जानिए क्या है शीतला माता की व्रत कथा और पूजन विधि
26 जनवरी शनिवार को रखा जाने वाला व्रत मां शीतला को समर्पित है. पहले जब बच्चों को शरीर पर माता निकल आती थी, यानी छोटे-छोटे दाने पूरे शरीर पर निकल आते थे, तो बुजुर्ग इसे मां शीतला का प्रकोप मानते थे. इसलिए मां शीतला को शांत और प्रसन्न करने के लिए इस व्रत का आरंभ हुआ. कई बार इस बीमारी को चेचक का रूप भी माना जाता था. इस व्रत को रखने से महिलाओं को पुत्र की प्राप्ति होती है और वह स्वस्थ रहता है.
– शीतला षष्ठी के दिन शीतला माता की पूजा करनी चाहिए.
– इस दिन कोई भी गरम चीज़ का सेवन नहीं करना चाहिए.
– शीतला माता के व्रत के दिन ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए.
– ठंडा भोजन करना चाहिए. इसे ‘बासौढ़ा’ भी कहते हैं.
– इस दिन लोग रात में बना बासी खाना पूरे दिन खाते हैं.
– शीतला षष्ठी के दिन लोग चूल्हा नहीं जलाते हैं, बल्कि चूल्हे की पूजा करते हैं.
शीतला माता की कथा-
शीतला माता षष्टी व्रत कथा के अनुसार एक समय की बात है, एक ब्राह्माण के सात बेटे थे. उन सभी का विवाह हो चुका था. उसके किसी बेटे की कोई संतान नहीं थी. एक बूढ़ी माता ने ब्राह्माणी को पुत्र-वधुओं से व्रत करने को कहा, उन्होंने शीतला माता का षष्टी व्रत करने की सलाह दी. उस ब्राह्माणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया. व्रत से उसकी पुत्र वधुओं को संतान कि प्राप्ति हुई.
एक बार ब्राह्माणी ने व्रत के नियम का पालन नहीं किया. व्रत के दिन गर्म जल से स्नान कर लिया. व्रत के दिन भी ताजा भोजन खाया और व्रत के समय बताए गए विधि-नियमों का पालन नहीं किया. यही गलती ब्राह्मणी की बहुओं ने भी की. उसी रात ब्राह्माणी ने भयानक स्वप्न देखा. वह स्वप्न में जाग गई. ब्राह्माणी ने देखा की उसके परिवार के सभी सदस्य मर चुके हैं. अपने परिवार के सदस्यों को देख कर वह शोक करने लगी, उसे पड़ोसियों ने बताया की भगवती शीतला माता के प्रकोप से हुआ है. यह सुन ब्राह्माणी का विलाप बढ़ गया. वह रोती हुई जंगल की ओर चलने लगी.
जंगल में उसे एक बुढ़िया मिली. वह बुढ़िया अग्नि की ज्वाला में तड़प रही थी. बुढ़िया ने कहा कि अग्नि की जलन को दूर करने के लिए उसे मिट्टी के बर्तन में दही लेकर लेप करें. इससे उसकी ज्वाला शांत हो जाएगी और शरीर स्वस्थ हो जाएगा. यह सुनकर ब्राह्माणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ. उसने माता से क्षमा मांगी और अपने परिवार को जीवत करने की विनती की. माता ने उसे दर्शन देकर मृतकों को दही का लेप करने का आदेश दिया. ब्राह्माणी ने वैसा ही किया और ऐसा करने के बाद उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे. उस दिन से इस व्रत को संतान की कामना के लिए किया जाता है.