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जानिए क्या है आईवीएफ प्रेग्नेंसी से जुड़े मिथकों की सच्चाई

इन्फर्टिलिटी की समस्या से निपटने के लिए तमाम तरह की तकनीकी आजकल प्रचलन में हैं। आधुनिक तकनीकियों का प्रयोग करके इन्फर्टिलिटी से जूझ रहे लोगों को संतान की प्राप्ति हो सकती है। इसी तरह की एक तकनीकी है जिसे इन विट्रो फर्टिलाइजेशन यानी कि आईवीएफ कहा जाता है। आईवीएफ एक मेडिकल प्रक्रिया है जिसकी मदद से गर्भधारण कराया जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से महिला के अंडों को पुरूष के स्पर्म के साथ लैब में रखा जाता है। बाद में उनके फर्टिलाइज हो जाने पर उसे महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है। इस दौरान यह भी ध्यान रखा जाता है कि वो सुरक्षित तरीके से भ्रूण बन सके।जानिए क्या है आईवीएफ प्रेग्नेंसी से जुड़े मिथकों की सच्चाई

दुनिया भर में इस तकनीकी का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रक्रिया को लेकर लोगों के मन में कई तरह के मिथक भी मौजूद हैं। इन मिथकों में से कुछ मिथकों की सच्चाई के बारे में ब्लूम आईवीएफ ग्रुप के डाइरेक्टर और फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड जाइनेकोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल डॉ. ऋषिकेश डी पाइ ने वेबसाइट ‘हेल्थसाइट’ के हवाले से बताया है। आइए जानते हैं कि आईवीएफ प्रेग्नेंसी से जुड़े मिथक कौन-कौन से हैं और उनकी क्या सच्चाई है।

यह शत प्रतिशत सफल होती है –
आईवीएफ की सफलता उम्र, इन्फर्टिलिटी की वजह तथा बायोलॉजिकल और हार्मोनल कंडीशन पर निर्भर करती है। 35 साल से कम उम्र वाले जोड़ों में इसकी सफलता – दर चालीस प्रतिशत तक होती है।

आईवीएफ तकनीकी से पैदा होने वाले बच्चों में बर्थ डिफेक्ट होता है और वे बदसूरत होते हैं-
आईवीएफ से पैदा होने वाले बच्चों में बदसूरती या फिर किसी तरह की अपंगता का खतरा बहुत कम होता है। इस तकनीकी से पैदा होने वाले बच्चों में किसी भी तरह की कमी की संभावना उतनी ही होती है जितनी आम डिलीवरी से पैदा होने वाले बच्चों में होती है।

आईवीएफ प्रेग्नेंसी में सीजेरियन बर्थ की संभावना होती है –
आईवीएफ प्रेग्नेंसी सामान्य प्रेग्नेंसी की ही तरह होती है। यह सीजेरियन डिलीवरी का संकेत नहीं है। इस तकनीकी से एक सामान्य वेजिनल डिलीवरी संभव है।

आईवीएफ प्रेग्नेंसी के लिए अस्पताल में एडमिट होना पड़ता है –
ऐसा केवल कुछ घंटो के लिए करना पड़ता है। अंडों के संग्रह की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।

आईवीएफ सुरक्षित नहीं है –
यह पूरी तरह से सुरक्षित प्रक्रिया है। इस केस में सिर्फ 2 प्रतिशत पेशेंट ऐसे होते हैं जिनमें ओवेरियन हाइपर स्टिमुलेशन सिंड्रम से ग्रस्त होने का खतरा होता है।

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