अन्तर्राष्ट्रीय

ट्रंप ने येरुशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता दी

वॉशिंगटन : अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने येरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दे दी है। उन्होंने दशकों पुरानी अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय नीति को तोड़कर ऐसा किया। इस कदम से जहां इजरायल खुश है, वहीं अरब जगत इस कदम को हिंसा भड़काने वाला मानते हुए उद्वेलित हो गया है। यह कदम पूर्व अमेरिकी प्रशासनों की कोशिशों के विपरीत भी है। यह मसला काफी समय से अमेरिकी प्रशासन में लंबित था, लेकिन व्यापक प्रतिक्रिया के अंदेशे के चलते उन्होंने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया था। डॉनल्ड ट्रंप ने इसे शांति के लिए उठाया गया कदम बताया है, जो वर्षों से रुका हुआ था। वाइट हाउस में संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा अब समय आ गया है कि येरुशलम को इजरायल की राजधानी बनाया जाए। उन्होंने कहा फिलस्तीन से विवाद के बावजूद येरुशलम पर इजरायल का अधिकार है। यह एक वास्तविकता है। डॉनल्ड ट्रंप ने विदेश मंत्रालय को यूएस दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम स्थानांतरित करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि इस प्रक्रिया में अब एक साल का समय लग सकता है। ट्रंप के इस फैसले से पहले भी अरब देशों में इसका विरोध किया गया। गाजा में फिलस्तीनी प्रदर्शकों ने अमेरिका और इजरायल के झंडे जलाए। यूरोप में अमेरिका के करीबियों ने भी इस कदम पर सवाल उठाए हैं। असल में 1995 में अमेरिकी कांग्रेस में एक प्रस्ताव पास किया गया था, जिसमें दूतावास को यरुशलम में शिफ्ट करने की बात कही गई थी। हालांकि बाद में जो भी राष्ट्रपति सत्ता में आए, उन्होंने यथास्थिति बनाए रखी और इस प्रस्ताव पर अमल नहीं किया।
ट्रंप ने सत्ता में आने से पहले चुनावी वायदा कर लिया था कि वह दूतावास को स्थानांतरित करवाएंगे। असल में ट्रंप को जो जनाधार मिला है, उसमें इजरायल समर्थक मतदाताओं की बड़ी संख्या थी। यही वजह रही कि उन्होंने सत्ता में आते ही इस चुनावी वायदे को पूरा करने की आतुरता दिखाई। हालांकि येरुशलम में जमीन अधिग्रहण और नए दूतावास के निर्माण में कम से कम कुछ साल लगेंगे।

ऐसे में दूतावास तुरंत शिफ्ट तो नहीं किया जा रहा है। इजरायल पूरे यरुशलम शहर को अपनी राजधानी बताता है, जबकि फलस्तीनी पूर्वी यरुशलम को अपनी भावी राजधानी बताते हैं। असल में इस इलाके को इजरायल ने 1967 में अपने कब्जे में ले लिया था। इजरायल-फलस्तीन विवाद की जड़ यह इलाका ही है। इस इलाके में यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों धर्मों के पवित्र स्थल हैं। यहां स्थित टेंपल माउंट जहां यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल है, वहीं अल-अक्सा मस्जिद को मुसलमान बेहद पाक मानते हैं। मुस्लिमों की मान्यता है कि अल-अक्सा मस्जिद ही वह जगह है जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत पहुंचे थे। ईसाइयों की मान्यता है कि यरुशलम में ही ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। यहां स्थित सपुखर चर्च को ईसाई बहुत ही पवित्र मानते हैं।
येरुशलम पर वैसे तो आज भी इजरायल का ही कब्जा है और उसकी सरकार व प्रमुख विभाग भी इसी इलाके में स्थित हैं। यहां तक कि राष्ट्रपति आवास भी यहीं पर है मगर पूर्वी येरुशलम पर उसके दावे को अंतरराष्ट्रीय समुदाय मान्यता नहीं देता। अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मानना है कि येरुशलम की स्थिति का फैसला बातचीत से ही होना चाहिए। यही वजह है कि किसी भी देश का दूतावास येरुशलम के बजाय इजरायल के दूसरे बड़े शहर तेल अवीव में स्थित हैं।  

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