दस्तक-विशेष

जीवन के हर फलसफे पर गीत लिखने में माहिर थे शैलेन्द्र

shमुंबई। दो दशक से अधिक समय तक लगभग 17० फिल्मों में जिंदगी के हर फलसफे और जीवन के हर रंग पर गीत लिखने वाले शैलेन्द्र के गीतों में हर मनुष्य स्वंय को ऐसे समाहित सा महसूस करता है जैसे वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो। अपने गीतो की रचना की प्रेरणा उन्हें मुंबई के जुहू बीच पर सुबहकी सैर के दौरान मिलती थी। चाहे जीवन की साधारण सी कोई बात कयों न हो वह अपने गीतों के जरिये जीवन के सभी पहलुओं को उजागर करते थे। पश्चिमी पंजाब के रावलपिन्डी शहर अब पाकिस्तान में 3० अगस्त1923 को जन्मे शंकर दास केसरीलाल उर्फ शैलेन्द्र अपने भाइयों मे सबसे बडे थे। उनके बचपन में ही उनका परिवार रावलपिंडी छोडकर मथुरा चला आया। अपने परिवार की घिसी पिटी परंपरा को निभाते हुये शैलेन्द्र ने वर्ष 1947 में अपने कैरियर की शरूआत मुंबई में रेलवे की नौकरी से की। 

शैलेन्द्र ऑफिस मे अपने काम के समय भी वह अपना ज्यादातरसमय कविता लिखने मे हीं बिताया करते थे। इस बीच शैलेन्द्र देश की आजादी की लडाई से जुड गये और अपनी कविता के जरिये वह लोगों मे जागृति पैदा करने लगे। उन दिनों उनकी कविता ..जलता है पंजाब ..काफी सुर्खियों मे आ गयी थी। शैलेन्द्र कई समारोह में यह कविता सुनाया करते थे।
गीतकार के रुप में शैलेन्द्र ने अपना पहला गीत वर्ष 1949 में प्रदर्शितराजकपूर की फिल्म बरसात के लिये ..बरसात में तुमसे मिले हम सजन ..लिखा था। इसे संयोग हीं कहा जाये कि फिल्म बरसात से हीं बतौर संगीतकार शंकर जयकिशन ने अपने कैरियर की शरूआत की थी। इसके बाद शैलेन्द्र .राजकपूर के चहेते गीतकार बन गये। राजकपूर के अलावा शैलेन्द्र की जोडी निर्माता..निर्देशक विमल रायके साथ भी खूब जमी। शैलेन्द्र अपने कैरियर के दौरान प्रोग्रेसिव रायटर्स एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बने रहे। वह इंडियन पीपुल्स थियेटर ..इप्टा.. के भी संस्थापक सदस्यों में से एक थे। शैलेन्द्र को उनके गीतों के लिये तीन बार फिल्म फे यर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
शैलेन्द्र के सिने सफर में उनकी जोडी प्रसिद्ध संगीतकार शंकरजयकिशन और सलिल चौधरी के साथ खूब जमी और उनके बनाये गाने जबर्दस्त हिट हुये। शैलेन्द्र ने नया.बूट पालिश.श्री 42० और तीसरी कसम में अभिनय भी किया था। इसके अलावा उन्होनें फिल्म परख 196० के संवाद भी लिखे थे।
शैलेन्द्र ने वर्ष 1966 में तीसरी कसम का निर्माण किया लेकिनबॉकस आफिस पर इसकी असफलता के बाद उन्हे गहरा सदमा पहुंचा और 14 दिसंबर 1966 को उनकी मृत्यु हो गयी। इसे महज एक संयोग हीं कहा जायेगा कि उसी दिन राजकपूर का जन्मदिन भी था।

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