उत्तर प्रदेश

डग्गामारी परिवहन के लिए बना नासूर, रोक लगाना चुनौती

इलाहाबाद : शहर में तैनात सहायक क्षेत्रीय प्रबंधकों के लिए डग्गामारी पर रोक लगाना एक चुनौती बन गया है। डग्गामारी एक लाइलाज रोग का रूप धारण कर परिवहन के लिए नासूर बन गया है।सफेदपोश की हनक व अधिकारियों की उदासीनता के चलते परिवहन विभाग के लिए डग्गामारी एक लाइलाज रोग बन गया है। आगे-आगे प्राइवेट बस और पीछे-पीछे निगम की बसें। अधिकारियों की उदासीनता निगम के चालकों परिचालकों को सवारी लेना मुशकिल हो जाता है । प्राइवेट बस चालको की दबंगई के चलते कहे या निगम के अधिकारियों की उदासीनता निगम के चालकों परिचालकों को सवारी लेना भारी पड़ रहा है।

पूर्व के प्रबंध निदेशक परिवहन निगम के तमाम आदेश रद्दी के टोकरी की शोभा बढ़ा रहे हैं। खुलेआम निजी बस चालक अधिकारियों की शह पर निगम के आगे आगे चल रहा है। सफेदपोश की हनक व अधिकारियों की उदासीनता के चलते परिवहन विभाग के लिए डग्गामारी एक लाइलाज रोग बन गया है। जिसको ठीक करने में कहने को पूरा अमला लगा है, फिर भी कोई कार्रवाई काम नही आ रही है। डग्गामारी के लिए परिवहन विभाग के अधिकारियों ने कई बार लबे सड़क पर खड़ी बसों की फोटोग्राफी कर मण्ड़लायुक्त व शासन को भेजा, जिससे उक्त डग्गामारी के खिलाफ ठोस कार्रवाई हो सके। डग्गामारी के विरूद्व कई बार सम्भागीय परिवहन व पुलिस का अभियान चलता है जिसमें उक्त विभाग का कहना होता है कि डग्गामारी नही होती है। कई बार सिविल लाइन्स, प्रयाग, तथा लीडर रोड डिपो के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा एक अभियान चला कर डग्गामारी करने वाले वाहनों को चिन्हित किया गया लेकिन नतीजा ‘ढाक के तीन पात’। विभाग को भी पता है कि पुलिस व सम्भागीय परिवहन के मुंह पर सुविधा शुल्क का ताला डाल दिया गया है। डग्गामारी करने वालों के भी हांथ लम्बे हैं। कई अधिकारी डग्गामारी रोकने के लिए ठोस कदम उठाने को सोच रहे थे कि उक्त अधिकारियों का तबादला करा दिया गया।

सूत्रों का कहना है कि कई ऊंचे पहुच वालों द्वारा डग्गामारी कराई जाती है, जिस पर हाथ डालने में पुलिस भी डरती है। उच्च न्यायालय का सख्त आदेश है कि निगम के बस अड्डे के आस-पास एक किलोमीटर की दूरी में डग्गामारी नही होनी चाहिए। जबकि सिविल लाइन्स बस अड्डे के नाक के नीचे लबे सड़क खुले आम डग्गामारी हो रही है। करोड़ों की चपत लगाने वाले डग्गामारी करने वाले पुलिस व सम्भागीय परिवहन के साथ-साथ परिवहन निगम के अधिकारियों को भी खुश रखते है। सूत्रों का कहना है कि डग्गामारी से सबसे अधिक पुलिस व सम्भागीय परिवहन को फायदा है। डग्गामारी करने वाले भी जानते हैं कि पुलिस के बिना सहयोग के यह गोरखधंधा नही चल सकता है।
शासनादेश की माने तो ०१ जुलाई १९९९ द्वारा प्राइवेट मोटर वाहन तथा निजी बस, मिनी बस, टैक्सी टैम्पो, स्टैण्ड उ.प्र राज्य सड़क परिवहन निगम के बस स्टैण्ड से कम से कम एक किलोमीटर की दूरी पर स्थापित कराये जाने एवं अनुपालन के सम्बन्ध के बारे में शासनादेश है। उक्त शासनादेश का विभागों द्वारा पूरी तरह से मजाक उड़ाया जा रहा है। इतना ही नही उच्च न्यायालय के आदेशों की भी अवमानना की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि नये प्रबन्ध निदेशक परिवहन विभाग डा. आशीष गोयल ने डग्गामारी के खिलाफ अधिकारियों के पेंच कस दिए हैं। परिवहन निगम को घाटे से उबारने वाले एमडी को बताया गया कि आय का प्रतिशत और बढ़ जाए यदि डग्गामारी पर लगाम लगा दिया जाए। अभी तक १८०० डग्गामार वाहनों को चिन्हित कर पुलिस व सम्भागीय परिवहन को भेजा गया है। पुलिस का सहयोग न होने से रोडवेज के कर्मचारी कुछ भी नही कर पाते हैं।

 

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