कभी शुद्ध आबो-हवा से सरोबार रहने वाले झाडख़ंड महादेव मंदिर को तपस्वी बाबा गोबिंदनाथ के शिष्य बब्बू सेठ उर्फ गोबिंद नारायण सोमानी ने शिव देवालयों का पंचनाथी शिव धाम बनाया। सन 1916 में पिता जगदीश नारायण की मृत्यु के बाद बब्बू सेठ मित्रों के साथ झाडख़ंड महादेव मंदिर आए। उन्होंने बाबा गोबिंदनाथ को वहां तपस्या में लीन देखा और उनसे प्रभावित होकर सेवा करने लगे।
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गोबिंदनाथ खातीपुरा से भिक्षा लेकर आते और दो मोटे टिक्कड़ बनाते। एक भैरोंनाथ को चढ़ाकर श्वानों को खिलाते। दूसरे टिक्कड़ का महादेव को भोग लगाकर उसका प्रसाद ग्रहण करते। भिक्षा में मिले अनाज आदि को चिंटियों और पक्षियों को डाल देते। बब्बू सेठ घर बार छोड़ बाबा की सेवा में झाड़खंड में रहने लगे। बाबा गोविंदनाथ की आज्ञा से बब्बू सेठ ने कुआं और बाबा के लिए कोठरी व तिबारा बनवाया। ऊंची चारदीवारी और कोनों में चार बुर्जे बनवाई।
सन 1918 में माधोसिंह झाडख़ंड से निकले तब बब्बू सेठ ने चांदी के सिक्कों से महाराजा को नजर की और मंदिर निर्माण कार्य की जानकारी दी। सन 1927 में बब्बू सेठ को उदास देख बाबा ने कारण पूछा, तब उन्होंने कहा कि धन दौलत सब है, लेकिन संतान नहीं हैं। तब बाबा ने संतान होने का आशीर्वाद दिया। बब्बू सेठ ट्रस्ट अध्यक्ष जयप्रकाश सोमानी के मुताबिक सन 1939 में बाबा गोबिंदनाथ के समाधि लेने के बाद बब्बू सेठ ने समाधि बनवाई।
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मंदिर में माता पार्वती, कार्तिकेय गणेश व नंदीश्वर स्थापित करवाए। बब्बू सेठ की मृत्यु के बाद उनके पुत्र रतन लाल सोमानी ने द्रविड़ शिल्प कला का द्वार व शिव मंदिर बनवाकर झाडख़ंड की ख्याति को बढ़ा दिया। उन्होंने नंदीश्वर की बड़ी प्रतिमा भी स्थापित करवाई। इतिहासकार आनन्द शर्मा के मुताबिक गोबिंदनाथ के बाद बाबा घासीराम ने भी सेवा की। रेलवे स्टेशन पर ठेला लगाने वाले रामनाथ भी सावण में पुष्कर से गुलाब के फूल लाकर शिवजी का विशेष शृंगार करते थे।
सियाशरण लश्करी के पास मौजूद रिकार्ड के अनुसार मई 1943 में सर मिर्जा इस्माइल भी झाडख़ंड महादेव के दर्शन करने गए और वहां की हरियाली के रमणीक वातावरण को बरकरार रखने के लिए पेड़ लगाने का निर्देश दे आए। बब्बू सेठ के पूर्वज नारायण सोमानी जयपुर बसने के समय डीडवाना से आए और कल्याणजी का रास्ते में बसे। गणेश नारायण हाकिम और माऊंट आबू में रियासत के वकील थे। वे यूरोप की यात्रा करने वाले गिने चुने लोगों में थे। गणेश नारायण का कानुपर में चीनी व मोरस खांड का बड़ा कारोबार रहा।