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टैंकरों की सप्लाई करने वाले नेताओं के लिए ‘चोखा धंधा’ बना महाराष्ट्र के मराठवाड़ा का सूखा

एजेन्सी/  marathwada-water-tankers_650x400_61460697052सूखे से निपटने के लिए पानी के टैंकर आखिरी विकल्प होने चाहिए, सरकारी मैन्युअल में यह बात कही गई हैं, लेकिन महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित मराठवाड़ा क्षेत्र के आठ जिलों में वाटर टैंकर्स को अधिकारी समस्या के समाधान के तौर पर तरजीह दे रहे हैं।

पूरे मराठवाड़ा में 2000 से अधिक टैंकरों की तैनाती
इस साल पूरे मराठवाड़ा में महाराष्ट्र सरकार ने करीब 2064 निजी टैंकरों की तैनाती की है। सबसे अधिक टैंकर बीड जिले में  तैनात किए गए हैं, इसके बाद औरंगाबाद जिले का स्थान आता है। अधिकारियों को कहना है कि उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि जिन गांवों में ये टैंकर भेज रहे हैं वहां, पानी का और कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं है।
लेकिन हमने पानी की कमी से जूझ रहे सोलापुर जिले में पाया कि यहां टैंकर के उपयोग में भारी कमी आई है। गौरतलब है कि जहां सरकारी मैन्युअल में स्‍थानीय जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने को प्रारंभिक उपाय बताया गया है।

सोलापुर में इस बार महज 17 टैंकरों की जरूरत पड़ी
सोलापुर के कलेक्टर तुकाराम मंधे ने हमें बताया कि वर्ष 2012 में 600 से अधिक टैंकर्स को आपातकालीन सप्लाई के लिए उपयोग किया गया, लेकिन पिछले साल केवल 17 टैंकर की जरूरत पड़ी। वह भी तब जब सोलापुर में पिछले 25 साल में सबसे कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। यदि स्थानीय समाधानों को विकसित कर क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है, जैसा कि सोलापुर ने दिखाया तो इसके विपरीत टैंकर जैसे उपायों की क्या जरूरत है?

राजनीतिक तौर पर मजबूत लोगों के पास होता है ठेका
लगभग हर जिले में टैंकर की सप्लाई का सालाना ठेका स्‍थानीय स्‍तर पर राजनीतिक तौर पर मजबूत लोगों के पास होता है। सैद्धांतिक रूप से ये ठेके सर्वश्रेष्ठ अनुकूलतम कीमत के आधार पर टेंडर के जरिये दिये जाते हैं, लेकिन अकसर एक ही राजनेता यह टेंडर साल-दर-साल हासिल करता जाता है। इससे इस पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे हैं। सोलापुर में पिछले करीब पांच साल से टैंकर का ‘धंधा’ बाबूराव शिंदे की फर्म के पास है। शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से जुड़े शिंदे राज्य में विधायक हैं। ओसामाबाद जिले की एक तहसील उमरेगा में पिछले 10 साल से यह कांट्रेक्ट स्थानीय कांग्रेस नेता विजय कुमार सोनावने को मिल रहा है। सोनावने के अनुसार, वे तहसील में 50 टैंकर चलाते हैं।

‘टैंकर नेताओं’ ने मुनाफाखोरी के आरोपों को खारिज किया
मराठवाड़ा के ‘टैंकर नेताओं’ ने मुनाफाखोरी के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। सोनावने कहते हैं कि एक टैंकर को लेने में ही करीब 40 हजार रुपये का खर्च आता है और टैंकर को ‘लोड’ करने में करीब 12 हजार रुपये खर्च होते हैं। हालांकि टैंकर के ‘गणित’ के अनुमान के अनुसार, इसमें काफी मुनाफा है। मराठवाड़ा में इस साल इस्तेमाल किए गए करीब 2 हजार टैंकरों में करीब 400 करोड़ रुपये की आमदनी हुई। एक मोटे अनुमान के मुताबिक, हर तरह की राशि को काटने के बाद यह मुनाफा करीब 100 करोड़ रुपये के आसपास बैठता है। यह सब बताता है कि आखिर क्यों ‘टैंकर नेता’ इनके उपयोग को तरजीह देते हैं।

सोलापुर में टैंकरों की संख्‍या में आई कमी है अपवाद
शिंदे ने दावा किया कि ट्यूबवेल और जलाशयों के रीचार्जिंग जैसे उपायों के बावजूद सोलापुर के लोग टैंकरों की घटती संख्‍या से नाराज हैं। उन्होंने कहा, ‘आखिरकार उन्हें पानी कहां से मिलेगा।’ वाकई सोलापुर में टैंकरों की संख्या में कमी आना एक अपवाद है। सूखे का प्रकोप बढ़ने के साथ ही यह क्षेत्र देश में किसानों की खुदकुशी का ‘गढ़’ बनने लगा है। टैंकर नेताओं के लिए वाकई यह ‘बूम’  टाइम है। कांग्रेस के नेता सोनावने कहते हैं, ‘कुछ और लोगों के पास भी ये टेंडर हैं। ये शिवसेना, बीजेपी और एनसीपी से हैं। हमारे जिले में छह ठेकेदार हैं ये सभी अलग-अलग पार्टियों से हैं।’

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