट्रीय जननायक नहीं हैं, पर जार्ज के निधन से वह ऐतिहासिक घटना ताजी हो जाती है| जिसकी चर्चा तो हुई, फिर वह आयी–गयी सी हो गयी| हालांकि इंदिरा गांधी की हत्या और पुत्र राजीव गांधी का प्रधानमंत्री बनना तब नियति की कृति ही थी| टाइम्स ऑफ़ इंडिया के हैदराबाद संवाददाता के रूप में मैंने एक रपट भेजी थी| वह घटना आठवीं लोकसभा (1984) में बड़ी कारगर हो जाती, मगर वह घटी ही नहीं| बस इतिहास का अगर-मगर बनकर वह रह गयी| सन्दर्भ महत्वपूर्ण इसलिए था कि आठवीं लोकसभा में विपक्ष के लगभग सारे कर्णधार धूल चाट गये थे| इंदिरा गांधी के बलिदान के नाम पर राजीव गांधी को जितनी सीटें मिलीं वह उनके नाना या अम्मा को भी नहीं मिली थी| कुल 542 में 415 सीटें जीतीं थी राजीव ने| जवाहरलाल नेहरु का अधिकतम रहा था 371 सीटें 1952 में, और इंदिरा गांधी का गरीबी हटाओ के नारे में 342 रहा 1971 में तथा 353 रहा 1980 में| तब प्याज के बढ़ते दाम तथा “वोट उनको दो जो सरकार चला सकें” का नारा दिया गया था|

खुद इमरजेंसी के जुल्मों के बाद भी 1977 में जनता पार्टी केवल 295 सीटें ही हासिल कर पायी थी| हालांकि रामाराव 1984 के लोकसभा चुनाव के समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का अपना डेढ़ वर्ष पूरा कर चुके थे| उन्हीं दिनों एक सप्ताह भर इंदिरा गांधी का शव भी घर-घर में दूरदर्शन के पर्दे पर दिखाया जा रहा था| आमजन की सहानुभूति राजीव गांधी के साथ थी, मगर आंध्र प्रदेश में रामाराव का करिश्मा बरकरार रहा| कांग्रेस जिस राज्य के 42 में से 41 सीटें जीतती रही थी, तब केवल छः सीटें ही जीत पायी| न राजीव के प्रति हमदर्दी रिझा सकी और न इंदिरा गांधी का शव उनकी पार्टी के लिये मतदाताओं को रिसा सका| यह बात उसी दौर की है| राजीव गांधी के सलाहकारों ने एक बड़े गोपनीय तौर पर शकुनीवाला पासा फेंका| विपक्ष के जितने दिग्गज थे उन्हें राजनीतिक रूप से पराभूत करने का, अर्थात् पराजित करने का| अमिताभ बच्चन, माधवराव सिन्धिया आदि लोगों का ऐन वक़्त पर बदले हुए लोकसभ क्षेत्रों से नामांकन दाखिल कराया गया| परिणाम में पूरे दस लोकसभा चुनावों के इतिहास में आठवीं लोकसभा की चर्चा हमेशा रहेगी कि विपक्ष क्लीव ही नहीं, नगण्य भी रहा| तभी अमूल डेयरी का विज्ञापन भी छपा था कि अमूल मक्खन के लिये “देयर ईज नो आपोजिशन इन दि हाउस” (सदन में विरोधी ही नहीं है)| द्विअर्थी विज्ञापन का सच कडुवा था| कांग्रेस की अभूतपूर्व बढ़त को देश में अवरुद्ध करने हेतु और गैर-कांग्रेसवाद के लोहियावादी सपने को आगे बढ़ाने के लिये रामाराव ने एक प्रस्ताव रखा| तेलुगु देशम पार्टी के नेताओं को उसे मूर्त रूप देने का जिम्मा सौंपा| उन्होंने सुझाया था कि भारतीय जनता पार्टी के अव्वल नम्बर के नेता अटल बिहारी वाजपेयी हनमकोंडा (वारंगल) से, लोकदल के हेमवती नंदन बहुगुणा मेदक से और जनता दल के जार्ज फर्नांडीज कर्नूल से लोकसभा का चुनाव लड़ें| तेलुगु देशम उनका समर्थन करेगी| मगर होना कुछ और ही था|

आखिरी वक़्त पर अपनी गुना वाली लोकसभा सीट छोड़कर माधवराव सिन्धिया ग्वालियर नगर से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लड़े और यह भाजपा प्रत्याशी केवल 28 प्रतिशत वोट ही प्राप्त कर सका| उधर बम्बइया फ़िल्मी सितारे (बच्चन) ने इलाहबाद लोकसभा सीट पर 68 प्रतिशत वोट पाकर केवल 25 प्रतिशत वोट पाये बहुगुणा को पराजित किया| बेंगलुरु (उत्तर से) जार्ज फर्नांडीज 41 प्रतिशत वोट पाकर भी रेल मंत्री जाफर शरीफ के मुकाबले हार गये| अब देखिये रामाराव की उपलब्धि क्या रही| तब हनमकोंडा से तत्कालीन गृहमंत्री पी.वी. नरसिंह राव कांग्रेस के उम्मीदवार थे| वह पिछले दोनों आम चुनावों (1977 और 1980) में इसी सीट को जीत चुके थे| मगर इंदिरा-बलिदान की आँधी के बावजूद नरसिंह राव जिले स्तर के एक भाजपायी कार्यकर्ता चंदपाटला जंगा रेड्डी से हार गये| केवल 25 प्रतिशत वोट ही पा सके| (नरसिम्हा राव महाराष्ट्र के रामटेक से भी लड़े तथा वह तब चुने गये और राजीव मंत्रिमंडल में शामिल हुए)| भारत भर में भाजपा केवल दो लोकसभा सीट जीती थी| उनमें एक हनमकोंडा थी| अटल जी यह सीट अपार बहुमत से जीतते| दूसरी थी गुजरात की मेहसाणा सीट|

सातवें आम चुनाव में (1980) मेदक लोकसभा सीट पर इंदिरा गांधी ने एस. जयपाल रेड्डी को 67 प्रतिशत वोट पाकर हराया था| बहुगुणा जी का जब कोई जवाब नहीं आया तो रामाराव ने मेदक सीट पर आखिर दिन, बस नामांकन के कुछ मिनट पूर्व, एक मामूली से तेलुगु देशम कार्यकर्ता पी. माणिक रेड्डी को टिकट दिया| उसने 48.6 प्रतिशत वोट पाकर केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री और बाद में केरल के राज्यपाल पी. शिवशंकर को पराजित किया| कर्नूल से लड़े पूर्व मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और पार्टी अनुशासन समिति के अद्ध्यक्ष के. विजय भास्कर रेड्डी जो 1977 और 1980 में 75 प्रतिशत वोट पाकर जीते थे उन्हें 1974 में तेलुगु देशम पार्टी के अनजाने प्रत्याशी अय्यप्पा रेड्डी ने 49.9 प्रतिशत वोट पाकर हराया| जार्ज फर्नान्डीज तो इस अनजाने तेलुगु देशम उम्मीदवार से ज्यादा मशहूर थे| विजय तय थी, नहीं पाये|

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