नई दिल्ली : देश की पहली हाई स्पीड ट्रेन टी-18 के ट्रायल के दौरान कई बड़ी खामियों का खुलासा है। जानकारी के अनुसार उत्तर रेलवे ने इसके ट्रायल के दौरान 8 कोच खाली और 8 में यात्रियों का जितना वजन लादकर इसका ट्रायल रन कराया है, वह बिल्कुल गलत था। जबकि यह ट्रेन एक बार पूरी तरह से खाली और दूसरी बार पूरी तरह से भरी हुई दौडऩी चाहिए थी। अगर टी-18 ट्रैक पर पूरी तरह से खाली दौड़ती है, तो क्या यह पटरी से तो नहीं उतर जाएगी और अगर यह पूरी तरह से यात्रियों से भरी चलाई जाती है, तो क्या फिर भी यह अपनी स्पीड को अच्छे से मेंटेन कर पाएगी या नहीं?
टी-18 के अभी कम से कम 2 ट्रायल रन और कराए जाएंगे। इसके बाद ही इसे दिल्ली से वाराणसी के बीच दौडऩे का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ग्रीन सिग्नल दिलाया जाएगा। हालांकि, टी-18 के ट्रैक पर कर्मशल दौड़ लगाने की डेट के बारे में अभी तक कोई अंतिम डेट फाइनल तो नहीं की गई है। लेकिन रेलवे बोर्ड से मिले ताजा संकेत बताते हैं कि यह ट्रेन 15 से 18 दिनों के अंदर अपनी सेवाएं देना शुरू कर देगी। रेलवे सूत्रों से टी-18 के बारे में मिली और कई जानकारियों में पता लगा है कि कमिश्नर रेलवे सेफ्टी (सीआरएस) ने इस ट्रेन को हरी झंडी दिखाने से पहले 21 आपत्तियां और सुझाव दिए हैं। इनमें मोटे तौर पर सीआरएस ने नॉर्दर्न रेलवे से पूछा है कि आपने जब इस ट्रेन का ट्रायल रन किया, तो इसके आधे कोच खाली और आधे भरे हुए तो रखे गए, लेकिन क्या आपने इसे एक बार पूरी तरह से खाली और दूसरी बार पूरी तरह से भरकर ट्रायल किया? जवाब नहीं में मिलने पर सीआरएस ने कहा है कि इस तरह का ट्रायल भी होना चाहिए।
इलेक्ट्रिक सेफ्टी ऑडिट की भी जरूरत
यह भी पूछा गया कि जब इसके तमाम ट्रेन मेट्रो की तरह से ऑटोमैटिक हैं, तो क्या यह देखा गया कि अगर आपात स्थिति में इन गेटों को मैनुअली खोलकर यात्रियों को बाहर निकालना पड़ा तो क्या इसके तमाम कोच के गेट यात्री अपने आप से खोल भी पाएंगे या नहीं? चूंकि टी-18 में मेटल का इस्तेमाल अधिक से अधिक हुआ है, तो इसके बारे में यह भी कहा गया है कि क्या इसके तमाम कोच का इलेक्ट्रिक सेफ्टी ऑडिट कराया गया। यह बेहद जरूरी है, क्योंकि इस ट्रेन के तमाम कोच में हाई पावर 25 केवी करंट वाली केबिल पड़ी है। इसलिए इसके प्रत्येक कोच का यात्रियों को करंट ना लगे इसके लिए सेफ्टी ऑडिट जरूरी है।
वाराणसी से दिल्ली के ट्रैक पर कराई जाए फेंसिंग
सीआरएस ने यह भी कहा है कि टी-18 के लगभग प्रत्येक कोच में यह भी देखना होगा कि इमरजेंसी के वक्त इस ट्रेन से अगर यात्रियों को बाहर निकालना पड़ा तो क्या इसमें समुचित इमरजेंसी एग्जिट गेट का इंतजाम हैं भी या नहीं। ट्रेन को दौड़ाने से पहले यह भी कहा गया है कि अगर इसकी स्पीड 130 किलोमीटर प्रति घंटे से उपर रखनी होगी तो यह जरूरी है कि दिल्ली से वाराणसी के बीच ट्रैक के दोनों ओर फेंसिंग की जाएं। नहीं तो ट्रैक के बीच में किसी के आ जाने से ना केवल उसकी जान जाएगी, बल्कि ट्रेन में बैठे सैकड़ों यात्रियों की जान भी खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में बिना फेंसिंग के इस ट्रेन को मौजूदा शताब्दी जितनी स्पीड 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ही दौड़ाने का सुझाव दिया गया है।
रेलवे क्रॉसिंग को पूरी तरह खत्म करने की सलाह
हालांकि, 180 किलोमीटर प्रति घंटे से नीचे 130 से 160 किलोमीटर प्रति घंटे के बीच टी-18 को दौड़ाने पर कुछ मसलों पर आवश्यक काम करके दौड़ाने पर सहमति बन सकती है। टी-18 के लिए सिग्नल और रेडियो फ्रीच्ेंसी के बीच एक बार फिर से ट्रायल करने को भी कहा गया है। इसके अलावा रेलवे क्रॉसिंग को पूरी तरह से खत्म करने और पटरियों को ग्राइंड करने की सलाह भी दी गई है। यह भी बताया जा रहा है कि टी-18 वाराणसी से इलाहाबाद के बीच प्रवासी भारतीयों को भी अपनी सेवाएं दे सकती है।