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डॉक्टर-नर्स की लापरवाही, काटना पड़ा बच्ची का पैर
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परिवारीजनों का आरोप है कि स्टाफ नर्स के गलत विगो लगाने के कारण बच्ची का पैर नीला पड़ने लगा था। इसकी सूचना स्टाफ नर्स को दी गई, जिसे उसने अनसुना कर दिया। हंगामा करने पर डॉक्टर आए जरूर, लेकिन देखकर चले गए।
चार दिन तक बच्ची को यहीं भर्ती रखा, फिर ड्राईगैंगरीन की बात कहकर केजीएमयू ले जाने को कह दिया। वहां जांच और इलाज चला, पर हालत नहीं सुधरी। संक्रमण का खतरा बढ़ता देख बच्ची का पैर काटना पड़ा।
परिवारीजनों ने मामले की शिकायत सीएमओ, स्वास्थ्यमंत्री, और अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारियों से शिकायत कर लापरवाही बरतने वाले डॉक्टरों के खिलाफ जांच कराने की मांग की है।
उन्होंने ‘अमर उजाला’ को बताया कि इलाज शुरू हुआ। ड्रिप चढ़ाने के लिए स्टाफ नर्स ने दाहिने पैर में विगो लगाया। कुछ देर बाद पैर की अंगुलियां नीली पड़ने लगीं। नर्स को बताया तो उसने कहा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा। रात साढ़े ग्यारह बजे के करीब पैर घुटने तक नीला पड़ गया।
स्टाफ नर्स से बहस हुई तो डॉक्टर को बुलाया गया। डॉक्टर आया, पर देखकर चला गया। चार दिन बाद तक हालत जस की तस बनी रही। 16 अक्तूबर को डॉक्टरों ने केजीएमयू ले जाने को कह दिया।
अगले दिन केजीएमऊ के एनआईसीयू में बच्ची को भर्ती कराया। 17 अक्तूबर से 16 नवंबर तक यहां इलाज चला। डॉक्टरों ने बताया कि इंफेक्शन के कारण पैर में सेप्टिक हो गया है और पैर काटना पड़ेगा। दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि 17 नवंबर को बच्ची का पैर काट दिया गया।
केजीएमयू में एमआरआई जांच में धमनिया ब्लॉक थीं, जिससे रक्त प्रवाह नहीं हो रहा था और पैर नीला पड़ गया। इस वजह से पैर काटा गया। अस्पताल के डॉक्टर व स्टाफ की कोई लापरवाही नहीं है।
मामला गंभीर, जांच होगी
वहीं, सीएमओ डॉ. एसएनएस यादव का कहना है कि डफरिन अस्पताल में गलत विगो लगाने से सेप्टिक होने की बात गंभीर मामला है। नवजात का पैर काटा गया है तो इस संबंध में अस्पताल की एसआईसी, सीएमएस, स्टाफ नर्स और इलाज करने वाले डॉक्टर से पूछताछ की जाएगी। इस संबंध में डफरिन अस्पताल व केजीएमयू से इलाज व जांच रिपोर्ट भी मंगाई जाएगी।
17 केजीएमयू के लिए रेफर, यहां एनआईसीयू में भर्ती
16 नवंबर तक यहां इलाज चला
17 नवंबर को सेप्टिक होने पर काटा गया पैर