जानलेवा हो सकती है मन में उलझी गांठ
किसी का आपसे या आपका किसी से विभिन्न कारण को लेकर मनमुटाव इस कदर बढ़ जाए कि वो भीतर ही भीतर नासूर की तरह पकता चला जाए, इससे बेहतर है कि मन को लगने वाली उस बात को आप कह डालें।
दिमाग से दिल तक बुरा असर
कोई भी ऐसी बात या प्रतिक्रिया जो आपको बुरी लगी और आपने उसे मन में छुपा लिया, या फिर आपने खुद किसी के साथ गलत किया और उसे मन में छुपा लिया, ये दोनों ही चीजें आपके दिमाग से लेकर दिल तक समस्याओं को चुम्बक की तरह खींचने लगती हैं। इसकी वजह से आप हर समय तनाव में घिरे रहते हैं, एकाग्रचित्त होकर कोई काम नहीं कर पाते, आपके दिल की धड़कनें उस विषय के सामने आते ही असामान्य होने लगती हैं। और धीरे-धीरे यह चीज आपके शरीर और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में बाधा डालने लगती है।
अनिद्रा, हमेशा बना रहने वाला सिर दर्द या सिर का भारीपन, पेट की समस्याएं, हाई बीपी, डायबिटीज, भूख पर असर, अवसाद, याददाश्त में कमी आदि जैसी कई तकलीफें इसके चलते आपके साथ जुड़ने लगती हैं और बोझ यदि बढ़ गया तो जान पर भी बन सकती है।
बोलिए, परेशानी मिटाने के लिए
झूठ, धोखे या चुभन को मन में रखना आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है। जबकि उसी बात को लेकर अपनी गलती स्वीकारने और खुद को दंड के लिए प्रस्तुत करने का भाव आपके दिमाग को शांति और शरीर को राहत देता है। इससे शरीर और दिमाग के बीच सही तालमेल बना रहता है। यही कारण है कि धर्मों और पुराणों में भी ईश्वर या उसके किसी प्रतिनिधि के समक्ष कन्फेशन की प्रक्रिया को इतना सम्मान दिया गया है। इससे आप कई परेशानियों से उबार पाते हैं।
संतुलित रह पाता है शरीर
ये विज्ञान सम्मत बात है कि जब आप किसी नकारत्मक विचार या झूठ जैसी भावनाओं को मन में दबाते हैं तो शरीर का प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा सकता है। इससे हॉर्मोन्स के स्राव की क्रिया गड़बड़ा सकती है और शरीर में कई प्रकार के विकार पैदा हो सकते हैं। यह एक ठोस बात है कि जिस तरह सुन्दर फूल या प्राकृतिक छटा को देखने, उत्सव मनाने या खुशियों को जीने से शरीर और मन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ठीक उसी तरह मन में दबा डर, छटपटाहट और दुश्चिंता नकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकती है। गलती स्वीकार कर लेने से इंसान इस उलझन से मुक्ति पा जाता है।
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