स्वास्थ्य

टीबी और फंगल इंफेक्शन से ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा

देश में वैस्क्युलर यानी नाड़ी से जुड़ी बीमारियों में एथेरोस्केलेरोसिस (धमनियों में वसा जमा होकर संकुचन होना) की समस्या कॉमन है। इसमें नसों में फैट जमने से खून का प्रवाह कम होने लगता है जिससे ब्लड क्लॉट्स हो जाता है। यही क्लॉट आगे जाकर ब्रेन स्ट्रोक का रूप ले लेता है। इसका खतरा टीबी और फंगल इंफेक्शन से पीड़ित मरीजों को ज्यादा होता है। यह बात पीजीआई चंडीगढ़ के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ. बी डी राडोत्रा ने न्यूरो पैथलॉजी सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित नैपसीकॉन 2018 कॉन्फ्रेंस में बतायी।टीबी और फंगल इंफेक्शन से ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा

गोल्डन टाइम में इलाज होना जरूरी 
डॉ. बीडी राडोत्रा ने बताया कि अगर किसी को ब्रेन स्ट्रोक होता है तो उसके पास इलाज के लिए केवल 3 घंटे का समय होता है। इस गोल्डेन टाइम में अगर इलाज मिल जाए तो मरीज की जान बचाई जा सकती है। इसके लिए हर चिकित्सा संस्थान में अलग से ब्रेन स्ट्रोक यूनिट व स्ट्रोक इमरजेंसी नंबर होना चाहिए। 

सिगरेट, शराब पीने वालों को ज्यादा खतरा 
डॉ. राडोत्रा ने बताया कि कोई भी ऐसा तत्व जो शरीर में जाकर खून को गाढ़ा करने का काम करता है तो शरीर में ब्लड क्लॉट बनने की संभावना बढ़ जाती है। सिगरेट का अधिक सेवन करने वालों को भी ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा आम लोगों से काफी ज्यादा होता है। इसमें मौजूद निकोटिन तत्व भी ब्लड को गाढ़ा कर देता है। इसके अलावा हाइपरटेंशन, डायबीटीज, एंथ्रोसाइक्लोसिस (नसों में वसा जमने की बीमारी) व शराब का सेवन करने वाले लोगों में भी ब्रेन स्ट्रोक होने की संभावना काफी ज्यादा होती है। 

रिसर्च के लिए ब्रेन बैंक होना जरूरी 
डॉ. एस के शंकर ने बताया कि दिमागी बीमारियों पर नई रिसर्च के लिए मेडिकल संस्थानों में ब्रेन बैंक होना बहुत जरूरी है। ब्रेन की कई ऐसी बीमारियां होती हैं जिनके लक्षण एक जैसे होते हैं। ऐसी बीमारी का पता लगाने के लिए ब्रेन बैंक होना जरूरी है। देश में अभी एक मात्र ब्रेन बैंक बना है जोकि नेशनल इंस्टि्टयूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरो साइंसेज, बेंगलुरु में है। 
 

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