राष्ट्रीयव्यापार

ट्रांसपोर्ट व्यवसाय मंदी की चपेट में, एक-तिहाई ट्रकों को नहीं मिल रहा काम

आर्थिक सुस्ती का असर ट्रांसपोर्ट व्यवसाय पर भी दिखाई देने लगा है। माल बुकिंग में भारी गिरावट आने से ट्रांसपोर्टरों के लिए कर्ज की किस्तें अदा करना मुश्किल हो गया है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ट्रांसपोर्ट संगठनों ने सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। देश के परिवहन क्षेत्र पर पैनी नजर रखने वाली विशेषज्ञ संस्था इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (आइएफटीआरटी) के मुताबिक आर्थिक सुस्ती की वजह से ट्रांसपोर्टरों की बुकिंग में भारी गिरावट देखने को आ रही है। माल ढुलाई के पर्याप्त ऑर्डर न मिलने से ट्रांसपोर्टरों के 30-40 फीसद ट्रक खाली खड़े हैं।

आमदनी में गिरावट के कारण ट्रासंपोर्टरों के लिए ट्रक खरीदी की खातिर लिए गए कर्ज की किस्तें चुकाने में मुश्किलें आ रही हैं। ट्रांसपोर्टर बैंकों से गुहार लगा रहे हैं कि किस्त अदा करने के लिए उन्हें कुछ मोहलत दी जाए। पिछले दिनों इंदौर के ट्रक ऑपरेटरों के संगठन इंदौर ट्रक ऑपरेटर्स एसोसिएशन ने बैकों और वित्तीय संस्थाओं को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने मोहलत मांगी है। एचडीएफसी, एक्सिस, आइसीआइसीआइ, कोटक महिंद्रा और यस बैंक के अलावा टाटा फाइनेंस, महिंद्रा फाइनेंस, सुंदरम फाइनेंस, श्रीराम फाइनेंस, चोलामंडलम फाइनेंस को भेजे पत्र में किस्त अदायगी में दो-तीन माह की छूट की मांग की गई है।

एसोसिएशन के अध्यक्ष सीएल मुकाली ने लिखा है कि ‘ट्रक ऑपरेटर एवं ट्रांसपोर्ट व्यापारी पिछले छह-सात माह से व्यापार में संघर्ष कर रहे हैं, मगर किसी तरह का सुधार नहीं हो रहा है। अगले दो-तीन माह में भी इसकी कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती। डीजल के रेट बढ़ने के साथ ट्रकों की मासिक रनिंग बहुत कम हो गई है। ऐसे में नियमित किस्त देने वाले ऑपरेटर भी आगे किस्त नहीं दे पाएंगे।’

आइएफटीआरटी के संयोजक एसपी सिंह ने कहा यह पत्र हालात की गंभीरता को दर्शाता है। क्योंकि किस्त अदा न कर पाने के कारण या तो ट्रक ऑपरेटर स्वयं अपने दो-तीन वर्ष पुराने ट्रक फाइनेंसरों को वापस लौटा रहे हैं, अथवा फाइनेंसर जबरन ट्रकों को जब्त कर रहे हैं। ट्रंक रूटों पर वापसी माल लादने के लिए ट्रकों को 7-10 दिन का इंतजार करना पड़ रहा है। इनमें तेल कंपनियों के एलपीजी टैंकर भी शामिल हैं। वैसे, इस स्थिति के लिए सिंह पिछले वर्ष त्योहारी सीजन में ट्रकों की भारी बिक्री को भी एक वजह मानते हैं। उस समय ऑटोमोबाइल कंपनियों ने ट्रांसपोर्टरों को भारी डिस्काउंट के साथ रियायती कर्ज के ऑफर दिए थे। तब खरीदे गए वही ट्रक अब मंदी में मुसीबत बन गए हैं।

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