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जीवन में 11 बार जेल गए सुभाष चंद्र बोस

एक क्रान्तिकारी कोलकाता के पुलिस अधीक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। लेकिन उसने गलती से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फांसी की सजा दी गई। गोपीनाथ को फांसी होने के बाद सुभाष फूट-फूट कर रोए थे।

नई दिल्ली : नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने अंग्रेजों से कई बार लोहा लिया। वो सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा को छोड़कर देश को आजाद कराने की मुहिम का हिस्सा बन गए। इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने उनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज किए। जिसका नतीजा ये हुआ कि सुभाष चंद्र बोस को अपने जीवन में 11 बार जेल जाना पड़ा। वे सबसे पहले 16 जुलाई 1921 को जेल गए थे। जब उन्हें छह महीने के लिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। इसके बाद वे दूसरी बार 1925 में जेल गए। हुआ यूं कि गोपीनाथ साहा नामक एक क्रान्तिकारी कोलकाता के पुलिस अधीक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। उसने गलती से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फांसी की सजा दी गई। गोपीनाथ को फांसी होने के बाद सुभाष फूट-फूट कर रोए थे। उन्होंने गोपीनाथ का शव मांगकर उसका अन्तिम संस्कार किया।

इस बात से अंग्रेज़ सरकार को लगा कि सुभाष का संबंध क्रांतिकारियों से है। साथ ही वो उन्हें उकसाते भी हैं। बस इसी बहाने अंग्रेज़ी सरकार ने सुभाष को गिरफ़्तार किया और बिना कोई मुकदमा चलाए उन्हें अनिश्चित काल के लिये म्यांमार की माण्डले जेल में बन्दी बनाकर भेज दिया। फिर 5 नवम्बर 1925 की बात है। देशबंधु चित्तरंजन दास का कोलकाता में निधन हुआ। सुभाष ने उनकी मृत्यु की खबर माण्डले जेल में रेडियो पर सुनी। माण्डले जेल में रहते समय सुभाष की तबीयत बहुत खराब हो गई। उनकी हालत बहुत खराब थी। लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने फिर भी उन्हें रिहा करने से इनकार कर दिया। बाद में सरकार ने उन्हें रिहा करने की शर्त रखी कि वे इलाज के लिये यूरोप चले जाएं। लेकिन सरकार ने यह साफ नहीं किया कि इलाज के बाद वे भारत कब लौट सकते हैं।

इसलिए सुभाष ने यह शर्त नहीं मानी। आखिर में उनकी हालत बहुत बिगड़ गई। जेल अधिकारियों को लगा कि शायद वे कारावास में ही उनकी मौत न हो जाए। अंग्रेज़ सरकार यह खतरा भी नहीं उठाना चाहती थी। लिहाजा सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। इसके बाद सुभाष इलाज के लिये डलहौजी चले गए। लेकिन इसके कुछ दिन बाद ही उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। वर्ष 1930 में सुभाष जेल में बंद थे।

लेकिन उन्होंने जेल से ही कोलकाता के मेयर का चुना लड़ा और वे जीत गए। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गई। 1932 में सुभाष को फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। इस बार उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया। अल्मोड़ा जेल में उनकी तबीयत फिर से खराब होने लगी। इस बार नेताजी ने डॉक्टरों की सलाह मान ली और वे इलाज के लिये यूरोप जाने को राजी हो गए। इसके बाद वे यूरोप चले गए। वहां रहकर भी भारत की आजादी के लिए अपनी कोशिशों में लगे रहे। इस तरह से कुल मिलाकर उन्हें 11 बार जेल जाना पड़ा था।

नेताजी सुभाष बोस- संक्षिप्त परिचय

नेताजी का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। वे एक संपन्न बंगाली परिवार से संबंध रखते थे। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था। जबकि उनकी मां का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के एक मशहूर वक़ील थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस समेत उनकी 14 संतानें थी। जिनमें 8 बेटे और 6 बेटियां थीं। सुभाष चंद्र उनकी 9वीं संतान और पांचवें बेटे थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल से प्राप्त की उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता चले गए।

और वहां के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की इसके बाद वे इण्डियन सिविल सर्विस (ICS) की तैयारी के लिए इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। अंग्रेज़ों के शासन में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत मुश्किल था। लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया। 1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस भारत लौट आए और उन्होंने सिविल सर्विस छोड़ दी। इसके बाद नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे।

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