स्वास्थ्य

जोड़ों के दर्द को अब मारिये गोली, आ गई ‘करामाती दवा’

एजेन्सी/ doctor-invented-a-new-medicine-for-arthritis_1460244435अस्त-व्यस्त जीवनशैली के कारण जोड़ों में दर्द की समस्या आम होती जा रही है। चिकित्सक इसकी वजह ज्वाइंट कार्ट्रिज (एक तरह का लिक्विड) खत्म होने को बताते हैं। ऐसे मामलों में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की सलाह दी जाती है। अब जल्द ही यह पद्धति बीते जमाने की बात हो जाएगी। लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों ने सिर्फ दवाओं के माध्यम से इसका इलाज खोज निकाला है।

इसके लिये चूहों पर किया गया प्रयोग सफल रहा। अब मरीजों को इन दवाओं का सेवन कराया जा रहा है। दवाओं पर रोजाना महज 10 से 15 रुपये का ही खर्च आता है। 80 फीसदी से अधिक मामलों में सफलता मिल चुकी है। इस पर मेडिकल साइंस से जुड़ी कई संस्थाओं ने भी अपनी मुहर लगा दी है।

मेडिकल कॉलेज के हड्डी रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञानेश्वर टांक के नेतृत्व में डॉ. रविकांत ने विशेष किस्म के 64 चूहों (एल्विनो रैट) पर यह शोध किया। लगभग एक साल तक शोध चला। इसमें कोलेजन-2 पैपटाइड और डाइसैरिन दवा कारगर पाई गई। दोनों दवाओं का तीन से छह महीने तक नियमित सेवन कराने पर ज्वाइंट कार्ट्रिज बनने लगी। इससे 80 फीसदी मामले में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की जरूरत ही नहीं रही। शोधकर्ताओं के मुताबिक, यदि ऑस्टियो आर्थराइटिस के मरीज की शुरुआत में ही पहचान हो जाए तो यह दवाएं बेहद कारगर हैं। 

शोध के दौरान चूहों के घुटनों में मोनोआयोडोएसिटेट नामक केमिकल डालकर उनमें आर्थराइटिस की समस्या पैदा की गई। इसके बाद चूहों को दवाएं दी गईं। समय-समय पर बायोस्कोपी से चूहों पर दवा के असर का अध्ययन किया गया। परिणाम यह निकला कि जिन चूहों को रिप्लेसमेंट की जरूरत थी, उनके घुटने महज तीन महीने में ही ठीक हो गए।

अमेरिक की मान्यता
अमेरिकी खाद्य सुरक्षा विभाग ने ऑस्टियो आर्थराइटिस के इलाज के लिए कुछ दवाओं को मान्यता दी थी। इनमें कोलेजन-2 पैपटाइड और डाइसैरिन भी हैं। इसके बाद ही मेडिकल कॉलेज मेरठ में शोध शुरू हुआ। इस शोध में कई टीमें लगी थीं। इनमें पैथोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. निधि वर्मा, वेटनरी ऑफिसर डॉ. मनीष, फार्माकोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. मोनिका शर्मा आदि का योगदान रहा। फरवरी में मेडिकल कॉलेज में आयोजित यूपी ऑर्थोकॉन कॉन्फ्रेंस में डॉ. ज्ञानेश्वर टांक ने इस संबंध में शोध पत्र प्रस्तुत किया था। इसे गोल्ड मेडल भी मिल चुका है।

‘शोध में साबित हो चुका है कि चूहों में तीन महीने और मनुष्य में तीन से छह महीने में कोलेजन-2 पैपटाइड और डाइसैरिन दवा के सेवन के बाद ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की जरूरत नहीं है। रिसर्च के बाद मरीजों को इन दवाओं का सेवन कराया जा रहा है। इसके बेहतर परिणाम भी सामने आ रहे हैं। दवाएं सस्ती होने के कारण हर व्यक्ति के बजट में हैं।’

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