जाटों को मिल पाएगा आरक्षण लाभ?
जगमोहन ठाकन
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तथा जाट नेताओं के बीच 19 मार्च को बैठक में हुई तात्कालिक सहमति के कारण भले ही 20 मार्च, 2017 का दिल्ली का घेराव पन्द्रह दिन के लिए टल गया हो, परंतु क्या 15 दिन में जाट आरक्षण का मुद्दा हल हो जाएगा? शायद नहीं। क्योंकि जब तक प्रदेश व देश की सरकारें तहे दिल से इस समस्या का सटीक हल नहीं ढूंढेगी, तब तक ऐसे यक्ष प्रश्न उठते रहेंगे और न केवल जाट आरक्षण का मुद्दा अपितु गुजरात का पटेल आरक्षण, राजस्थान के गुर्जर व अन्य सवर्ण जातियों के आरक्षण आंदोलन जारी रहेंगे तथा देश में विभिन्न जातियों के मध्य एक दूसरे के प्रति वैमनस्य उत्पन्न होता रहेगा या उत्पन्न किया जाता रहेगा।
आरक्षण की मांग सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन तथा आर्थिक पिछड़ेपन दोनों आधारों पर उठ रही हैं। जहां हरियाणा के जाट व गुजरात के पटेल अपने लिए ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) में आरक्षण की मांग कर रहे हैं, वहीं राजस्थान के समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त सवर्ण जातियाँ तथा ब्राह्मण, बनिया व राजपूत आदि आर्थिक आधार पर आरक्षण की गुहार लगा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्दिरा साहनी मामले में आरक्षण की ऊपरी सीमा 50% से अधिक न किए जाने का फैसला दिया था। इसके बावजूद विभिन्न प्रांतीय सरकारें 50% से ज्यादा के आरक्षण बिल पास कर रहे हैं और आरक्षण को इस 50% की सीमा रेखा से ऊपर लागू भी कर रही हैं।
हरियाणा में 23 जनवरी, 2013 को एक ही दिन हरियाणा सरकार ने दो नोटिफ़िकेशन पत्र 59 एस डब्लू (1) 2013 तथा 60 एस डब्लू (1) -2013 जारी किए थे। क्रमांक 59 के तहत राज्य में पाँच जातियों जाट, बिशनोई, जट्ट सिक्ख, रोड व त्यागी को दस प्रतिशत का आरक्षण विशेष पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत दिया था तथा क्रमांक 60 के तहत अन्य सर्वोच्च अगड़ी सवर्ण जातियों यथा ब्राह्मण , बनिया व राजपूत आदि को इकोनोमिकली बैकवर्ड पर्सन (ईबीपी) श्रेणी के अंतर्गत 10% का आर्थिक आधार पर आरक्षण प्रदान किया गया था। इन दोनों 20% के आरक्षण के कारण हरियाणा प्रदेश में कुल आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% की सीमा रेखा से ऊपर हो गया था, जो आज भी ऊपर चल रहा है। विभिन्न न्यायालयों द्वारा जाटों समेत पांच जातियों के आरक्षण को तो अवरोधित कर दिया गया है, परंतु हरियाणा में इकोनोमिकली बैकवर्ड पर्सन (ईबीपी) का 10% का आरक्षण अभी भी लागू है, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय की सीमा रेखा 50% को लांघकर यह आरक्षण प्रदान किया जा रहा है ।
हरियाणा सरकार ने हाल में अपने हरियाणा लोक सेवा आयोग के माध्यम से विज्ञापन संख्या- 6 दिनांक 20 मार्च, 2017 के तहत कुल 109 पद हरियाणा सिविल सेवा (न्यायिक ब्रांच) के लिए विज्ञापित किए हैं, जिनकी आवेदन प्राप्ति की अंतिम तिथि 24 अप्रैल, 2017 रखी गई है। इन 109 पदों में 8 पद इकोनोमिकली बैकवर्ड पर्सन (ईबीपी) श्रेणी (सामान्य वर्ग) के लिए आरक्षित रखे गए हैं, जिसमे हरियाणा में रिजर्व कैटेगरी को छोडकर सामान्य श्रेणी के ब्राह्मणों सहित सभी सवर्ण जातियों के वे व्यक्ति पात्र हैं जिनकी वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है।
हरियाणा में आर्थिक आधार पर आरक्षण की यह अनूठी पहल है, जहां सुप्रीम कोर्ट की 50% की सीमा रेखा का भी उल्लंघन होता है तथा इन्दिरा साहनी मामले में 1992 में सर्वोच्च न्यायालय के अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से गरीबों के लिए अलग से आरक्षण को अमान्य करार दिया जाने के बावजूद यह आरक्षण दिया जा रहा है। दूसरी तरफ राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा 9 दिसम्बर, 2016 को गुर्जर जाति के 5% के स्पेशल बैकवर्ड श्रेणी के आरक्षण को इस आधार पर अमान्य कर दिया गया कि इस आरक्षण से राजस्थान राज्य में आरक्षण की ऊपरी सीमा 50% से ऊपर हो जाती है। देश में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना दो तरह से हो रही है। इसमे कोई शक नहीं है कि गुर्जर सामाजिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई जाति है। और गुर्जर जाति पहले से ही राजस्थान की ओबीसी श्रेणी के 21% कोटे में शामिल थी, परंतु गुर्जरों को लगता था कि उन्हे अन्य ओबीसी जातियों के मुक़ाबले कम प्रतिनिधित्व मिलता है, इसलिए उन्होंने बार-बार आंदोलनों व सरकार से गुहार के बाद 5% अलग से एसबीसी कोटा प्राप्त किया था। परंतु कोर्ट द्वारा उपरोक्त एसबीसी कोटे को अमान्य करार देने से गुर्जर न घर के रहे न घाट के।
राजस्थान सरकार ने सितंबर, 2015 में समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त ब्राह्मणों, बनियों व राजपूतों समेत अन्य अगड़ी सवर्ण जातियों के लिए आर्थिक आधार पर 14% का कोटा बिल पारित किया था, परंतु सरकार द्वारा इसे अभी तक इस भय से लागू नहीं किया जा रहा कि कोर्ट इसे फिर 50% से अधिक सीमा रेखा के नाम पर रद्द कर देगा। हालांकि उपरोक्त सवर्ण जातियां सरकार पर आंदोलन की धमकी देकर दवाब बनाने की चेष्ठा भी कर रही हैं। अगले वर्ष राज्य में विधान सभा चुनाव होने हैं। हो सकता है सरकार इन अगड़ी जातियों को चुनाव से ठीक पहले आरक्षण का नोटिफ़िकेशन जारी कर आरक्षण का लालीपोप थमा दे।
हरियाणा के जाट व अन्य जातियों के ओ बी सी में शामिल करने की मांग व राजस्थान में अगड़ी जातियों की आर्थिक आधार पर पिछड़े वर्ग को आरक्षण की मांग विभिन्न स्तरों पर सरकारों व राजनैतिक दलों की साजिश की शिकार होती रही हैं और अगर यही परिदृश्य रहा तो शिकार होती भी रहेंगी। एक मोटे अनुमान के अनुसार
80% से अधिक हरियाणा के जाट कृषि व पशुपालन का कार्य करते हैं। यह सभी जानते हैं कि कृषि व पशुपालन व्यवसाय शारीरिक श्रम के सहारे ही संचालित होते हैं। आज केवल सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक रूप से पिछड़ा व्यक्ति ही शारीरिक श्रम पर निर्भर है। गोबर में हाथ तो एक पिछड़ा व्यक्ति ही डाल सकता है, बाकी को तो गोबर में बांस (बदबू) आती है। हर सरकार, हर राजनैतिक पार्टी, हर सर्वे तथा कृषि विभाग व कृषि यूनिवर्सिटी की हर रिपोर्ट बताती है कि किसान पीड़ित है, उसे सभी प्रकार की प्राकृतिक मार झेलनी पड़ती है, उसे अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है और कृषि एक घाटे का व्यवसाय हो गया है। सभी किसान के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं। परंतु जैसे ही यह किसान “जाट” का रूप धारण करता है, सभी अन्य जातियों, जातिगत राजनीति करने वाले दलों व सरकारी तंत्र के लिए “वह” एक साधन सम्पन्न व अ-पिछड़ा हो जाता है। यह दोहरा आचरण जब तक जारी रहेगा, “जाट” व कृषि कार्यों से जुड़ी जातियां आरक्षण के लिए तड़फती रहेंगी। जब पहले से ही ओबीसी के आरक्षण में छह लाख रुपये वार्षिक आय की ऊपरी सीमा रेखा निर्धारित है, तो कैसे कृषि से जुड़ी हरियाणा की जाट समेत अन्य पांच जातियों बिशनोई, जट्ट, सिक्ख, रोड, त्यागी व मूला जाट को साधन सम्पन्न होने का टैग लगाकर आरक्षण से बाहर रखने का फैसला ले लिया जाता है? अगर इन जातियों का कोई व्यक्ति साधन सम्पन्न है, तो स्वत: ही क्रीमी लेयर में होने के कारण आरक्षण का लाभ नहीं ले सकेगा। और यदि जाट समेत अन्य पाँच कृषक जातियों को आरक्षण से बाहर किया जाता है, तो फिर कैसे विशेष सवर्ण जातियों ब्राह्मण, बनिया, राजपूत आदि अन्य जातियों को आर्थिक आधार पर ईपीबी (इकोनोमिकली बैकवर्ड पर्सन) श्रेणी के तहत 10% का विशेष आरक्षण सुप्रीम कोर्ट की दोनों आपतियों ( 50% से अधिक आरक्षण की सीमा रेखा के बाहर तथा अगड़ी सवर्ण जातियों के आर्थिक आधार पर आरक्षण अमान्य) के बावजूद हरियाणा में यह आरक्षण अभी भी दिया जा रहा है?
अब समय आ गया है कि एक निश्चित मापदंड सरकार के स्तर पर ठोस कानून बनाकर तय किया जाए तथा इसे लागू करने से पहले ही सर्वोच्च कोर्ट की पूर्व सहमति लेकर सभी प्रकार के आरक्षण देने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाये ताकि देश प्रदेश में विभिन्न जातीय समूहों में वैमनस्य पैदा न हो एवं लोगों को सड़कों पर न उतरना पड़े। परंतु इसके लिए प्रदेश व केन्द्र सरकारों की निष्पक्ष इच्छा शक्ति की जरूरत है। उन्हे अपने वोट बैंक बढ़ाने के चक्कर को छोड़ना होगा और अपनी प्रजा को जातीय समूह मात्र न मानकर सभी को एक समान नागरिक मानना होगा। परंतु क्या राजनैतिक दल इसे होने देंगे? उत्तर तो शंका के अंधेरे में ही लटकता प्रतीत हो रहा है, फिर भी आस तो सदैव सकारात्मक ही रखनी चाहिये। जरा आप भी सोचें।