दस्तक-विशेषराष्ट्रीय

जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की ‘भरमार’

इनकार, तकरार के सहारे बीजेपी-पीडीपी का प्यार, इसीलिए है

राजीव रंजन तिवारी

आमतौर पर लड़का और लड़की के रूप-लावण्य, सौन्दर्य-स्वरूप में भारी अंतर के बावजूद होने वाली शादियों को ही बेमेल विवाह करार दिया जाता है। स्वभावतः वह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती और यदि टिकती भी है तो रोजाना की खटपट दोनों पक्षों को परेशान किए रहती है। कुछ इसी तरह के सियासी रिश्ते जम्मू-कश्मीर में देखने को मिल रहे हैं। वहां कट्टर हिन्दुओं की समर्थित भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कट्टर मुस्लिमों की समर्थित पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की गठबंधन वाली सरकार है। वर्ष 2015 में दोनों दलों के बीच जब रिश्ते कायम हुए तो विश्लेषकों ने इसे ‘बेमेल’ करार दिया था। अक्सर दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव की स्थिति बनी रहती है। दिलचस्प यह है कि पीडीपी तो अपने एजेंडे को वहां लागू कर लेती है, लेकिन अपने एजेंडे को लागू कराने के लिए आए दिन बीजेपी को कदम पीछे खींचना पड़ता है। यूं कहें कि केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बावजूद भाजपा पर जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार भारी पड़ती हुई दिखती है। यही वजह है कि पिछले आठ वर्षों में सबसे ज्यादा कश्मीरी युवा वर्ष 2017 में हथियार उठाकर आतंकवाद की आगोश में पनाह लेते देखे गए हैं। यह सब सत्ता का स्वाद चखते रहने के लिए चुप रहने की वजह से है।

बताया गया है कि साल 2017 में आतंकवादी संगठनों में शामिल होने वाले कश्मीरी युवाओं की संख्या में ज्यादा उछाल आया है। नौजवानों के आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के आंकड़े जुटाने का काम 2010 में शुरू होने के बाद यह पहला मौका है, जब ऐसे युवाओं की संख्या 100 को पार कर गई है। इस संदर्भ में 24 दिसम्बर को अधिकारियों ने अनौपचारिक रूप से आंकड़ों का खुलासा किया। सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2016 में यह आंकड़ा 88 था जबकि 2017 में नवंबर महीने तक ही यह आंकड़ा 117 हो गया था। दक्षिणी कश्मीर हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों को सदस्य मुहैया कराने वाले एक प्रमुख केंद्र के तौर पर उभरा है। इस साल आतंकवादी संगठनों में शामिल होने वाले स्थानीय युवाओं की संख्या में 12 अनंतनाग, 45 पुलवामा तथा अवंतीपुरा, 24 शोपियां और 10 कुलगाम के हैं। उत्तरी कश्मीर से जुड़े आंकड़ों में कुपवाड़ा से 04, बारामुला और सोपोर से 06 जबकि बांदीपुर से 07 नौजवान आतंकी संगठनों में शामिल हुए। मध्य कश्मीर में आने वाले श्रीनगर जिले से 05 जबकि बडगाम से 04 नौजवान आतंकी संगठनों में शामिल हुए। उक्त रिपोर्टें घाटी में चलाए गए विभिन्न आतंकवाद निरोधक अभियानों के दौरान गिरफ्तार आतंकियों से पूछताछ में मिली जानकारी व तकनीकी एवं इंसानी खुफिया तंत्र से इकट्ठा की गई सूचनाओं पर आधारित है।

इस साल आतंकवादी संगठनों में शामिल होने वाले नौजवानों की संख्या 117 है लेकिन जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक एसपी वैद्य की दलील है कि यह संख्या काफी कम है। सबके बावजूद एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि पुलिस के आंकड़ों में सिर्फ ऐसे मामलों को जगह मिलती है जो पुलिस स्टेशनों में दर्ज होते हैं, जबकि वास्तविक आंकड़े हमेशा ज्यादा होते हैं क्योंकि कई माता-पिता डर के कारण मामले की जानकारी पुलिस या सेना को नहीं देते। इस साल मार्च में संसद के पटल पर रखे गए आंकड़ों के मुताबिक, 2011, 2012 और 2013 की तुलना में 2014 के बाद घाटी में हथियार उठाने वाले नौजवानों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। आतंकवादी संगठनों में शामिल होने वाले कश्मीरी नौजवानों की संख्या वर्ष 2010 में 54, 2011 में 23, 2012 में 21 और 2013 में 16 थी। साल 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 53 हो गया जबकि 2015 में 66 और 2016 में बढ़कर 88 हो गया। जम्मू-कश्मीर में तेजी से बढ़ती आतंकियों की संख्या यह बताने के लिए प्रयाप्त है कि पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली सरकार में भाजपा अक्रामक होने के बजाय पिछलग्गू की भूमिका में है। आतंकवाद के मुद्दे पर दिल्ली में भाजपा के नेता भले कितनी भी तेज आवाज में चिल्लाते हों, पर जम्मू-कश्मीर की बारी आती है तो उनकी बोलती बंद हो जाती है। यह मजबुरीवश होता है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में भाजपा को पहली बार सत्ता का स्वाद चखने को मिल रहा है। विभिन्न मुद्दों पर टकरावों के बावजूद बीजेपी को ही कदम पीछे खींचने पड़ते हैं। इससे सिद्ध होता है कि भाजपा हर हाल में गठबंधन को कायम रखना चाहती है। जबकि पीडीपी नेता अपने तेवर में रहते हैं। जिसे जब जो जी में आता है बोल देता है।

आपको बता दें कि दिसम्बर 2014 के आखिर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के बाद खंडित जनादेश आया था। इससे वहां सरकार के गठन को लेकर लम्बी जद्दोजहद चली। लगभग दो सप्ताह से चले आ रहे गतिरोध के बाद बीजेपी ने कहा था कि पीडीपी ने उससे हाथ मिलाने की दिशा में ‘कुछ पहल’ की है। बकौल भाजपा, उसने भी मामला आगे बढ़ाने के लिए अनुच्छेद 370 और एएफएसपीए जैसे विवादास्पद मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालने का मन बना लिया है। इस बाबत भाजपा के महासचिव राम माधव ने कहा था कि पीडीपी की ओर से कुछ पहल दिखाई गई है। इसे आगे बढ़ाने के लिए, हमने पीडीपी के साथ बातचीत के मुद्दों के बारे में विचार विमर्श किया। फिलहाल, इस मामले में कुछ प्रगति हुई है। उसी दौरान केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अनुच्छेद 370, और एएफएसपीए जैसे मुद्दों को फिलहाल ठंडे बस्ते में डालने का संकेत देते हुए कहा था कि जम्मू-कश्मीर में मुद्दा यह है कि वहां सरकार गठन के तीन आधार होने चाहिए। पहला संप्रभुता, विकास के लिए सुशासन और क्षेत्रीय संतुलन। यह पूछे जाने पर कि बीजेपी धारा 370 और राज्य से आफ्सपा हटाने की पीडीपी की मांग पर अपने रूख को छोड़ सकेगी, जेटली ने कहा था कि राजनीतिक दलों के लिए अपने वैचारिक रूखों को छोड़ना बहुत मुश्किल होता है। क्या मैं पीडीपी अथवा एनसी से उनके वैचारिक रूखों को छोड़ने की उम्मीद कर सकता हूं? इसी तरह से अगर वे बीजेपी से अपने वैचारिक रूख को छोड़ने के लिए कहते हैं तो जवाब ना होगा।

इतने गतिरोधों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी गठबंधन वाली सरकार कायम है। पर दुखद यह है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या में बीते तीन साल में 700 गुना तेजी आई है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से कश्मीर में हर साल आतंक की राह पकड़ने वाले युवाओं की तादाद में जबरदस्त इजाफा हुआ है। 2013 में सिर्फ 16 युवा आतंकी बने थे, जो इस साल (नवम्बर तक) बढ़कर 117 हो गए। इस स्थिति में कह सकते हैं कि केन्द्र की नरेंद्र मोदी सरकार की कश्मीर नीति की भी पोल खुल चुकी है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से कश्मीर में युवाओं के आतंकी संगठनों से जुड़ने की रफ्तार में जबरदस्त तेजी आई है। इस साल तो यह तादाद पिछले सात साल के रिकॉर्ड को पार कर गई है। मोदी सरकार का दावा है कि नोटबंदी के बाद आतंकवाद पर लगाम लगी है। इसके अलावा ऑपरेशन ऑल आउट चलाकर भी आतंकवाद पर लगाम लगाने के दावे किए जा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक ऑपरेशन ऑल आउट में 205 आतंकियों की मौत हो चुकी है। साथ ही आतंकी फंडिंग के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की कार्रवाई भी जारी है। लेकिन ये सारे कदम नाकाम साबित हुए हैं और स्थानीय युवकों के आतंकी संगठनों में लगातार बढ़ रही भर्ती रोक पाने में असफल रहे हैं। सरकार ने संसद में खुद माना है कि पिछले साल के मुकाबले कश्मीर में आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं। लोक सभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक जम्मू एवं कश्मीर में 1 नवंबर 2015 से 31 अक्टूबर 2016 के बीच 311 आतंकवादी घटनाएं हुईं, वहीं 1 नवंबर 2016 से 31 अक्टूबर 2017 के बीच जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं की संख्या 341 हो गई। गृह मंत्रालय का लिखित जवाब में यह कहना है कि आतंकवाद कम हुआ है लेकिन आतंकवादी गतिविधियों में बढ़ोत्तरी हुई है। बहरहाल, देखना यह है कि क्या सबके बावजूद दोनों दलों बेमेल गठबंधन जारी रहता है?
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए लेखक के निजी विचार हैं। दस्तक टाइम्स उसके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।)

Related Articles

Back to top button