मंदिर में गर्भगृह का महत्व
मंदिर ऐसे स्थानों पर बने होते हैं जहां पर उत्तर और दक्षिणीय ध्रुवों के चुंबकीय और विद्युतीय बलों के कारण सकारात्मक ऊर्जा भरपूर मात्रा में होती है। मंदिर में मुख्य मूर्ति ठीक बीच में स्थापित की जाती है। इस जगह को मूल स्थान या गर्भगृह भी कहते हैं। जहां मूर्ति की स्थापना होती है उस स्थान के नीचे वैदिक मंत्रों से लिखी तांबे की धातुएं रखी जाती है। तांबा धरती के चुंबकीय बल को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए जब कोई नियमित तौर पर मंदिर में जाकर परिक्रमा करता है तो तांबे के इसी चुंबकीय प्रभाव के कारण शरीर की नकारात्मक ऊर्जा भी धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा का स्थान ले लेती है।