डिस्को चलाने वाले सचिन दत्ता बने अखाड़ा के महामंडलेश्वर
इलाहाबाद . निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर बनने वाले सच्चिदानंद महाराज गिरि विवादों में घिर गए हैं। संन्यास लेने से पहले वह नोएडा-दिल्ली एनसीआर में रियल स्टेट कारोबार से जुड़े थे, साथ ही उनका बीयर बार और डिस्को चलता था। इसलिए महामंडलेश्वर पद पर उनकी नियुक्ति को लेकर आपत्ति जताई जा रही है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि सच्चिदानंद ने संन्यास लेने के बाद घर-परिवार और बीयर बार के कारोबार से नाता तोड़ लिया था। इसलिए उनकी नियुक्ति को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। फिलहाल परिषद ने मामले की जांच का फैसला लिया है। सच्चिदानंद के बारे में आरोप सिद्ध होने पर उनसे महामंडलेश्वर की पदवी वापस ले ली जाएगी।इलाहाबाद में गुरु पूर्णिमा पर सचिन दत्ता ऊर्फ सच्चिदानंद गिरि निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर बने थे। यूपी के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव और पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह यादव ने उनका पट्टाभिषेक किया था। मूल रूप से गाजियाबाद के रहने वाले सचिन दत्ता अग्नि अखाड़ा के महामंडलेश्वर कैलाशानंद से पिछले 22 साल से जुड़े हैं। कैलाशानंद के सानिध्य में संन्यास लेने के बाद उनका नाम सच्चिदानंद महाराज गिरी हो गया।संन्यास लेने से पहले सचिन दत्ता बालाजी कंस्ट्रक्शन के नाम से रियल स्टेट कारोबार से जुड़े थे। नोएडा के सेक्टर-18 में उनका बीयर बार और डिस्को भी चलता था। ये डिस्को दिल्ली-एनसीआर का सबसे बड़ा डिस्को है। 22 साल की उम्र में ही उन्होंने घर-परिवार त्याग दिया और संन्यासी हो गए।अखाड़ों का महामंडेलश्वर बनने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है। महामंडलेश्वर बनने के लिए किसी संन्यासी को अखाड़े से कम से कम 10 साल तक लगातार जुड़ा होना चाहिए। इसके साथ ही उसे धर्मशास्त्र का ज्ञान, सनातन धर्म के प्रति समर्पण की भावना रखनी चाहिए।अखाड़ा परिषद में महामंडलेश्वर पद बहुत महत्वपूर्ण है। कुंभ मेले में होने वाली पेशवाई और शाही स्नान में अखाड़ा के आचार्य पीठाधीश्वर के साथ महामंडलेश्वर चांदी के रथ में सवार होकर निकलते हैं, उनके साथ रत्नों से जड़ा छत्र भी होता है। कुंभ मेले के दौरान महामंडलेश्वर के लिए अलग कैंप की व्यवस्था होती है। इनका खास ध्यान रखते हुए हर जगह पर इनके लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम भी होते हैं।अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि ने सच्चिदानंद गिरी का बचाव किया है। उन्होंने कहा, ‘अगर कोई संन्यास लेने के बाद परिवार और कारोबार से अलग हो जा है, तो अखाड़ा परिषद के किसी भी पद पर उसकी नियुक्ति में कोई दिक्कत नहीं है। सच्चिदानंद संन्यास लेने से पहले बीयर बार और डिस्को के संचालक थे। संन्यास लेने के बाद उनका इन चीजों से कोई सरोकार नहीं है। इसलिए मीडिया को इस मामले को बेवजह तूल नहीं देना चाहिए। अखाड़ा परिषद इसकी जांच कर रहा है। अगर आरोपों ने जरा भी सच्चाई हुई, तो सच्चिदानंद से पदवी वापस ले ली जाएगी।’