कांचीपुरम। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को आज समाधि दी जा रही है, वह कांची कामकोटि पीठ के प्रमुख थे। बीते बुधवार को निधन के बाद करीब 1 लाख से अधिक लोग उनके अंतिम दर्शन कर चुके हैं। शंकराचार्य के अंतिम संस्कार में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी, केंद्रीय मंत्री सदानंद गौड़ा समेत दक्षिण की कई बड़ी हस्तियां शामिल हो रहे हैं।
गौरतलब है कि शंकराचार्य जगद्गुरु जयेंद्र सरस्वती का 82 वर्ष की उम्र में बुधवार को निधन हो गया। वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें सांस लेने की तकलीफ के चलते बीते बुधवार की सुबह कांची कामकोटि पीठम द्वारा संचालित एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहीं पर उनका देहावसान हुआ। उनके पार्थिव शरीर को श्रद्धालुओं के अंतिम दर्शन के लिए मठ में रखा गया है। बीते जनवरी में भी तबीयत खराब होने से उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।
8 जनवरी, 1994 को चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के निधन के बाद जयेंद्र सरस्वती का कांची कामकोटि पीठम का 69वां शंकराचार्य बनाया गया था। मठ के प्रबंधक सुंदरेश अय्यर ने बताया कि गुरुवार को चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती की समाधि के बगल में ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। जयेंद्र सरस्वती के शिष्य विजयेंद्र सरस्वती कांची पीठ के नए शंकराचार्य होंगे। जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को तत्कालीन तंजावुर जिले में हुआ था। उनके बचपन का नाम सुब्रह्माण्यम महादेवन था। 22 मार्च 1954 को जगद्गुरु चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने उनको अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और जयेंद्र सरस्वती नाम दिया। अटल सरकार के समय 1998 से 2004 के बीच उन्होंने अयोध्या विवाद के समाधान के लिए मध्यस्थता का प्रयास भी किया था। उनके निधन पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी शोक प्रकट किया है। कांची स्थित जामा मस्जिद के ईमाम जे मुहम्मद के नेतृत्व में मुसलमानों के एक समूह ने कामकोटि मठ जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। जयेंद्र सरस्वती का विवादों से भी नाता रहा, उन पर 2004 में वरदराजपेरुमल मंदिर के प्रबंधक शंकररमण की हत्या करवाने का आरोप लगा था। इसके बाद जयेंद्र सरस्वती को गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि नौ साल तक मुकदमा चलने के बाद सत्र न्यायालय ने 2013 में उन्हें बरी कर दिया था। अदालत ने कहा कि उद्देश्य साबित नहीं हो पाने से आरोपियों को दोषी नहीं माना जा सकता। सुनवाई के दौरान इस मामले के 189 में से 80 गवाह अपने बयान से मुकर गए थे।