नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के जज अरुण मिश्रा ने जमीन अधिग्रहण कानून केस की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ से हटने से इनकार कर दिया है. बुधवार को जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान बेंच ने फैसला सुनाया और कहा, मैं मामले की सुनवाई से अलग नहीं हट रहा हूं. याचिकाकर्ताओं ने इस केस की सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा को शामिल नहीं किए जाने की गुजारिश की थी. उनकी दलील है कि जस्टिस मिश्रा पिछले साल फरवरी में इस मामले पर अपनी राय रख चुके हैं. लिहाजा उन्हें संविधान बेंच से खुद को अलग कर लेना चाहिए. याचिकाकर्ताओं का मानना है कि जस्टिस मिश्रा के संविधान बेंच में होने से मामले की सुनवाई पर असर पड़ेगा. हालांकि, जस्टिस मिश्रा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि संविधान बेंच से अलग होने का मतलब है कि उनके फैसले का पुनरीक्षण किया जाएगा.
ज्ञात हो कि भूमि अधिग्रहण एक्ट को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई करने वाली संविधान बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा के अलावा जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट शामिल हैं.
संविधान बेंच से अलग होने से इनकार करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कुछ सोशल मीडिया पोस्ट और आर्टिकल का हवाला भी दिया. उन्होंने कहा, वो (याचिकाकर्ता) किसी एक जज के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि एक संस्था का विरोध कर रहे हैं. अगर संस्थान की ईमानदारी पर कोई खतरा होगा, तो मैं त्याग करने वाला सबसे पहला व्यक्ति होंगा. मैं पक्षपाती नहीं हूं और किसी भी चीज़ से प्रभावित नहीं होने वाला. अगर मुझे आगे लगा कि मैं इस केस में पक्षपाती हो रहा हूं, तो तुरंत संविधान बेंच से अलग हो जाऊंगा. जस्टिस मिश्रा ने निष्पक्ष शब्द पर भी आपत्ति जाहिर की. उन्होंने कहा कि इस शब्द से मैं आहत होता हूं. इसका इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये आम लोगों के बीच गलत संदेश देता है.