स्वास्थ्य

जोड़ों के दर्द का आयुर्वेदिक उपचार

नई दिल्ली। सदियों से आयुर्वेद को जोड़ों के दर्द का उपचार उपलब्ध कराने में शीर्ष स्थान प्राप्त है। जीवा के मशहूर आर्युवेदाचार्य डॉक्टर प्रताप चौहान ने जोड़ों से जुड़ी परेशानियों और उनके उपचार के बारे में विस्तार से बताया। संभवतः अन्य किसी भी उपचार पद्धति में जोड़ों से संबंधित रोगों और इनके उपचार की इतनी बेहतर पकड़ नहीं है, जितनी कि आयुर्वेद में है। भारत में पीढ़ियों से विशेष रूप से अधिक उम्र के व्यक्ति जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए आयुर्वेद का लाभ लेते रहें हैं। आज भी उम्र के दूसरे पड़ाव में जोड़ों के दर्द की शिकायत सबसे अधिक सुनने को मिलती है। वरिष्ठ नागरिकों में घुटनों का दर्द सामान्य समस्या हो गई है, हालांकि इस उम्र के लोगों में अन्य जोड़ों की समस्या भी देखी जाती है।

युवा और वृद्धावस्था, दोनों में जोड़ों के दर्द से परेशान लोगों के लिए आयुर्वेद राम बाण की तरह है। भारत में जुलाई से लेकर अगस्त के अन्त तक बारिश के मौसम में जोड़ों के दर्द की समस्या और बढ़ जाती है। शायद यह समय आपको यह समझने के लिए सबसे अच्छा होगा कि इस कष्ट से छुटकारा पाने में आयुर्वेद आपकी मदद कैसे कर सकता है।

पढ़ें: कैसे होता है जोड़ों के दर्द का आयुर्वेदिक उपचार

सदियों से आयुर्वेद को जोड़ों के दर्द का उपचार उपलब्ध कराने में शीर्ष स्थान प्राप्त है। जीवा के मशहूर आर्युवेदाचार्य डॉक्टर प्रताप चौहान ने जोड़ों से जुड़ी परेशानियों और उनके उपचार के बारे में विस्तार से बताया।

यह दुखद है कि आमतौर पर लोग जोड़ों से संबंधित रोगों और उनके कारणों को नहीं समझ पाते हैं। इसलिए जब वे जोड़ों के दर्द से परेशान होते हैं, तो वे एनल्जेसिक और सूजन हटाने वाली दवाएं लेने लगते हैं और वर्षों तक लेते रहते हैं, इस उम्मीद में कि उनकी तकलीफ दूर हो जाएगी। जब उन्हें यह पता चलता हैं कि इन दवाओं से कोई स्थाई लाभ नहीं हो रहा है, तो वे आयुर्वेद का रुख करते हैं। लेकिन इस समय तक देर हो जाती है। यदि वे आयुर्वेदिक उपचार, रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर ही शुरू कर दें, तो वे कहीं बेहतर परिणाम पा सकते हैं और जोड़ों के दर्द की समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा भी पा सकते हैं।

जोड़ों में दर्द और सूजन उस समय होती है, जब जोड़ों के सामन्य रूप से काम करने या फिर संरचना में कोई गड़बड़ी पैदा हो जाए। जोड़ों का दर्द अनेक परिस्थितियों और कारणों से हो सकता है। इसके मुख्य कारण हैं, सूजन, संक्रमण यानी इन्फेक्शन, चोट लगना, एलर्जी और जोड़ों का सामन्य रूप से घिसना। रह्यूमेटॉएड आर्थराटिस, ऑस्टिओआर्थराइटिस, गाउट, वॉयरल ऑर्थराइटिस, रह्यूमेटिक लाइम डिजीज, ड्रग-इंड्यूस्ड आर्थराइटिस, बर्साइटिस और मोटापा जोड़ों में दर्द के कुछ मेडिकल कारण हैं।

जोड़ों की तकलीफों के समाधान, रख-रखाव और उपचार के लिए आयुर्वेद की अपनी अवधारणा और नैदानिक सोच है। आयुर्वेद में जोड़ों को संधि कहा जाता है और जोड़ अस्थि व मज्जा धातु से मिलकर बनते हैं। जोड़ों को बांध कर रखने वाले लिगामेंट रक्त धातु से बने होते हैं, जो पित्त दोष के अधीन होती है। श्लेषक कफ, जोड़ों को चिकनापन प्रदान करता है, जबकि जोड़ों की गति के लिए वात का महत्व है।

इन सभी दोषों के गुण एक-दूसरे के लगभग विपरीत हैं। कफ, तैलीय, चिपचिपा, गाढ़ा और मंद होता है, वहीं वात शुष्क और गतिमान होता है। दूसरी ओर पित्त गर्म, तीव्र और स्थिर होता है। जोड़ों में इन सभी दोषों का बहुत जटिल संतुलन होता है और जरा भी असंतुलित होने पर जोड़ों की संरचना व कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है, जिसका परिणाम होता है-जोड़ों में दर्द।

जोड़ों के कुशलता से काम करते रहने के लिए वात का मुक्त प्रवाह होना अनिवार्य है। यदि इसके मार्ग में कोई रुकावट आती है, तो जोड़ों के सही तरह से काम करने पर प्रतिकूल असर पड़ता है, और यह दर्द पैदा कर सकता है। आयुर्वेद के अनुसार खाए गए भोजन को जठराग्नि पचाती है। जब जठराग्नि मंद पड़ जाती है, तो पाचन गड़बड़ा जाता है। खराब पाचन के कारण शरीर में आम एकत्रित होता है और जब ये विषाक्त पदार्थ यानी आम जोड़ों में इकट्ठा होने लगता है, तो वात के मार्ग को अवरुद्ध करता है, जिसके कारण जोड़ों का दर्द पैदा होता है।

जोड़ों के दर्द में आयुर्वेदिक उपचार, समग्र रूप से रोग की जड़ पर काम करता है। इस उपचार में विभिन्न नियमों के अनुसार काम किया जाता है। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

दीपनः दवाओं और उपवास (व्रत) की मदद से जठराग्नि प्रदीप्त करना। जब शरीर में विषाक्त तत्व जमा हो जाने के कारण व्यक्ति की भूख कम हो जाती है, तो जठराग्नि प्रदीप्त करने के लिए इस नियम का प्रयोग किया जाता है।

पाचनः दवाओं, जड़ी-बूटियों, पाचक पदार्थों और व्यायाम की मदद से विषाक्त तत्वों को पचाना। जोड़ों और शरीर में विषाक्त तत्वों का जमा हो जाना अक्सर जोड़ों के दर्द का मुख्य कारण होता है, इसलिए पाचन नियम से इन तत्वों को पचाने और शरीर से बाहर निकालने में मदद मिलती है। अमृता, निर्गुण्डी और शुण्ठी जैसी औषधियां शरीर के आम को पचाने में बहुत सहायक हैं।

स्नेहनः तेल मालिश, ऑयल बाथ या स्निग्ध भोजन में घी का सेवन करना, बढ़े हुए वात को कम करने के लिए बहुत प्रभावी है। तेल, घी, मज्जा और वसा जैसे तैलीय पदार्थों का सेवन जोड़ों के दर्द के उपचार में बहुत प्रभावी है।

इसके अलावा जोड़ों के दर्द में पंचकर्म पद्धति जैसे स्वेदन, विरेचन, बस्ती और लेपन की सलाह भी दी जाती है।

आयुर्वेद के नियमों का उचित प्रयोग करने, सही भोजन और जीवनशैली रखने से जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाना संभव है। जोड़ों के दर्द को रोकने, सही देखभाल और उपचार के लिए आयुर्वेद सर्वश्रेष्ठ उपचार पद्धतियों में से एक है। यदि आपको, आपके परिवार या दोस्तों में किसी को जोड़ों के दर्द की समस्या है, तो आयुर्वेद का रुख करने के लिए यह सही समय है।

Related Articles

Back to top button