जाने सांप के जीभ दो हिस्सों में क्यूँ बंटा होता हैं, महाभारत काल से जुड़ी है इसकी कड़ी
वैसे तो दुनिया भर के लोगों के लिए सांप महज एक जेहरीला जानवर है जिससे अमूमन लोग डरते हैं. लेकिन हिन्दुस्तान में सांप महज एक जानवर नहीं है बल्कि सांप को पूजा भी जाता है. हमारे देश में साँपों से जुड़ी बहुत से तरह कहानियाँ प्रचलित हैं. आज हम आपको साँपों के बारे में कुछ विशेष बातें बताने जा रहे हैं जिन्हें आज से पहले आप शायद ही जानते होंगें. सांप तो आप सबने कभी ना कभी देखा ही होगा तो ये भी देखा होगा की सांप के जीभ दो हिस्सों में होते हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं की साँपों के जीभ आखिर कार दप हिस्सों में क्यूँ बंटे होते हैं. तो आईये जानने की कोशिश करते हैं की आखिर क्या है इस के पीछे की सच्चाई.
आपको बता दें की साँपों के जीभ के दो हिस्सों में बंटे होने की कहानी काफी पुराणी इसका जुड़ाव असल में महाभारत काल से है. जी हाँ महाभारत काल में ऐसा कहा गया है की एक प्रसिद्द ऋषि हुआ करते थे महर्षि कश्यप. इस ऋषि दो पत्नियां थीं कुद्रू और वनिता, पौराणिक तथ्यों को माने तो मह्रिषी कश्यप की पहली पत्नी कुद्रू के सभी संतान सांप थे. उनकी दूसरी पत्नी से उनका एक बेटा था गरुड़ देव, एक बार की बात है कुद्रू और वनिता आपस में बात चीत कर रहे थे तभी उन्हें दूर एक घोड़ा दिखा जो की बिलकुल सफ़ेद था.
कुद्रू के वनिता से कहा की बताओ घोड़े का रंग क्या है, वनिता ने बहुत ही सहजता के साथ जवाब दिया की सफ़ेद इसपर कुद्रू ने कहा की नहीं घोड़ा बिलकुल सफ़ेद नहीं है उसका पूँछ काला है. वनिता ने कुद्रू से इस बात पर शर्त लगा ली की नहीं घोड़े का रंग सफ़ेद ही, अब अपनी बात को सही साबित करने के लिए कुद्रू ने अपने सभी बच्चों यानी की साँपों से कहा की तुम सब आकार में छोटे हो जाओ और जाकर उस घोड़े की पूँछ से लिपट जाओ. इसके बाद कुद्रू ने वनिता को घोड़ा दिखाया तो सच में उसका पूँछ काला नजर आया क्यूंकि उससे काले नाग लिपटे थे. लिहाजा वनिता शर्त हार गयी और शर्त के मुताबिक उसे कुद्रू की दासी बनकर रहना पड़ा.
अब ये बात वनिता के बेटे गरुड़ देव को बिलकुल नहीं भा रही थी की उसकी माँ किसी की दासी बनकर रहे. गरुड़ देव ने कुद्रू से काफी मिन्नतें की आप मेरी माँ को छोड़ दो लेकिन उसने एक ना सुनी. इसके बाद गरुड़ देव ने कुद्रू से कहा की आपको जो चहिये मैं आपको वो ला के दूंगा लेकिन आप मेरी को छोड़ दो. कुद्रू ने गरुड़ देव की बात मान ली और उससे स्वर्ग में रखा अमृत कलश लाने को कहा, गरुड़ देव ने अपनी माँ की खातिर अमृत कलश लाकर एक ख़ास प्रकार के घास के ऊपर रख दिया जो की काफी नुकीला होता है. अमृत कलश देखकर कुद्रू ने अपने सभी सांप संतानों से कहा की वो अमृत पान करने के लिए तैयार हो आये लेकिन इसी बीच वहां इन्द्रदेव प्रकट हुए और वो अमृत कलश अपने साथ लेकर वपिस स्वर्ग चले गए. इधर कुद्रू के सभी संतान उस घास को ही चाटने लगे जहाँ अमृत कलश रखा था ये सोचकर की यहाँ कुछ ना कुछ तो अमृत का अंश होगा ही. चूँकि जिस घास को सभी सांप चाट रहे थे वो काफी नुकीला था और लिए सभी साँपों के जीभ के दो हिस्से हो गए.