अन्तर्राष्ट्रीय

जलवायु परिवर्तन ने ली 59,000 किसानों की जानें

लॉस एंजल्स: भारत में पिछले 30 वर्षों के दौरान 59,000 किसानों की आत्महत्याओं के पीछे जलवायु परिवर्तन कारण रहा है। यह खुलासा एक अध्ययन में हुआ है। इसमें चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन से वैश्विक तापमान में भारी वृद्धि होने की संभावना है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोॢनया के शोधकर्ताओं ने कहा कि किसानों के फसल में असफल रहने से वे लगातार गरीबी की ओर बढ़ रहे हैं। अमरीकी शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि मात्र एक डिग्री तापमान बढऩे से देशभर में 65 किसान आत्महत्या कर लेते हैं जबकि उस दिन का तापमान 20 डिग्री सैल्सियस से ऊपर दर्ज किया गया था।

यह अध्ययन जहां भारत के विकास को समझने में मदद करता है, वहीं इसमें किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं को एक महामारी के रूप में दर्शाया गया है। शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि वर्ष 1980 के मुकाबले अब आत्महत्या की घटनाएं दोगुनी हो गई हैं। दुनिया भर में किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं में से 75 प्रतिशत से अधिक आत्महत्याएं भारत में होती हैं।

खलनायक बना मानसून
औसतन प्रति हैक्टेयर कम पैदावार होने का ताल्लुक जमीन की उर्वरता से ज्यादा खराब मानसून से है। यह खेतीबाड़ी के क्षेत्र में एक खलनायक का रोल अदा कर रहा है। ऊपर से भारत की छोटे किसानों की छोटी जोतें इस स्थिति को और खतरनाक बना देती हैं। 1970-71 में भारत में औसत जोत का आकार 2.28 हैक्टेयर था। बढ़ती जनसंख्या के चलते 2010-11 में यह आंकड़ा कम होकर 1.15 हैक्टेयर पर आ गया। भारत में 85 प्रतिशत किसान लघु और सीमांत किसान हैं। इसका मतलब यह है कि इनके पास एक हैक्टेयर से कम जमीन है।

कम है प्रति हैक्टेयर पैदावार
एग्रीकल्चर स्टैटिसटिक्स एट अ ग्लांस 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक 1950-51 में अनाज का उत्पादन 50.82 मिलियन टन था जो 2015-16 में बढ़कर 252.22 मिलियन टन हो गया। साथ ही प्रति हैक्टेयर पैदावार भी 522 कि.ग्रा. से बढ़कर 2056 कि.ग्रा. हो गई है लेकिन यह विकसित देशों की तुलना में काफी कम पैदावार है। चीन में अनाज की पैदावार 5888 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है। वहीं दालों के मामले में देखें तो भारत में इसकी पैदावार 659 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है। यह भी ब्रिक्स देशों में सबसे कम है।

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