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जानिए आरक्षण का सचः 27 फीसदी कोटा, नौकरियां मिलीं 00

केंद्र सरकार ने जनरल वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. सरकार भले ही आर्थिक रुप से कमजोर जनरल वर्ग के लोगों को आरक्षण देकर उनका उत्थान करने का दावा कर रही हो, लेकिन इससे पहले दलितों को मिले आरक्षण से उनकी भागीदारीबहुत ज्यादा नहीं बढ़ पाई है. कम से कम कुछ आंकड़े यही बताते हैं.

जानिए आरक्षण का सचः 27 फीसदी कोटा, नौकरियां मिलीं 00कहा जाता है कि दलितों को आरक्षण मिलने से उन्हें सरकारी नौकरियों में ज्यादा अवसर मिलते हैं और उनकी भागीदारी काफी ज्यादा होती है. हालांकि, जमीनी स्तर पर हकीकत अलग है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये सच है कि आरक्षण से पिछड़े ही पिछड़े भर गए हैं? क्या ये सच हैकि आरक्षण से दलित ही दलित भर गए हैं?

हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में इन सवालों के जवाब सामने आए. दरअसल, आरटीआई में मिली जानकारी सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण के सिद्धांत से काफी अलग है. देखें क्या कहते हैं आंकड़े…

देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण की सच्चाई?

बता दें कि देश में कुल 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिसमें कुल पढ़ाने वाले 11486 हैं और गैर शिक्षण कर्मचारी 5835 हैं. साथ ही इन 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 1125 प्रोफेसर हैं और इनमें दलित प्रोफेसर 39 यानी 3.47 फीसदी (15 फीसदी होने चाहिए थे), आदिवासीप्रोफेसर 6 यानी 0.7 फीसदी (7.5 फीसदी होने चाहिए थे) और पिछड़े प्रोफेसर 0 (27 फीसदी होने चाहिए थे) और सवर्ण प्रोफेसर 1071 यानी 95.2 फीसदी (अधिकतम 50 फीसदी हो सकती) हैं.

क्या है असोसिएट प्रोफेसर का हाल?

अगर असोसिएट प्रोफेसर की बात करें तो 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में असोसिएट प्रोफेसर की हालत और भी चौंकाने वाली है. दरअसल 40 संस्थानों में कुल 2620 असोसिएट प्रोफेसर हैं. इसमें 130 यानी 4.96 फीसदी दलित प्रोफेसर (न्यूनतम 393 होने चाहिए थे), 34 यानी 1.3 फीसदीआदिवासी प्रोफेसर (न्यूनतम 197 होनी चाहिए थे) और 3434 यानी 92.9 फीसदी सवर्ण प्रोफेसर (अधिकतम 50 फीसदी हो सकते थे) हैं. वहीं पूरे देश में एक भी पिछड़े वर्ग का असोसिएट प्रोफेसर नहीं है.

क्या है असिस्टेंट प्रोफेसर का हाल?

वहीं देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय में 7741 असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इसमें 931 यानी 12.2 फीसदी दलित प्रोफेसर (न्यूनतम चाहिए 1161 पद), 423 यानी 5.46 फीसदी आदिवासी प्रोफेसर (न्यूनतम चाहिए 581 पद), 1113 यानी 14.38 फीसदी पिछड़े वर्ग प्रोफेसर (न्यूनतम चाहिए2090 पद), 5130 यानी 66.27 फीसदी सवर्ण प्रोफेसर (अधिकतम चाहिए 3870 पद) हैं.

केंद्रीय नौकरियों का क्या है हाल? 

– रेलवे में कुल 16381 पद हैं, जिसमें 1319 (8.05%) पिछड़े और 11273 (68.72%) सवर्ण कर्मचारी हैं.

– 71 विभागों में कुल 343777 पद हैं, जिसमें 51384 (14.94%) पिछड़े और 216408 (62.95%) सवर्ण कर्मचारी हैं.

– मानव संसाधन विकास मंत्रालय में कुल 665 पद हैं, जिसमें 56 (8.42%) पिछड़े और 440 (66.17%) सवर्ण कर्मचारी हैं.

– कैबिनेट सचिवालय में कुल 162 पद हैं, जिसमें 15 (9.26%) पिछड़े और 130 (80.25%) सवर्ण कर्मचारी हैं.

– राष्ट्रपति सचिवालय में कुल 130 पद हैं, जिसमें 10 (7.69%) पिछड़े और 97 (74.62%) सवर्ण कर्मचारी हैं.

इस जानकारी के अनुसार, सवर्णों के अधिकतम 50 फीसद होने का सारा हिसाब उलटा हो जाता है और पिछड़ों के न्यूनतम 27.5 फीसद होने का हिसाब भी सही नहीं बैठता. वहीं, 1 अप्रैल 2018 तक भारत के किसी भी केंद्रीय विश्वविद्यालय के किसी भी विभाग में 28 साल के आरक्षण के बादभी पिछड़ी जाति का एक भी प्रोफेसर और पिछड़े वर्ग का असोसिएट प्रोफेसर नहीं था. वहीं, असिस्टेंट प्रोफेसर आरक्षित सीट से आधे ही हैं.

आंकड़ों से पता चलता है कि नियमों के अनुसार तय पदों पर ही आरक्षित उम्मीदवारों की नियुक्ति नहीं हो पाई है और जनरल वर्ग के उम्मीदवारों को नियुक्ति अधिकतम सीमा से भी ज्यादा है.

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