राष्ट्रीय

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

निक्की हेली पर फिजूल की प्रतिक्रिया (एजेंसी) अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार में मंत्री और सुरक्षा परिषद की वर्तमान अध्यक्ष निक्की हेली के बयान पर फिजूल ही हंगामा हो रहा है। निक्की ने पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कह दिया कि भारत और पाकिस्तान के संबंधों में कोई बड़ी गड़बड़ हो जाए, उसके पहले ही अमेरिका को दोनों की बीच कुछ भूमिका अदा करनी होगी। शायद खुद ट्रंप ही कुछ कोशिश करें। निक्की के इस बयान पर हमारे विदेश मंत्रालय की काफी सख्त और दो-टूक प्रतिक्रिया आई है। उसका कहना है कि भारत-पाक संबंधों की बीच आतंकवाद सबसे बड़ा मुद्दा है। यह ज्यों का त्यों है। इस मामले में भारत किसी तीसरे राष्ट्र के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं कर सकता। वह विश्व-समुदाय से अपेक्षा करता है कि वह पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
मेरी समझ में नहीं आया कि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता को यह बयान देनी की जरुरत क्या थी? हमारा विदेश मंत्रालय चुप भी रह सकता था, जैसे कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय चुप है। पता नहीं, हमारे प्रवक्ता को जुबान चलाने का निर्देश किसने दे दिया? प्रधानमंत्री कार्यालय ने या विदेश सचिव ने? या विदेश मंत्री ने, जो कि आजकल मानवीय सहायता के मुद्दों पर ही ज्यादा सक्रिय दिखती हैं। कोई इन तीनों से पूछे कि पाकिस्तानी आतंकवाद को अमेरिका बढ़ावा देगा या उसका विरोध करेगा? इसके अलावा यक्ष प्रश्न यह भी है कि आतंकवाद वहां जिंदा क्यों है? कश्मीर-विवाद के कारण! कश्मीर संबंधी सवाल पर ही निक्की ने प्रतिक्रिया की थी। निक्की भारतीय मूल की महिला हैं। यदि वे भारत-पाक के बीच अच्छे रिश्तों की बात कर रही हैं तो इसमें गलत क्या है? यह ठीक है कि भारत किसी छोटे-मोटे राष्ट्र की तरह किसी महाशक्ति का पिछलग्गू नहीं है और वह किसी के इशारे पर नाचनेवाला देश नहीं है लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने कई बार संकट की घड़ी में रुस और अमेरिका की कूटनीतिक सहायता ली है और वैसी ही सहायता भारत अपने पड़ौसी देशों को देता रहा है। स्वयं भारत ने कोरिया और स्वेज नहर जैसे दूर-दराज के मामले में भी अपनी भूमिका अदा की है। यह ठीक है कि भारत को कश्मीर के सवाल पर किसी तीसरे देश की मध्यस्थता की जरुरत नहीं है लेकिन एक तरफ तो ‘ट्रंप और मोदी भाई-भाई’ हो रहा है और दूसरी तरफ एक मासूम-से अमेरिकी बयान पर आप इतनी कड़ी प्रतिक्रिया कर रहे हैं। विदेश नीति के संचालन में सावधानी के साथ-साथ धैर्य की भी उतनी ही जरुरत होती है।
….सोनी ईएमएस 6 अप्रैल 17

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