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जानिए आखिर कैसे मिली थी गांधी जी को राष्ट्रपिता और महात्मा की उपाधि !

जिसने देशवासियों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना सिखाया. जिसने बिना किसी हिंसा के अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलाने में अपना अहम योगदान दिया, आजादी के उस सुपरहीरो को आज करोड़ो देशवासी नमन करते हैं.

जानिए आखिर कैसे मिली थी गांधी जी को राष्ट्रपिता और महात्मा की उपाधि !जी हां, आज 2 अक्टूबर का वही खास दिन है जो सदा-सदा के लिए इतिहास के पन्नों पर अमर हो गया, क्योंकि इसी दिन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जन्म लिया था.

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. महात्मा गांधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी ने देश को अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त कराने के लिए कितने ही सत्याग्रह किए लेकिन जीतने के लिए कभी हिंसा का प्रयोग नहीं किया.

आज सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया मोहनदास करमचंद गांधी को भारत के राष्ट्रपिता और महात्मा गांधी के तौर पर जानती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्हें राष्ट्रपिता और महात्मा की ये उपाधि आखिर कैसे मिली.

तो चलिए आज गांधी जयंती के इस खास मौके पर हम आपको बताते हैं, उनके बारे में जिन्होंने पहली बार गांधीजी को महात्मा और राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था.

गांधीजी को ऐसे मिली थी राष्ट्रपिता की उपाधि

दरअसल साल 1944 में एक रेडियो संबोधन के दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ही सबसे पहले गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था. हालांकि इस उपाधि से गांधीजी को संबोधित किए जाने की तारीख को लेकर थोड़ा विवाद है.

बताया गया है कि 4 जून 1944 को नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए गांधीजी को ‘देश का पिता’ कहकर संबोधित किया था.

इसके बाद 6 जुलाई सन 1944 को नेताजी ने सिंगापुर से एक रेडियो संदेश प्रसारित करते हुए गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था.

जबकि 30 जनवरी सन 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रेडियो पर देशवासियों को संबोधित किया और गांधी जी की हत्या की खबर देते हुए कहा कि ‘राष्ट्रपिता अब नहीं रहे’.

सबसे पहले गांधी जी को किसने कहा था महात्मा?

आमतौर पर यह बताया जाता है कि 12 अप्रैल सन 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक खत लिखा था जिसमें उन्होंने गांधीजी को ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था.

हालांकि इसे लेकर कुछ विद्वानों का मत है कि साल 1915 में राजवैद जीवराम कालिदास ने सबसे पहले गांधीजी को ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था. जबकि कुछ लोगों का मानना है कि रवींद्रनाथ टैगोर ही वो पहले शख्स थे जिन्होंने उन्हें महात्मा कहकर पुकारा था.

पूरी दुनिया को दी सत्य और अहिंसा की सीख

महात्मा गांधी देश की आजादी के लिए किए जानेवाले आंदोलनों के एक प्रमुख राजनैतिक और आध्यात्मिक नेता थे. गांधी जी हमेशा कहा करते थे कि अगर कोई एक थप्पड़ मारे तो ऐसे में हिंसा करने के बजाय अपना दूसरा गाल भी आगे कर देना चाहिए. उनका मानना था कि हमारी विनम्रता से सामनेवाला इंसान एक ना एक दिन जरूर पिघल जाएगा.

उन्होंने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों के खिलाफ ना सिर्फ बगावत की बल्कि सत्य और अहिंसा को अपना हथियार बनाकर उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को इस कदर लाचार कर दिया कि उन्हें भारत छोड़ना ही पड़ा.

गांधी जी ने सिर्फ हिंदुस्तानियों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को यह सीख दी है कि बिना किसी हिंसा के बड़ी से बड़ी लड़ाई लड़कर उसपर जीत हांसिल की जा सकती है.

गौरतलब है कि आज पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और साबरमती के इस महान संत की 148वीं जयंती मना रहा है. इस बेहद ही खास मौके पर यंगिस्थान भी महात्मा गांधी को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है.

 

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